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दुआ

30 जुलाई 2022

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लंबी उमरों की दुआ देकर किसी की दुनिया मैहकाने चला था

मेरा सोचना था ऐसा क्युंकी मै थोडा भला था 


अब देकर दुआ कुछ खलिस रैह गई मन मे मेरे 

सोचा क्यों ना देख लूँ इनके रैन बसेरे


इसी आस मे उनके साथ साथ हो चला 

भर कर हाँ चल पडा वो भी था मुझ सा भला 


अब इस सफ़र मे बात भी होने लगी थी

क्या कैसी थी हालत आंख रोने लगी थी


मैने पूछ ही लिया क्युँ आंख नम है 

मुझे बताओ ना किस बात का घम है 


अब तो उसने भी चुप्पी तोड़ दी थी

और अपनी साईकिल घर की तरफ़ मोड दी थी


नुक्कड़ के मकान की तरफ़ उसका इशारा था

साहब यहाँ उमर बीती है मेरी ये घर कभी हमारा था


ये सुन कर हुई मुझे भी कुछ हैरानी 

ओर उसके चेहरे पर दिखने लगी थी कुछ परेशानी


शायद मेरी मैहमान नवाजी करने मे लाचार था वो

सामने आँगन मे लेटा था एक बालक बीमार था वो 


मैने पूछना चाहा था कौन है ये बालक 

पर अचानक रुक गया देख कर आगे की हालत 


एक जवान औरत थी 25-30 की रही होगी 

सफ़ेद साडी फटी हुई सी शायद घर की बहू होगी 


आते देख हमे अपने आँगन वो किनारा कर गई

लेकर पल्लू चेहरे पर एक ओर ठैहर गई


इस बात का भी मलाल सा बन कर मेरे मन मे उतर गया 

अगले ही पल वो एक अँधेरे से गैहरे से कमरे मे उतर गया 


नज़ारा देख कर उस कमरे का मै सन्न रैह ग्या 

और चुपके से वो कुछ मेरे कानों मे कैह गया 


सुन कर उसकी बात मेरे आँसू निकल आये

बीवी है ये मेरी जब ये बोल मेरे समझ मे आये


इस से पैहले मै पूछूँ उसने खुद बता दिया 

एक ही था बेटा मेरा जो देश पर खपा दिया 


कलेजे का टुकडा था कलेजा तोड़ गया 

भरी जवानी मे अपनी विधवा को छोड़ गया 


माँ बेचारी सदमा सैह ना सकी और सर पटक पटक कर घायल हो गई

डाकटर बोल रहा था के अब तो ये पागल हो गई है 


बाहर पलंग पर लेटा पडा है जो वो पोता है

अपने पापा की याद मे वो कभी नही सोता है 


इसी बीच मैने भी अपनी जुबान खोल दी और मै बोला 

क्या सरकार से कोई मदद नही मिली मैने भी अपना मुह खोला


ये सुनकर शायद उसका दर्द और निखर गया 

बोला सरकारों की वजाह से तो मेरा घर बिखर गया 


आये थे कुछ लोग कुछ दिन पैह्ले नुमाइश करने 

लेकर हाथों मे नमक हमारे झख्मो पर मलने


50 हजार रुपऐ और एक मैडल दे गये

और हमारे घर की रोशनी हमारा चिराग ले गये


फिर भभक कर रोने लगा था वो 

अचानक अपना आप खोने लगा था वो 


तभी उनकी बहू एक गिलास पानी ले आयी 

निकाल कर दवा उसने अपनी बीवी को खिलाई 


अब मैने पूछा कैसे आपका गुजर बसर चलता है 

क्या आप कमाते हो जिस से घर चलता है 


अब वो एक दबे स्वर मे बोला बेटा रैहने दो हमे हमारे हाल पे

जो था सब चला गया अब कुछ नही कंगाल पे


मै पूछता इस से पैहले उसने खुद बता दिया 

अच्छा खासा जमीदार था कन्गाली ने लाचार बना दिया 


10 एकड जमीन बेटा गाँव के बाहर नजदीक थी

वो नुक्कड़ वाली हवेली जैसी थी ठीक थी


खुशी खुशी खेती करके खुश रैहते थे हम

सबको अपने ही जैसा अपना कैहते थे हम


बेटा फौजी था अकेला इकलौता था 

शादि हो गई थी एक पोता था


बीवी भी तब तो तकडी हुआ करती 

मेरे साथ खेत मे खेती किया करती 


अचानक एक दिन दुखों का पाहाड़ टूट गया 

लगता था हमसे भगवान रूठ गया 


बेटे की लाश देख कर मा आपा खो बैठी

रो रो कर बेचारी पागल हो बैठी


बेटे का दुख क्या थोडा था जो पोता भी हार गया 

अभी 10 दिन पैहले बाप गया ओर इसको लक्वा मार गया 


सारी जमीन चलि गई बीवी के इलाज मे

हवेली भी गिरवी है आपस लिहाज मे


थोडा सहारा ही तो माँगा था भाई भाभी से

उनको ही मोह निकला मेरे घर की चाबी से 


सरकारों का तो बेटा सबको पता है क्या हाल हैं 

अरे उनका हमे क्या सहारा जो खुद कंगाल हैं 


बोहत लड़ चुका अब तो हिम्मत हारने लगा हूँ 

अंदर ही अंदर खुद को मारने लगा हूँ 


मै फाँसी नही लगा सकता लाचार हूँ मै 

कल मरता आज मरूं आखिर जमीन्दार हूँ मै 


मेरे लिये आवाज़ तो उठ सकती है पर इन्सान नही 

अरे मै भी किसी की आस रखता हूँ मै भगवान नही 


इतना सुनकर मै भी रो पडा था

दीवार से सट कर कोने मे खडा था

दीवार से सट कर कोने मे खडा था


क्या यही सफ़र है एक अन्नदाता का खुदा 

क्यों धरती पुत्र #लापता हो रहा है धरती से  

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