।।गज़ले-बयान।।
दुष्यंत चाहते थे चिरांगा हरेक घर के लिए ।
निकल पड़ा हूँ मैं उसी सियाह सफर के लिए।।
मुझे पता है की दरख्तों के साये भी चुभेंगे ।
कौन धूप से भाग सका है उम्र भर के लिए ।।
माना की भटक रहा हूँ कब से अँधेरी बस्ती में ।
बनूँगा एक दिन सूरज नयी सहर के लिए ।।
मेरी ग़ज़ल के गलियारे में ज़ज़्बात बिखरतें है ।
मैं बेकरार हूँ आवज़ में सुंदर बहर के लिए ।।
हिम्मत से सच कहने की आदत डालो यारों ।
ये हसीन नज़ारा होगा हर नज़र के लिए ।।
बचे खण्डहरों को इमारत बनाना बाकी है ।
'अवधेश' तीरगी में मशाल है असर के लिए ।।
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...डॉ.अवधेश कुमार जौहरी (भीलवाड़ा)राजस्थान
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