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राजधानी देहरादून की हृदयांगिनी रिस्पना नदी से साक्षात्कार

22 अक्टूबर 2024

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राजधानी देहरादून की हृदयांगिनी रिस्पना नदी से साक्षात्कार 

 शाम का समय था, मैं रिस्पना पुल से अपने घर से जा रहा था, रिस्पना पुल के हरिद्वार जाते समय बायीं तरफ देखा कि नदी के किनारे मैक्स वाहनों की कतार लगी हुई है, दूसरी दायें तरफ एक कंकरीट का बहुत बड़ा भवन निर्माणाधीन है वहीं कुछ ऊपर बस्तियां बसी है, और दीपनगर तो रिस्पना के किनारे आधुनिक सभ्यता का विकास का नया मॉडल है। रात भर रिस्पना नदी पर विचारों की उधेड़ बुन में रहा, फिर नींद आ गयी, अक्सर जिस चीज को हम गहरायी से सोचते हैं, वह अक्सरों सपनों में प्रतीक के रूप में आ जाती हैं। सपना कुछ इस तरह से था।  
   
              रिस्पना नदी एक पत्थर में घुटनों में हाथ रखकर उसमें अपनी ठोड़ी टिकाकर बैठी है, और नदी रूपी नाले की तरफ देख रही है। मैं उसके करीब पहुॅचा उससे पूछा कि आप कौन, यहॉ अकेला इस तरह क्यों बैठी हो, पहले तो उसने मुझे प्रश्नवाचक नजरों से देखा, लेकिन कुछ नहीं बोला, फिर मैनें कहा कि कोई परेशानी है तो बताईये, यह पूछते ही उसके हाव भाव बदल गये।
               
               उसने एक लंबी सांस लेते हुए कहा कि मैं रिस्पना नदी हॅू, आज अपनी इस दुर्दशा पर ना रो पा रही हॅूं और ना हंस पा रही हूॅं, यह सूनते ही मैने उनसे कहा कि अब रोकर क्या करना, अब तुम बुढिया गयी हो, तुम सदानीरा नहीं, बल्कि एक नाला बन चुकी हो, अब तुम सिर्फ नाम से जानी जाती हो।  इस पर रिस्पना नदी ने अपनी जीवन यात्रा के बारे में जो बताया उसमें रोमांच था, भावनायें थी, दर्द था, पीड़ा थी। रिस्पना नदी ने बताया कि :- 

      मैं रिस्पना नदी जिसको पहले ऋषिपर्णा के नाम से लोग बुलाते थे, जो एक ऋषि के नाम से है, बाद में  अपभ्रंश होकर रिस्पना हो गया। मेरा उदगम मसूरी के वुडस्टॉक के नीचे शिखर फॉल से होता है, मेरे साथ निभाने के लिए 06 और बहिने हैं, जो छोये के नाम से जानी जाती हैं, एक मेरी सहेली बिंदाल है, जो आज मेरी तरह सूखी पड़ी है। 

                  हम दोनों एक जमाने में इस दून घाटी की सभ्यता और एक संस्कृति की वाहक थी। हम जैसी छोटी बड़ी नदी के किनारों पर ही अनेको सभ्यताओं ने जन्म लिया, इसी कड़ी में दून घाटी सभ्यता का उदयकाल शुरू हुआ।  देहरादून को नहरों को शहर भी कहा जाता था, हम से ही एक धारा नहरों के रास्ते देहरादून की प्रसिद्ध बासमती धान को  सींचित करती थीं जो बाद में लोगो की थाली में बासमती चावल बनकर इस कदर खुशबू बिखेरती थी कि दूर से पता चल जाता था कि दोपहर के भोजन का समय हो गया है। 
     
                  मसूरी की पहाडियों से शोर करते हुए जब राजपुर रोड़ के शहनशाही आश्रम के पीछे आकरे मैं सुबह सुबह शांत होकर गुजरती थी। एक जमाने में मैं कल कल की घ्वनि से कलरव करती हुई इठलाती हुइ, बलखाती हुई देहरादून ही नहीं बल्कि विलायत से आये अग्रेंजो को भी रिझाती थी, बड़े बड़े अफसर से लेकर हर लोग मेरे किनारे कभी घूमने तो कभी शांति की खोज में आते थे। दिन मेंं पालतू पशु से लेकर जंगली जानवर मेरे मीठे से अपनी प्यास बुझाते, उनकी तृप्ति को देखकर मैं खुद को गंगा नदी से कम नहीं समझती थी।  गर्मियों के समय सांयकाल में उस समय बच्चे रेत मे खेलने आते थे, फिर नहाते, मैं उनके आंलिंगन और उनकी अठखेलियों में खुद बच्चा बन जाती। 

