अस्पताल के कमरे में हल्का अंधेरा था। मशीनों की बीप-बीप की आवाज़ें वातावरण को और भी गंभीर बना रही थीं। रामेश्वर, जो 75 वर्ष के थे, अपने जीवन की अंतिम सांसें गिन रहे थे। परिवारजन बाहर बैठे थे, लेकिन रामेश्वर अब उनसे अलग, एकांत में थे। उनकी आँखें बंद थीं, लेकिन मन जागरूक था।
अचानक, कमरे में एक ठंडी हवा चली, और जब रामेश्वर ने अपनी आँखें खोलीं, तो उनके सामने एक दिव्य आकृति खड़ी थी। गहरे काले वस्त्र, मुकुट पर चमकते नगीने, और हाथ में एक विशाल गदा। यह कोई और नहीं, बल्कि यमराज थे।
रामेश्वर ने घबराते हुए कहा, “आप… आप कौन हैं?”
यमराज ने गंभीरता से कहा, “मैं यमराज हूँ। तुम्हारा समय आ गया है, रामेश्वर। तुम्हें अब मेरे साथ चलना होगा।”
रामेश्वर की आँखों में डर था, “क्या यह मेरा अंत है?”
यमराज ने सिर हिलाते हुए कहा, “हाँ, लेकिन जाने से पहले, कुछ सवाल हैं जिनके जवाब तुमसे चाहिए।”
रामेश्वर ने गहरी साँस ली और कहा, “सवाल? किस तरह के सवाल?”
यमराज ने अपनी गदा जमीन पर टिकाते हुए कहा, “सबसे पहला सवाल—तुमने जीवन में सबसे बड़ी उपलब्धि क्या मानी?”
रामेश्वर ने कुछ सोचते हुए उत्तर दिया, “मैंने अपने परिवार का पालन-पोषण किया, अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दी, और अपने व्यवसाय को ऊँचाइयों तक पहुँचाया। मैंने हमेशा मेहनत की और समाज में अपनी पहचान बनाई।”
यमराज ने गंभीर होकर कहा, “ये तो भौतिक उपलब्धियाँ हैं। लेकिन क्या तुमने कभी आत्म-संतोष या मन की शांति के बारे में सोचा?”
रामेश्वर थोड़ा असहज होते हुए बोले, “सच कहूँ, तो नहीं। मैंने हमेशा दूसरों की जरूरतों को प्राथमिकता दी, पर अपने मन की शांति के बारे में ज्यादा नहीं सोचा।”
यमराज ने फिर सवाल किया, “तुमने कभी अपने जीवन के असली उद्देश्य को समझने की कोशिश की? जीवन का मतलब सिर्फ परिवार और काम ही नहीं होता, रामेश्वर।”
रामेश्वर चुप हो गए। उन्होंने गहरी साँस ली और कहा, “मैंने सोचा था कि परिवार का ख्याल रखना और समाज में प्रतिष्ठा बनाना ही सब कुछ है।”
यमराज ने गहरी आवाज़ में पूछा, “क्या तुम्हें याद है कि तुम्हारे जीवन में ऐसा कोई क्षण आया हो, जब तुमने किसी को बिना स्वार्थ के मदद की हो? निस्वार्थ प्रेम और सेवा ही असली जीवन है।”
रामेश्वर ने कुछ देर सोचकर कहा, “मैंने कई बार दूसरों की मदद की, लेकिन वह भी एक जिम्मेदारी की तरह लगा, जैसे कुछ पाने के लिए ही किया हो।”
यमराज ने धीरे से हंसते हुए कहा, “यह ही तो असली कमी है। तुमने हमेशा दूसरों के लिए किया, लेकिन भीतर से नहीं, बल्कि एक सामाजिक कर्तव्य के रूप में।”
रामेश्वर की आँखों में अफसोस झलकने लगा। उन्होंने पूछा, “तो क्या मैंने सारा जीवन गलत दिशा में बिताया?”
यमराज ने उत्तर दिया, “गलत नहीं, पर अधूरा। तुमने अपने जीवन को एक बाहरी दुनिया में बिताया, लेकिन कभी अपने भीतर की ओर नहीं देखा। आत्म-साक्षात्कार ही सच्ची उपलब्धि है।”
रामेश्वर ने कुछ आश्चर्य से पूछा, “आत्म-साक्षात्कार? इसका क्या मतलब है?”
यमराज ने समझाते हुए कहा, “आत्म-साक्षात्कार का मतलब है, अपने भीतर झांकना। अपने असली रूप को पहचानना। यह जानना कि जीवन केवल भौतिक सुखों और प्रतिष्ठा का नहीं, बल्कि अपने अंतर्मन की शांति और दूसरों की निस्वार्थ सेवा का नाम है।”
रामेश्वर की आँखों में आँसू आ गए। रामेश्वर ने सिर झुकाकर कहा, “अब मुझे यह समझ आ रहा है। लेकिन क्या अब बहुत देर हो गई है? क्या मैं कुछ बदल सकता हूँ?”
यमराज ने कहा, “तुमने जीवन की असली सच्चाई को पहचाना, और यही सबसे महत्वपूर्ण बात है। तुम चाहो, तो मैं तुम्हें जीवन वापस दे सकता हूँ।”
रामेश्वर ने चौंकते हुए कहा, “आप मुझे जीवन वापस देंगे? मतलब, मैं फिर से जी सकता हूँ?”
यमराज ने सिर हिलाया, “हाँ, तुम फिर से जी सकते हो, लेकिन अब वह जीवन तुम्हारी समझ के साथ होगा। तुम अपने गलतियों को सुधार सकते हो, आत्मा की शांति और सच्ची सेवा के साथ अपना जीवन जी सकते हो।”
रामेश्वर कुछ देर तक सोचते रहे। उनकी आँखों में एक अलग ही चमक आई। उन्होंने गहरी सांस लेते हुए कहा, “यमराज, अब मैं समझ चुका हूँ कि जीवन का असली अर्थ क्या है। लेकिन अब मैं जीवन को पुनः प्राप्त नहीं करना चाहता। मैंने जो सीखा है, उसे अपने अंत के साथ स्वीकार कर सकता हूँ। मैंने जीवन की कठिनाइयों और उपलब्धियों का अनुभव किया है। अब मैं शांति से मृत्यु को गले लगाना चाहता हूँ।”
यमराज ने गौर से रामेश्वर को देखा और फिर मुस्कराते हुए कहा, “तुमने सही निर्णय लिया है, रामेश्वर। मृत्यु कोई अंत नहीं है, यह एक नई शुरुआत है। तुम्हारा आत्म-साक्षात्कार तुम्हें अगले जीवन में मार्गदर्शन देगा।”
रामेश्वर ने शांत स्वर में कहा, “अब मुझे कोई डर नहीं है, यमराज। मैं आपके साथ चलने के लिए तैयार हूँ।”
यमराज ने अपना हाथ रामेश्वर की ओर बढ़ाया, और रामेश्वर ने बिना किसी भय के वह हाथ थाम लिया। यमराज के साथ वह आत्मा अब एक नई यात्रा पर निकल पड़ी—लेकिन इस बार, पूरी शांति और संतुष्टि के साथ।