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गजब की रिश्तेदारी है नेताओं की

14 अक्टूबर 2016

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गजब की रिश्तेदारी है नेताओं की


यदि आपसे कोई पूछे कि कोई एक ऐसा व्यक्ति बताओ जो हर जाति का नागरिक हो और हर इंसान को अपना भाई-बंधु मानता हो। तो आप बेझिझक कह सकते हैं कि वह एक मात्र नेता हैं।

पिछले काफी समय से एक बात उभर कर सामने आई है। जब भी चुनाव नजदीक आने लगते हैं तो नेता और सत्ताधारी लोग गरीबों की झोपडि़यों की तरफ रुख करने लगते हैं। यही नहीं, लोगों को धर्म, जाति के आधार पर उनका हमदर्दी बनने का ढोंग करने लगते है। फिलहाल चुनावों की निश्चितता की कहीं दूर-दूर तक कोई हवा भी नहीं। लेकिन नेता अभी से ही गरीबों और निचले तबके के लोगों के भाई-बंधु बनने लग गए हैं। कभी कभी तो लगता है कि नेता ही एकमात्र ऐसा ‘प्राणी’ है जिसमें समरसता का भाव ईश्वर ने दिया है। दलित के घर में जाने पर दलित उनके भाई बन जाते हैं। जाटों के साथ बात करते हुए जाट उनके भाई बन जाते हैं। आपको बता दूं कि मैं यहां किसी पार्टी, व्यक्ति या जाति विशेष की बात नहीं कर रहा हूं। यह स्वाभाविक है। लेकिन नेताओं की ‘रिश्तेदारी’ क्यों चुनाव से पहले ही शूरू होती है और क्यों चुनाव निपटते ही खत्म हो जाती है यह सोचने की बात है। और बस सोचने से ही यह रिश्तेदारी खत्म नहीं होगी। जनता को खुद इस पर एक्शन लेना होगा। अगर, रिश्तेदारी रखनी भी है तो उनकी ‘खातिरदारी’ के लिए भी तैयार रहें।


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