 समय बीतता गया मैं, अपनी धारा प्रवाह से निर्बा़द्ध होकर बहती, लोग मेरी पूजा करते थे, मैं खुद को देवत्व रूप का अवतार समझती। जब विलायती लोगों से देश आजाद हुआ तो लगा कि चलो अब अपने ही लोग हैं, मैं इनके सुख दुख में काम आंउगी ये मेरे सुख दुख में काम आयेगे। मेरा काम ही तो इस धरा के जीवों की प्यास बुझाने, धरती को हरा बनाने का है, हॉ मै सदैव से ही साफ बना रहना चाहती हॅूं, इसमें मैंने कभी कोई समझौता नहीं करना चाहा। 

 आजादी के बाद देहरादून शहर की आबादी बढती गयी और मेरे ऊपर कूड़ा कचरा डाला जाने लगा, लेकिन मैंने उसे आत्मसात किया। राजपुर रोड़ से काठबंगला, आर्यनगर, राजीवन नगर, भगत सिंह कॉलोनी, दीपनगर से मोथरोवाला तक अब लोग निवास करने लगे। देहरादून शहर कभी वनों की नगरी के नाम से जानी जाती थी, वह कंकरीट के जंगलों में बदलने लगी, मैनें बदलाव को स्वीकार किया, लेकिन अब हालात बदल चुके थे, मेरी पूजा करने वाले लोग, अब मेरे यहॉ शौच का पानी, घर का सारा कूड़ा डालने लगे, लेकिन तब भी मैं शांत होकर बहती रहती। 
 
     जब उत्तराखण्ड राज्य की मॉग हुई तो लगा कि लखनऊ तक मेरी आवाज नहीं पहॅुंच रही होगी, इसलिए कोई ध्यान नहीं दे रहा है, अब उत्तराखण्ड राज्य बन जायेगा तो मैं पहले जैसे खूबसूरत हो जाऊंगी। मैनें भी बहुत दुवायें मॉगी इस उत्तराखण्ड राज्य के निर्माण के लिए। 2000 में उत्तराखण्ड राज्य भी बन गया तो मुझे बहुत खुशी हुई, इतनी खुशी हुई कि बरसात में मैनें विकराल रूप धारण कर खुद ही एक दिन अपनी सारी गंदगी को बहा दिया और लोगों को यह संदेश देना शुरू किया कि अब मेरे किनारे घर मत बनाओ, मुझे अब साफ रहना है, मैं उत्तराखण्ड राज्य की राजधानी देहरादून की हृदयांगिनी हूॅं। लेकिन मेरे इस संदेश को कोई नहीं समझ पाया। 

 उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद उत्तराखण्ड की पहली सरकार  बनाने के लिए देहरादून में जब दिल्ली से हैलीकॉप्टर से केन्द्रीय नेता, आये तो लगा कि अब तो पूरे उत्तराखण्ड राज्य के साथ मेरा भी कायाकल्प होगा। नयी सरकार हेतु मुख्यमंत्री,ं मत्रियों ने विधानसभा अध्यक्ष ने और विधायकों ने शपथ लिया तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा, मेरे अंदर एक नयी उर्जा का संचार हुआ, मैने सोचा कि मैं भी लंदन में बहने वाली टेम्स नदी की तरह बन जाऊंगी।  अस्थायी राजधानी की शान कहलांऊगी, मैने कल्पना की कि अब मेरे किनारे गंदी बस्तियां नहीं होगी, दुर्गन्ध नहीं आयेगी, जगह जगह मेरे ऊपर ंगदें नाले नही डाले जायेगें। सुंदर सुंदर  हरे भरे तट होगें सफेद बगुले तैरते हुए नजर आयेंगे। मेरी तरह मेरी सहेली बिंदाल के दिन भी आयेंगे।  

 जिस दिन मेरे तट पर विधानसभा के लिए नींव खुद रही थी, देहरादून से लेकर राज्य के बाहर की लाव लश्कर देखकर मेरे अंदर एक स्फूर्ति आयी और मैनें भी गर्दन उठाकर देखा तो उत्तराखण्ड राज्य के महामहिम राज्यपाल, माननीय मुख्यमंत्री, मंत्री अफसर सब लोग विधानसभा की नींव रखने आये हैं। मैंने भी सोचा कि जब विधानसभा मेरे किनारे बन रहा है, मेरे दिन भी जरूर बहुरेंगे।  

