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।।गज़ले-बयान।।

1 मई 2016

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।।गज़ले-बयान।।

दुष्यंत चाहते थे चिरांगा हरेक घर के लिए । 

निकल पड़ा हूँ मैं उसी सियाह सफर के लिए।।

मुझे पता है की दरख्तों के साये भी चुभेंगे ।

कौन धूप से भाग सका है उम्र भर के लिए ।।

माना की भटक रहा हूँ कब से अँधेरी बस्ती में ।

बनूँगा एक दिन सूरज नयी सहर के लिए ।।

मेरी ग़ज़ल के गलियारे में ज़ज़्बात बिखरतें है ।

मैं बेकरार हूँ आवज़ में सुंदर बहर के लिए ।।

हिम्मत से सच कहने की आदत डालो यारों ।

ये हसीन नज़ारा होगा हर नज़र के लिए ।।

बचे खण्डहरों को इमारत बनाना बाकी है ।

'अवधेश' तीरगी में मशाल है असर के लिए ।।

              .......…................

...डॉ.अवधेश कुमार जौहरी  (भीलवाड़ा)राजस्थान 

          सम्पर्क09001712728

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डॉअवधेश कुमार जौहरी

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बहुत सुन्दर कृपया सूचित भी कर दिया कीजिये, ...आभार सप्रेम

4 जून 2017

रवि कुमार

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माना की भटक रहा हूँ कब से अँधेरी बस्ती में । बनूँगा एक दिन सूरज नयी सहर के लिए ... क्या बात है

2 मई 2016

रवि कुमार

रवि कुमार

बहुत बढ़िया, अवधेश जी. बता दूँ की अवधेश नाम के लोगो की शब्दों पर बहुत मजबूत पकड़ लगती है, क्योंकि शब्दनगरी पर एक अवधेश प्रताप सिंह भदौरिया है, वो भी बहुत ही बढ़िया और साधा हुआ लिखते है. आप भी एक बार देखियेगा.

2 मई 2016

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