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लंबी उमरों की दुआ देकर किसी की दुनिया मैहकाने चला था मेरा सोचना था ऐसा क्युंकी मै थोडा भला था अब देकर दुआ कुछ खलिस रैह गई मन मे मेरे सोचा क्यों ना देख लूँ इनके रैन बसेरे इसी आस मे उनके साथ
उनके हैं शौक़ नवाबों वाले क्या कहना अपना क्या, आटा दाल कमाया करते हैं दिल से हैं रुखसत वो ना जाने कब से बस खामोशी में वक्त बिताया करते हैं अजी उनकी दुखड़े रोने की आदत होगी हम तो ज