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काला

5 अप्रैल 2016

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तुम पूछोगी,

उन घुँघराली लटो को घुमाकर,

"और काले हो गए हो तुम"

मैं कहूँगा

"हाँ, समेटे हूँ कई स्याह शामें... नीले, बहुत नीले आसमां के नीचे बटोरे कुछ सुर्ख पत्थर और चल रहा हूँ कीचड में.. उस गाढे रंग में दिन और छोटा हो गया है, मैं बचा हूँ और बचा है वो कनेर का फूल... लिपटा हुआ है काँटों में, गिर रहा है मेरी तरह, गहरा और गहरा.... दिन और छोटा हो रहा है.. ढल रहे हैं कुछ ख्वाब.. दब रहे हैं मेरे बटोरे सुर्ख पत्थरों में... हाँ, काला हो रहा हूँ मैं!"


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“और उस शाम मैं कुछ गीत लिखता हूँ”

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अब “वसुधैव कुटुम्बकम”केवल एक शब्द नहीं लगता....उसे लगे न लगे, मुझेतो वो अपना सा ही लगता........क्षुधा की आग में जलताये समाज छोटा सा लगता है......वैभव के पर्याय बनेराजमहलो से तो अपना चूल्हा ही अच्छा लगता है......इस चांदनी रात में उसपपीहे से दो बात करता हूँ......उसकी प्यासी तपन कोखुद में आत्मसात करता

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एच.आई.वी

5 अप्रैल 2016
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मेरा भी जब जन्म हुआ था , घर में ढोल बजा था माँ ने प्रसव किया जिस घर में, घर भी खूब सजा थाखुशियाँ घर-आँगन में दौडी, रत्ती भर अवसाद नहीं थाइकलौती संतान थी शायद, इसीलिए प्रतिवाद नहीं थाबचपन सुखमय रहा, न जाना कब बीत गया थावय-किशोर का अनुपम-अनुभव मेरे लिए नया थाअल्प-वयस्क हो गयी सगाई, पति का साथ मिला थाअ

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स्वतंत्र मैं!

5 अप्रैल 2016
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मैं और आकाश मिलकर एक ही बात करते हैं...उसके नीले पर मुझे भी उड़ने का संबल देते हैं..वो देखता है, पर न कहता है बंधक हो तुम...मन जानता है बंधे हैं पैर मेरे बेड़ियों से और पीटा जा रहा है चाबुक...वो चाबुक जो मेरे दादा को मिला था विरासत में..तब से आँख पर पट्टी बाँधी है हमने...पड़ोस की छत पर कबूतर बैठते हैं.

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काला

5 अप्रैल 2016
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तुम पूछोगी,उन घुँघराली लटो को घुमाकर,"और काले हो गए हो तुम"मैं कहूँगा"हाँ, समेटे हूँ कई स्याह शामें... नीले, बहुत नीले आसमां के नीचे बटोरे कुछ सुर्ख पत्थर और चल रहा हूँ कीचड में.. उस गाढे रंग में दिन और छोटा हो गया है, मैं बचा हूँ और बचा है वो कनेर का फूल... लिपटा हुआ है काँटों में, गिर रहा है मेरी

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अच्छा कवि

5 अप्रैल 2016
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अच्छे कवि की काव्य-कला एक सुखद सृष्टि होती है;सुखद तभी हो सकती जब शुभ कथा-वस्तु होती है,वर्तमान यदि शुभ होगा, इतिहास अशुभ कैसे होगा; काटेंगे वही फसल हम सब,जैसा हमने बोया होगादर्पण है साहित्य हमारे जीवन की गतिविधि का; नहीं पढ़ा साहित्य पुराना क्या होगा उस निधि का,लूटपाट और दुराचार ही चहुँ दिशि में छाय

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