22 सितम्बर 2015
41 फ़ॉलोअर्स
लेखन ही हॉबी तथा पेशा है!D
की ढूंढ लिया तुझको हर एक जगह , हर कण हर छन मे बस ढूंढा ही नही तुझको अपने अंदर ,जब देखा झांकके सुकून से अपने अन्दर मुझको मिल ही गया तू मेरे अंदर
7 अगस्त 2019
वाह
28 सितम्बर 2015
सुन्दर मुक्तक !
23 सितम्बर 2015
मन की शांति पथ है सृजन का, निर्माण का; और इसी के विपरीत अशांति द्वार है विनाश का, विध्वंश का I कुछ छोटे लेकिन कारगर उपायों पर अमल करके मन की शांति प्राप्त की जा सकती है। जीवन की बहुत सी चुनौतियों के मध्य, उलझनों और भटकावों से जूझते हुए मन अशांत रहने लगता है।मन की शांति पाने के लिए प्रयास इसलिए भी आव
ॐ = अ+उ+म ( ¡ )अर्ध तन्मात्रा। ॐ का अ कार स्थूल जगत का आधार है। उ कार सूक्ष्म जगत का आधार है। म कार कारण जगत का आधार है। अर्ध तन्मात्रा ( ¡ ) जो इन तीनों जगत से प्रभावित नहीं होता बल्कि तीनों जगत जिससे सत्ता-स्फूर्ति लेते हैं फिर भी जिसमें तिलभर भी अंतर नहीं पड़ता, उस परमात्मा का द्योतक है। ऐसा मान
ओम
यहाँ हर इंसान ढूंढता है अपना खुदा,बीच-बाजार खोजता है अपना खुदा,मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे, गिरिजाघरों में देता है अर्जियां,रे इंसान! क्यों अपने अंदर नहीं ढूंढता हैं अपना खुदा!
‘‘इन्द्रियाणि प्रमाथीनि हरन्ति प्रसभं मनः’’ अर्थात प्रयत्नशील व्यक्ति के मन को भी हमारी प्रमथनशील (भ्रमित करने वाली) इन्द्रियाँ बलात् हर लेती हैं। ध्यान में मन नहीं लगता । मन भागता है, बाहर भटकता है। कभी चीटियाँ काटती अनुभव होती हैं, कभी शरीर में कहीं दर्द उठता है, तो कभी हिलने- डुलने
<!--[if gte mso 9]><xml> <w:WordDocument> <w:View>Normal</w:View> <w:Zoom>0</w:Zoom> <w:TrackMoves/> <w:TrackFormatting/> <w:PunctuationKerning/> <w:ValidateAgainstSchemas/> <w:SaveIfXMLInvalid>false</w:SaveIfXMLInvalid> <w:IgnoreMixedContent>false</w:IgnoreMixedContent> <w:AlwaysShowPlaceh