        माननीय जब विधानसभा की खिड़की से देखेगे, मेरी कलरव से आनंदित होकर राज्य हित के साथ मेरे उद्धार के लिए अवश्य काम करेगें। मेरी भावनायें उमड़ घुमड़ रही थी।  विधानसभा भवन तैयार होकर जब लोकापर्ण हुआ तो लगा कि चलो अब जल्दी ही कुछ निर्णय होगा, इसी आशा में मैने कई विधानसभा सत्र देखे, कई बार मैने हवा के साथ समझौता किया कि जब विधानसभा की तरफ को चलना मेरी इस गंदगी की दुर्गन्ध को माननीयों की नाक तक पहॅुचा दो, लेकिन माननीयों ने रूमाल रख दिया,  और खिड़की बंद करवा कर कार्यवाही अनिश्चितकालीन के लिए बंद कर दी।  

        जब मेरी स्थिति बिगड़ती गयी और मैं नदी से नाला बनकर रह गयी। कई बार मैनें  अपना गुस्सा बरसात के समय प्रकट किया, लोगों के घरों तब बहाकर ले गयी लेकिन लोग तमाशाबीन बनकर देखते रहे, और सत्ता पक्ष को श्रेय लेने और विपक्ष को घेरने का मौका मिला, लेकिन मेरी सुधी किसी ने नहीं ली। 

 एक दिन जब बहुत से मजदूर लोग मेरे तट पर गैंथी फावडा लेकन आये तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा, मैने सोचा कि अब तो मुझे पुनर्जीवन मिलने वाला है, लेकिन तब उन मजदूरों कि बात से पता चला कि उनके चुने जनप्रतिनिधियों ने   अपनो वोट बैंक के लिए मेरी छाती पर लोगों को पट्टे आंबटित कर झुग्गी झोपड़ी और कच्चे मकान बनाकर बसाना शुरू कर दिया है। मैनें जनमानस की मजबूरी को समझा और उन्हें आश्रय दे दिया लेकिन  बाद में उन्हीं आश्रय लेने वालों ने मेरे प्रवाह को रोकना शुरू कर दिया। 

      इस दौरान राजधानी में कई सत्ता परिवर्तन हुए, कभी हाईकोर्ट से झुग्गी झोपड़ी हटाने के आदेश हुए, कभी मुझे संवारने की बात कही गयी, मेरा इस्तेमाल वोट बैंक के लिए किया गया।  2014 में सत्ता परिवर्तन हुआ और लोगों ने मन की बात को करने वाला और समझने वाला प्रधानमंत्री श्री मोदी को सत्ता सौंपी।  

              झुग्गी झोपड़ियो में लगी टीवी की तेज आवाज  से समाचार मेरे कानों तक भी गूंजते थे, जिसमें मोदी जी स्वच्छता की बात की पैरवी करते, यह सुनकर मैं भी उद्ववेलित हो उठती, चलो स्वच्छता की बात अगर देश का प्रधानमंत्री कर रहा है, तो प्रदेश का मुखिया पर इसका असर पडेगा, क्योंकि मैं तो राजधानी की हृदयांगिनी सदानीरा हूॅं, मेरे दिन अब जरूर बहुरेगें। 

            एक दिन मैं बस्ती की रहने वाली लड़की गायत्री के दिलो दिमाग में घुस गयी और उसके माध्यम से लोगो को जागरूक करने का प्रयास किया। उससे प्रधानमंत्री मोदी जी के मन की बात कार्यक्रम के लिए चिठ्ठी भी लिखवायी, सयोंग से वह चिठ्ठी प्रधानमंत्री जी ने मन की बात में पढी जिसमें मेरी सफाई को लेकर आक्रोश, और सुझाव थे।

                 अब मुझे पूरा विश्वास हो गया था कि अब तो मेरा पुनर्जीवित होना निश्चय है।  मोदी जी की वाक्वाणी से मेरा नाम लिया जाना मेरे लिए आज के जमाने में किसी सेलेब्रिटी बनने से कम नहीं था। मैं खुशी में इतना झूम उठी कि काले पानी को उछाल उछाल कर अठखेलियां करने लगी। 
  
