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गणपति अथर्वशीर्ष

28 जनवरी 2016

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भगवान गणेशजी की आराधना शीघ्र फलदायी कही गई है. प्रथम पूज्य श्री गणेश सभी संकटों का नाश करने वाले एवं विघ्नहर्ता हैं. गणेशजी की प्राण प्रतिष्ठित करके मंत्रों का जाप करते हुए सुगंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप व नैवेद्य अर्पण करना चाहिए. गणेश जी दुर्वा चढाने से अति प्रसन्न होते हैं अत: इनके नामों का स्मरण करते हुए इनके पूजन में दुर्वा चढ़ाना चाहिए.  लाल व सिंदूरी रंग इन्हें प्रिय है, यह लाल रंग के पुष्प से शीघ्र खुश होते हैं  भगवान गणेश का शास्त्रीय विधि से पूजन फलदायी होता है. इनका पूजन आह्वान, आसन, पाद्य, आचमनीय, स्नान, वस्त्र, यज्ञोपवीत, पुष्पमाला, धूप-दीप,  ताम्बूल, नैवेद्य तथा आरती इत्यादि के साथ संपन्न  होता है. ॐ गं गणपतये नम: मन्त्र को पढ़ते हुए पूजन में लाई गई सामग्री गणपति पर चढाने से पूजन पूर्ण होता है तथा शुभ-लाभ की अनुभूति प्राप्त होती है.  भगवान श्री गणेश जी के अथर्वशीर्ष स्त्रोत का पाठ करने से समस्त अमंगल दूर होते हैं तथा सफलता के मार्ग खुलते हैं. भगवान गणेश बुद्धि के अधिष्ठाता है इनके श्रीविग्रह का ध्यान, उनके मंगलमय नाम का जप और उनकी आराधना ज्ञान शक्ति बढाती है.  श्री गणपति अथर्वशीर्ष मंगलकारी आहे श्री गणपति अथर्वशीर्ष गणपति अथर्वशीर्ष ॐ नमस्ते गणपतये। त्वमेव प्रत्यक्षं तत्वमसि त्वमेव केवलं कर्ताऽ सि त्वमेव केवलं धर्ताऽसि त्वमेव केवलं हर्ताऽसि त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि त्व साक्षादात्माऽसि नित्यम्।।1।।  ऋतं वच्मि। सत्यं वच्मि।।2।।  अव त्व मां। अव वक्तारं। अव श्रोतारं। अव दातारं। अव धातारं। अवानूचानमव शिष्यं। अव पश्चातात। अव पुरस्तात। अवोत्तरात्तात। अव दक्षिणात्तात्। अवचोर्ध्वात्तात्।। अवाधरात्तात्।। सर्वतो माँ पाहि-पाहि समंतात्।।3।।  त्वं वाङ्‍मयस्त्वं चिन्मय:। त्वमानंदमसयस्त्वं ब्रह्ममय:। त्वं सच्चिदानंदाद्वितीयोऽषि। त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्माषि। त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽषि।।4।।  सर्वं जगदिदं त्वत्तो जायते। सर्वं जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति। सर्वं जगदिदं त्वयि लयमेष्यति। सर्वं जगदिदं त्वयि प्रत्येति। त्वं भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभ:। त्वं चत्वारिकाकूपदानि।।5।।  त्वं गुणत्रयातीत: त्वमवस्थात्रयातीत:। त्वं देहत्रयातीत:। त्वं कालत्रयातीत:। त्वं मूलाधारस्थितोऽसि नित्यं। त्वं शक्तित्रयात्मक:। त्वां योगिनो ध्यायंति नित्यं। त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं रूद्रस्त्वं इंद्रस्त्वं अग्निस्त्वं वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चंद्रमास्त्वं ब्रह्मभूर्भुव:स्वरोम्।।6।।  गणादि पूर्वमुच्चार्य वर्णादिं तदनंतरं। अनुस्वार: परतर:। अर्धेन्दुलसितं। तारेण ऋद्धं। एतत्तव मनुस्वरूपं। गकार: पूर्वरूपं। अकारो मध्यमरूपं। अनुस्वारश्चान्त्यरूपं। बिन्दुरूत्तररूपं। नाद: संधानं। सँ हितासंधि: सैषा गणेश विद्या। गणकऋषि: निचृद्गायत्रीच्छंद:। गणपतिर्देवता। ॐ गं गणपतये नम:।।7।।  एकदंताय विद्‍महे। वक्रतुण्डाय धीमहि। तन्नो दंती प्रचोदयात।।8।।  एकदंतं चतुर्हस्तं पाशमंकुशधारिणम्। रदं च वरदं हस्तैर्विभ्राणं मूषकध्वजम्। रक्तं लंबोदरं शूर्पकर्णकं रक्तवाससम्। रक्तगंधाऽनुलिप्तांगं रक्तपुष्पै: सुपुजितम्।। भक्तानुकंपिनं देवं जगत्कारणमच्युतम्। आविर्भूतं च सृष्टयादौ प्रकृ‍ते पुरुषात्परम्। एवं ध्यायति यो नित्यं स योगी योगिनां वर:।।9।।  नमो व्रातपतये। नमो गणपतये। नम: प्रमथपतये। नमस्तेऽस्तु लंबोदरायैकदंताय। विघ्ननाशिने शिवसुताय। श्रीवरदमूर्तये नमो नम:।।10।।  एतदथर्वशीर्ष योऽधीते। स ब्रह्मभूयाय कल्पते। स सर्व विघ्नैर्नबाध्यते। स सर्वत: सुखमेधते। स पञ्चमहापापात्प्रमुच्यते।।11।।  सायमधीयानो दिवसकृतं पापं नाशयति। प्रातरधीयानो रात्रिकृतं पापं नाशयति। सायंप्रात: प्रयुंजानोऽपापो भवति। सर्वत्राधीयानोऽपविघ्नो भवति। धर्मार्थकाममोक्षं च विंदति।।12।।  इदमथर्वशीर्षमशिष्याय न देयम्। यो यदि मोहाद्‍दास्यति स पापीयान् भवति। सहस्रावर्तनात् यं यं काममधीते तं तमनेन साधयेत्।13।।  अनेन गणपतिमभिषिंचति स वाग्मी भवति चतुर्थ्यामनश्र्नन जपति स विद्यावान भवति। इत्यथर्वणवाक्यं। ब्रह्माद्यावरणं विद्यात् न बिभेति कदाचनेति।।14।।  यो दूर्वांकुरैंर्यजति स वैश्रवणोपमो भवति। यो लाजैर्यजति स यशोवान भवति स मेधावान भवति। यो मोदकसहस्रेण यजति स वाञ्छित फलमवाप्रोति। य: साज्यसमिद्भिर्यजति स सर्वं लभते स सर्वं लभते।।15।।  अष्टौ ब्राह्मणान् सम्यग्ग्राहयित्वा सूर्यवर्चस्वी भवति। सूर्यग्रहे महानद्यां प्रतिमासंनिधौ वा जप्त्वा सिद्धमंत्रों भवति। महाविघ्नात्प्रमुच्यते। महादोषात्प्रमुच्यते। महापापात् प्रमुच्यते। स सर्वविद्भवति से सर्वविद्भवति। य एवं वेद इत्युपनिषद्‍।।16।।

