साल के इस आखिरी दिन में कुछ लिख सकने की जरा भी उम्मीद न होने के बावजूद घर के पिछले दरवाजे के अनजाने में खुले होने और पीछे झील से इन महाशय के घर में घुस आने ने लेखनी को विवश कर ही दिया।
लंबा शरीर, छोटी टांगें,चपटा सर और चौड़ा थूथन लिए महाशय कब जलीय से धरीय होकर पीछे खुले दरवाजे से अंदर पधार गए हम तो किंकर्त्तव्यविमूढ़ हो गये।
इसकी आँखें छोटी, मूँछे घनी और कान छोटे तथा गोलाकार थे।
मैं हतप्रभ एकटक उसे सांसें रोके देखता रह गया।
पैरों की उँगलियाँ बत्तखों की तरह जालपाद थीं और पंजों में तेज नाखून दिख रहे थे।
झील का आखिरी कोई छोर जरूर नदी से जा मिला रहा होगा जहां से इन महाशय ने हमारे घर में पदार्पण कर हम पर महती कृपा बरसा दी।
इसके शरीर का ऊपरी भाग कत्थई लिए भूरा और नीचे का सफेद था और मैं अचरज से उसे देख रहा था जब वो शरारत से आंखें घुमाने लगा।
शरीर के बड़े वालों के नीचे छोटे और घने बालों की एक तह थी जिसका रंग सफेदी लिए हुए था।
एकबारगी संज्ञा शून्य मेरे खुले मुंह से कोई आवाज नहीं निकली पर गों गों की आवाज जैसे ही मेरे गले से निकली ,"बहुत बेहूदा है ये" जैसे कहके वो वापस दो छलांग में घर के पिछवाड़े से झील में कूद कर गायब हो गया।
मैं किधर भागूं सोचते हुए पीछे सांकल लगा के सहन से होते आगे भागकर आ गया जहां सब जाने के लिए निकले थे।
मेरे चेहरे से घबराकर छिप नहीं रही थी मैं किससे बताता कि महाशय करिश्माई तरीके से साल की विदाई देने हमारे घर पधारे थे और नये साल के आगाज की रुपरेखा बनाकर चलें गये।
मैं इनोवा की पिछली सीट पर बैठकर शब्द.इन के सारे सदस्यों को नये मेहमान जी के जाते साल का सलाम और नये साल में अद्भुत ऐहतराम का मैसेज लिखने बैठ गया।
आप सभी कुबूल फरमायें।
समाप्त!