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हे जी ( उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र में बहु द्वारा ससुराल में अपने से बड़ो को बोले जाने वाला सम्मानित सम्बोधन) द्वी माण ( एक किलो) गहथ उधार दे दो। हमने बीज के लिए सुरक्षित स

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अधजली. बीड़ी

9 अप्रैल 2023
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अरे वो राजू देख पत्थर के नीचे अधजली बीड़ी का टुकड़ा और माचिस होगी, एक दो तीलिया कागज पर लपेट कर रखी हैं, जरा इधर तो पकड़ा, यह कहकर उसके दोस्त प्रदीप ने स्कूल का बस्ता एक किनारे रखा, और एक बड़े पत्थर

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वक्त की लाठी

26 अप्रैल 2023
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कल शाम को देर से लौटा तो श्रीमती जी ने कहा कि आपको फोन किया था कि सुबह नाश्ते और ऑफिस के लिए सब्जी ले आना, लाये हो तो इधर धोने के लिए रख दो। हमने कहा कि आज हम दूसरे रास्ते से आये है, इसलिए सब्जी नही ल

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अब क्या करू।

26 अप्रैल 2023
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घड़ी का एलॉर्म बजते ही अंकुर ने दो बार बंद किया और फिर सो गया, उधर सुनीता ने अपनी यथावत दिनचर्या के अनुसार घर का झाडू पोछा, और नाश्ता की तैयारी कर ली है । लॉकडाउन ने सुनीता को ज्यादा व्यस्त कर दिया है,

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और दोनों हॅस दिये (लघु कहानी)

25 मई 2023
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रोहित अपनी भाभी के साथ उनकी किसी रिश्तेदारी में शादी में गया था। वहॉ उसकी मुलाकात उसकी भाभी ने अपनी मौसेरी बहिन मेघा से करवायी। मेघा और रोहित एक दूसरे से मिले ही नहीं बल्की रात का डिनर भी साथ ही किय

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और दोनों हॅस दिये (लघु कहानी)

26 मई 2023
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रोहित अपनी भाभी के साथ उनकी किसी रिश्तेदारी में शादी में गया था। वहॉ उसकी मुलाकात उसकी भाभी ने अपनी मौसेरी बहिन मेघा से करवायी। मेघा और रोहित एक दूसरे से मिले ही नहीं बल्की रात का डिनर भी साथ ही किया

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बातूनी बिल्ली

26 मई 2023
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नोट: यह लेखक की कल्पना मात्र है। अक्सर एक बिल्ली हमारे घर के आस पास घूमती रहती है, कभी वह खिड़की से दीवार को फांदती है, कभी बाउंड्री में बैठकर मूछे मटकाती नजर आती है, बस सुबह शाम म्या

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नानी का घर

19 जून 2023
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बेटा बच्चों की गर्मियों की छुट्टियॉ हो जायेगी तो सब लोग आ जाना, यह सब बातें नंदिता अपने तीनों बेटियों और दोनों बेटों को कहती है। नंदिता और उनका पति देवेन्द्र अकेले घर में रहते हैं, उन्हें

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पैत्रिक भूमि का सौदा 

22 जुलाई 2023
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रमन के पिताजी बचपन में ही अपने चाचा जी के साथ मुंबई आ गये थे, उसके बाद वह मुबई के होकर रह गये। रमन ने जब भी गॉव जाने की बात कही तो उसके पिताजी हमेशा यह कहकर टाल देते कि वहॉ तो

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कमबख्त कम्बल

11 अगस्त 2023
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कमबख्त कम्बल ने रात भर सोने नही दिया,मैंने पूछा कि भाई परेशान क्यो हो, मुझे भी सोने दो। कम्बल ने कहा कि बस गर्मी क्या आ गयी तुम मुझे भूल ही गए हो। मैंने कहा नही दोस्त तुमको कैसे भूल

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अनमोल तोहफा

18 अगस्त 2023
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अविनाश ने जैसे ही फेसबुक खोला तो उसको नमिता की फ्रेंड रिक्वेस्ट आयी हुई थी, पहले तो गौर नही किया, सरसरी निगाह से अपडेट देखी और बन्द करके अपने ऑफिस के काम मे व्यस्त हो गया। शाम को जैसे ही फुर्सत

