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एच.आई.वी

5 अप्रैल 2016

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मेरा भी जब जन्म हुआ था , घर में ढोल बजा था 

माँ ने प्रसव किया जिस घर में, घर भी खूब सजा था

खुशियाँ घर-आँगन में दौडी, रत्ती भर अवसाद नहीं था

इकलौती संतान थी शायद, इसीलिए प्रतिवाद नहीं था

बचपन सुखमय रहा, न जाना कब बीत गया था

वय-किशोर का अनुपम-अनुभव मेरे लिए नया था

अल्प-वयस्क हो गयी सगाई, पति का साथ मिला था

अब तक जो थी कली अछूती, अब वह फूल खिला था

प्रथम प्रसव के समय, मेरे सोलह सावन बीते

रुधिर-स्त्राव अति हुआ, संकट में पड़ी बबीते

रुधिर मुझे जो दिया, नहीं वह जांच कराया होगा

रुधिर संक्रमित था शायद, HIV लाया होगा 

मेरे सतीत्व पर सासू माँ, कीचड़ न उछालो

मैं तो जा ही रही हूँ, अपना वंश बचा लो

नाथ कुछ दिन और मेरे दुर्दिन को झेलो

मुझसे रूठो नहीं और मेरे संग खेलो 

गोरस से वंचित हो, इससे दु;सह दुःख सहते हो

गुमसुम रहते सदा और तुम दूर दूर रहते हो 

इस दुःख का भी भोग करो, तुम इसका नहीं विरोध

इस दुःख में भी उपयोगी है, सबसे अधिक निरोध

मुझे अकिंचन छोड़ा, तो मैं जल्दी मर जाउंगी

वादे सात किये थे, कैसे पूरा कर पाऊँगी 

जीवन की संध्या पर अब मैं करूँ भरोसा किसका

वह हमसे अब दूर हो रहा, लिया सहारा जिसका 

प्राण-नाथ अंतिम इच्छा यह मेरी पूरी कर देना

अंत समय अपने हाथों से मांग सिन्दूरी कर देना 


हिमांशु पाण्डेय की अन्य किताबें

चंद्रेश विमला त्रिपाठी

चंद्रेश विमला त्रिपाठी

मार्मिक रचना ! बेहद प्रासंगिक !

6 अप्रैल 2016

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“और उस शाम मैं कुछ गीत लिखता हूँ”

5 अप्रैल 2016
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अब “वसुधैव कुटुम्बकम”केवल एक शब्द नहीं लगता....उसे लगे न लगे, मुझेतो वो अपना सा ही लगता........क्षुधा की आग में जलताये समाज छोटा सा लगता है......वैभव के पर्याय बनेराजमहलो से तो अपना चूल्हा ही अच्छा लगता है......इस चांदनी रात में उसपपीहे से दो बात करता हूँ......उसकी प्यासी तपन कोखुद में आत्मसात करता

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एच.आई.वी

5 अप्रैल 2016
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मेरा भी जब जन्म हुआ था , घर में ढोल बजा था माँ ने प्रसव किया जिस घर में, घर भी खूब सजा थाखुशियाँ घर-आँगन में दौडी, रत्ती भर अवसाद नहीं थाइकलौती संतान थी शायद, इसीलिए प्रतिवाद नहीं थाबचपन सुखमय रहा, न जाना कब बीत गया थावय-किशोर का अनुपम-अनुभव मेरे लिए नया थाअल्प-वयस्क हो गयी सगाई, पति का साथ मिला थाअ

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स्वतंत्र मैं!

5 अप्रैल 2016
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मैं और आकाश मिलकर एक ही बात करते हैं...उसके नीले पर मुझे भी उड़ने का संबल देते हैं..वो देखता है, पर न कहता है बंधक हो तुम...मन जानता है बंधे हैं पैर मेरे बेड़ियों से और पीटा जा रहा है चाबुक...वो चाबुक जो मेरे दादा को मिला था विरासत में..तब से आँख पर पट्टी बाँधी है हमने...पड़ोस की छत पर कबूतर बैठते हैं.

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काला

5 अप्रैल 2016
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तुम पूछोगी,उन घुँघराली लटो को घुमाकर,"और काले हो गए हो तुम"मैं कहूँगा"हाँ, समेटे हूँ कई स्याह शामें... नीले, बहुत नीले आसमां के नीचे बटोरे कुछ सुर्ख पत्थर और चल रहा हूँ कीचड में.. उस गाढे रंग में दिन और छोटा हो गया है, मैं बचा हूँ और बचा है वो कनेर का फूल... लिपटा हुआ है काँटों में, गिर रहा है मेरी

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अच्छा कवि

5 अप्रैल 2016
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अच्छे कवि की काव्य-कला एक सुखद सृष्टि होती है;सुखद तभी हो सकती जब शुभ कथा-वस्तु होती है,वर्तमान यदि शुभ होगा, इतिहास अशुभ कैसे होगा; काटेंगे वही फसल हम सब,जैसा हमने बोया होगादर्पण है साहित्य हमारे जीवन की गतिविधि का; नहीं पढ़ा साहित्य पुराना क्या होगा उस निधि का,लूटपाट और दुराचार ही चहुँ दिशि में छाय

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