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मन की एकाग्रता

23 सितम्बर 2015

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featured image ‘‘इन्द्रियाणि प्रमाथीनि हरन्ति प्रसभं मनः’’ अर्थात प्रयत्नशील व्यक्ति के मन को भी हमारी प्रमथनशील (भ्रमित करने वाली) इन्द्रियाँ बलात् हर लेती हैं। ध्यान में मन नहीं लगता । मन भागता है, बाहर भटकता है। कभी चीटियाँ काटती अनुभव होती हैं, कभी शरीर में कहीं दर्द उठता है, तो कभी हिलने- डुलने का मन करता है। विचार प्रवाह, उसमें भी कामुकता प्रधान- अनापशनाप चिन्तन हमारे मन को एकाग्रचित्त नहीं होने देता। मन बड़ा भ्रामक है- बड़ा बलवान है । इसका दमन करने में बड़ी असमर्थता अनुभव होती है। इसे नियंत्रित करना तो ऐसा ही है जैसे तीव्रगति से चलने वाले वायु के प्रवाह को रोकने का प्रयास किया जाय। सचेतन मन की एकाग्रता से ध्यान योग का साधन किया जाता है । इसके बाद उसे अचेतन मन पर केन्द्रित करते हैं, ताकि वह चैतन्यवान, प्राणवान बन सके और इसके बाद सचेतन तथा अचेतन दोनों को जोड़कर अतिचेतन की ओर आरोहण किया जाता है। तब ध्यान परिपूर्ण होता है। जब हम अतिचेतन की ओर जाते हैं, तो हमें दिव्य रसानुभूति होने लगती है। कार्यकुशलता, प्रसन्नता, दिव्य रसानुभूति आत्मानुभूति- यह सभी ध्यान की फलश्रुतियाँ हैं। हम स्वाध्याय की वृत्ति विकसित करें, ताकि हमारा मन सतत श्रेष्ठ विचारों में स्नान करता रहे। इससे धारणा पक्की बनेगी और ध्यान टिकेगा।
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1 दिसम्बर 2016

ओम प्रकाश शर्मा

ओम प्रकाश शर्मा

हार्दिक आभार, सतीश जी !

7 नवम्बर 2015

सतीश   गुप्ता

सतीश गुप्ता

अति मनोहारी लेख बधाई

1 नवम्बर 2015

ओम प्रकाश शर्मा

ओम प्रकाश शर्मा

अवधेश जी एवं पुष्प जी, बहुत-बहुत धन्यवाद !

17 अक्टूबर 2015

ओम प्रकाश शर्मा

ओम प्रकाश शर्मा

महावीर रावत जी, अनेक धन्यवाद !

17 अक्टूबर 2015

महावीर रावत

महावीर रावत

अति सुंदर !

17 अक्टूबर 2015

पुष्पा पी. परजिया

पुष्पा पी. परजिया

बहुत सटीक और सही बात कही है इस आलेख में आपने ।. सार्थक रचना हेतु अनेकानेक अभिनंदन . ओम प्रकाश शर्मा जी

1 अक्टूबर 2015

अवधेश प्रताप सिंह भदौरिया 'अनुराग'

अवधेश प्रताप सिंह भदौरिया 'अनुराग'

बहुत ही योगिक ,लौकिक अनुकरणीय सुन्दर रचना !

23 सितम्बर 2015

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रचनाएँ
devotional
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इस आयाम के अंतर्गत आप अध्यात्म से सम्बंधित लेख पढ़ सकते हैं.
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मन की शांति

13 अगस्त 2015
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मन की शांति पथ है सृजन का, निर्माण का; और इसी के विपरीत अशांति द्वार है विनाश का, विध्वंश का I कुछ छोटे लेकिन कारगर उपायों पर अमल करके मन की शांति प्राप्त की जा सकती है। जीवन की बहुत सी चुनौतियों के मध्य, उलझनों और भटकावों से जूझते हुए मन अशांत रहने लगता है।मन की शांति पाने के लिए प्रयास इसलिए भी आव

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सूक्ष्म जगत का आधार─ॐ कार

26 अगस्त 2015
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ॐ = अ+उ+म ( ¡ )अर्ध तन्मात्रा। ॐ का अ कार स्थूल जगत का आधार है। उ कार सूक्ष्म जगत का आधार है। म कार कारण जगत का आधार है। अर्ध तन्मात्रा ( ¡ ) जो इन तीनों जगत से प्रभावित नहीं होता बल्कि तीनों जगत जिससे सत्ता-स्फूर्ति लेते हैं फिर भी जिसमें तिलभर भी अंतर नहीं पड़ता, उस परमात्मा का द्योतक है। ऐसा मान

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22 सितम्बर 2015
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ओम

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यहाँ हर इंसान ढूंढता है अपना खुदा!

22 सितम्बर 2015
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यहाँ हर इंसान ढूंढता है अपना खुदा,बीच-बाजार खोजता है अपना खुदा,मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे, गिरिजाघरों में देता है अर्जियां,रे इंसान! क्यों अपने अंदर नहीं ढूंढता हैं अपना खुदा!

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मन की एकाग्रता

23 सितम्बर 2015
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‘‘इन्द्रियाणि प्रमाथीनि हरन्ति प्रसभं मनः’’ अर्थात प्रयत्नशील व्यक्ति के मन को भी हमारी प्रमथनशील (भ्रमित करने वाली) इन्द्रियाँ बलात् हर लेती हैं। ध्यान में मन नहीं लगता । मन भागता है, बाहर भटकता है। कभी चीटियाँ काटती अनुभव होती हैं, कभी शरीर में कहीं दर्द उठता है, तो कभी हिलने- डुलने

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पुत्र तथा पति की सुख समृद्धि का पर्व : सकट व्रत पूजन

27 जनवरी 2016
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