एक कहावत थी "मज़बूरी का नाम महात्मा गांधी" , अब कहावत है " मज़बूरी में नाम महात्मा गाँधी ". गाँधी के विचारों की सच्चाई यही है कि उनके कातिलों को भी उनके नाम का जाप करना पड़ रहा है. सावरकर या गोडसे के नाम से नैया पार होती दिखती नहीं तो गांधी याद आ रहा है. किसी मूर्ख ने कहा कि गांधी आज जिन्दा होते तो वो आर एस एस में होते मैं भी मानता हूँ क्योकि उनके रहने से आर एस एस की विचारधारा ही बदल जाती. जब गाँधी जी इंग्लॅण्ड गए तो चार्ली चैपलिन ने वहां के प्रधानमंत्री चर्चिल से गाँधी से मिलने की इच्छा व्यक्त की तो चर्चिल ने कहा कि मिलना मुश्किल नहीं है पर एक बात याद रखना कि वो ऐसा व्यक्ति है जो अपनी बातो से सामने वाले के विचार बदल देता है, इसलिए उससे सावधान रहना. चार्ली चैपलिन की मुलाक़ात हुई गाँधी जी से और चार्ली चैपलिन ने गाँधी से सवाल किया कि आप की सब बातो से मैं सहमत हो सकता हूँ पर इस बात से नहीं कि आप मशीनों यानी मशीनी क्रांति का विरोध करो, तब गाँधी ने बड़े नरम स्वभाव से जवाब दिया कि मैं मशीनों के खिलाफ नहीं हूँ लेकिन मशीनों की गुलामी के ख़िलाफ़ हूँ. इस बात का चार्ली चैपलिन पर इतना असर पड़ा कि उसने अपनी फिल्म में इसी समस्या को दिखाया, यह था गाँधी का जादू जो हिंसा की राजनीति करने वालो के पास नहीं है. सावरकर, गोडसे के भक्तों को भी आज सरदार पटेल जिन्होंने आर एस एस पर पाबंदी लगाईं थी और बाद में शर्तों के साथ हटाई थी, उन की ज़रूरत पड़ रही है. गांधीजी जिनकी हत्या की उनकी ज़रूरत पड़ रही है. क्या तुम्हारे विचार इतने कमज़ोर है कि उन पर सत्ता हासिल नहीं की जा सकती? सवाल देश के भीतर का नहीं इससे बड़ा सवाल है विदेशों का जहाँ गाँधी और नेहरू का वर्चस्व है , कातिलों को कोई पूछता भी नहीं , इसका उदाहरण हाउदी मोदी है जहाँ मोदी जी के सामने वो गांधी नेहरू की बात कर रहे थे और मोदी जी का चेहरा देखने लायक था. आज बहुमत साथ है ,बहुमत तो कौरवों का भी था वो 100 थे और पांडव 5, लेकिन सत्य तो पांडवो के साथ था. (आलिम)