गौरी कान्त शुक्ल

गौरी कान्त शुक्ल

जानकारी के लिए आभार

28 जनवरी 2016

प्रवीण दीक्षित

प्रवीण दीक्षित

गणेश अथर्वशीर्ष पाठ के अनन्य लाभ जब किसी जातक की जन्मकुंडली में बुध ग्रह ठीक न हो, जैसे अशुभ भावो का स्वामी हो.....अशुभ ग्रहों से द्वारा द्रष्ट हो......या शुभ भाव में होकर भी निर्बल हो........क्रूर ग्रहों के साथ युति हो रही हो.....जिसके प्रभाव से उसके जीवन में धनाभाव (आर्थिक समस्या) स्वास्थ्य की समस्या, व्यापार में निरंतर हानि जैसे परिणाम मिल रहे हो तो शास्त्र में बुधग्रह के जाप, दान व पूजा, श्री गणेश जी की पूजा, बुधवार व गणेश चतुर्थी के साथ व्रत का नियम है | प्रत्येक माह की कृष्ण पक्ष की चंद्रोदयव्यापिनी चतुर्थी तिथि को भगवान श्रीगणेश के लिए जो व्रत किया जाता है उसे गणेश चतुर्थी व्रत कहते हैं। भगवान गणेश बुद्धि, धन, ज्ञान, यश, सम्मान, पद और तमाम भौतिक सुखों को देने वाले देवता तथा सभी पाप व क्रूर ग्रहों के दोष को दूर करेने वाले देवता विघ्नहर्ता के रूप में पूजनीय हैं। भगवान गणेश की प्रसन्नता के लिए शास्त्रों में अनेक जप, मंत्र, पूजा व आरती का महत्व बताया गया है। यहाँ हम आपको आपके लाभ व सुविधा हेतु गणेश आराधना व गणेश अथर्वशीर्ष के पाठ के लाभ के साथ साथ उसके नियम व विधि भी बता रहे है | गणेश अथर्वशीर्ष के लाभ श्री महागणपति पूजन में सबसे ज्यादाप्रमुखता, विशेषता श्रीगणपति अथर्वशीर्ष की मानी जाती है। यह मूलत: भगवान गणेश की वैदिक स्तुति है, इसका पाठ करने वाला किसी प्रकार के विघ्न से बाधित न होता हुआ महापातकों से मुक्त हो जाता है। जिसमें भगवान गणेश के आवाहन से लेकर ध्यान, नाम से मिलने वाले शुभ फल आदि सम्मिलित है। इस गणपति स्त्रोत का पाठ धार्मिक दृष्टि से सभी दोष से मुक्त करता है, वहीं व्यावहारिक जीवन के कष्टो, दु:खों और बाधाओं से भी रक्षा करता है।गणपति जीं न्यायालय व्यापार राजकीय समस्त कार्य गणपति अथर्वशीर्ष के पाठ करने से पूर्ण होते है। लेकिन विश्वासपूर्वक,भाव के साथ करे अथवा किसी योग्य ब्राह्मण से करवाये ।।गणपति जी आपकी रक्षा करे।।

28 जनवरी 2016

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