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बेल /लता

20 अगस्त 2023
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मैं एक बेल हूँ जो अक्सर पेड़ो पर लहराती हूँमैने बेल से पूछा कि तुम्हे कौन लपेटता है तुम्हारे हाथ तो है नही।तुम्हे रास्ता कौन बताता है तुम्हारे आंख तो है ही नही । तुम्हे कैसे पता कि तुमने जिसका सह

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मूल निवास

23 अगस्त 2023
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गज्जू 12वीं पास करने के बाद पंजाब अपने मामा के साथ नौकरी की तलाश में चला गया था, कुछ दिन तक घर में ही रहा उसके बाद वहीं उसको एक ढाबे में नौकरी मिल गयी। शुरू में ढाबे

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ओढ़

28 अक्टूबर 2023
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हल लगाते हुए भगतू के बैल ओढ को पार करते हुए दूसरे भाई जगतू के खेत में घुस गये, इतने में जगतू की पत्नी विमला ने यह सब देख लिया, और उसने बिना जाने ही गाली देनी शुरू कर दी। हल्ला और गाली सुनकर जगतू

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हिट एंड रन क़ानून

3 जनवरी 2024
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हाल ही में लोकसभा में पारित भारतीय दण्ड सिंहंता का नाम बदलकर भारतीय न्याय संहिता रखा गया है, जिसमें कुछ कानूनों के प्रावधान बदले गये हैं, जिसमें से एक कानून हिट एण्ड रन है। भारतीय दंड सहिंता के सैक्शन

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अहमियत

9 जनवरी 2024
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दीया ने अजय को फ़ोन कर कहा कि शाम को आते हुये सब्जी लेते आना, सुबह के लिये नाश्ते के लिये कुछ नही है, अजय ने इस सबका उत्तर हम्म करके दिया और फ़ोन काट दिया। अजय की ऑफिस से छुट्टी के बाद घर आत

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मानसिक पलायन

17 फरवरी 2024
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मानसिक पलायन गरीबी और लाचारी ने तो परिवार को पहले से ही दबा रखा था ,इधर भाईयों और 02 बहिनों की पढायी के बोझ को देखते हुए नौकरी करने सतीष 12 वीं के बाद अपने मामा के साथ म

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भिटोली

28 मार्च 2024
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भिटोली रोहित दो दिन की छुट्टी ले लो, रेनू ने टिपिन पैक करते हुए कहा, रोहित यार अभी तो मार्च फाईनल चल रहा है, और फिर महीने की शुरूवात में बॉस नये टारगेट दे देते

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बुढ़ापे कि पीड़ा

7 मई 2024
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ताजवर ने रात को सुबह 4 बजे का अलार्म लगाकर अपनी पत्नी रेणूका को कहा कि तुम भी अलार्म लगा दो कहीं मैं उसे यह कहकर बंद ना कर दूं कि 10 मिनट बाद उठ जाउॅगा। रेणूका ने भी अलार्म लगा दिया। ताजवर

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भंडारे का प्रसाद

11 जुलाई 2024
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शहर के व्यापार संगठन के अध्यक्ष किशन चंद जी के बेटे का चयन आईपीएस ऑफिसर के पद पर हो गया था। किशन चंद की पत्नी निर्मला देवी ने मंन्नत मॉगी थी कि यदि उनके बेटे का चयन हो जाता है तो वह मंदिर में ब

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भूतो का घर

14 अक्टूबर 2024
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रोशन अपने ऑफिस में लैपटॉप पर कम्पनी को मेल कर रहा था तब तक मोबाईल पर रिंग टोन बजी उसने स्पीकर खोला तो सामने गाँव के चाचा जी का फोन था। चाचाजी ने बताया कि उसके पिताजी का स्वास्थ्य ज्यादा खराब है,

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एक बार कह तो देते

17 अक्टूबर 2024
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सोनू का हाइस्कूल का आखिरी पेपर है, बहुत खुश है कि अब तो गर्मियों की छुट्टियों में मनाली मामा जी के यँहा घूमने जाना है, सारे दोस्तों में जाने का पूरा बखान कर आ गया, सोनू ने घर आकर अपनी माँ से मामा&nbsp

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राजधानी देहरादून की हृदयांगिनी रिस्पना नदी से साक्षात्कार

22 अक्टूबर 2024
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राजधानी देहरादून की हृदयांगिनी रिस्पना नदी से साक्षात्कार शाम का समय था, मैं रिस्पना पुल से अपने घर से जा रहा था, रिस्पना पुल के हरिद्वार जाते समय बायीं तरफ दे

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