“मानव से परिवार बना,मानव से बना घर-बार।
मानव से जाति धर्म बने,मानव से बने रिश्तेदार।
समाज बने हैं मानव से, समय ने इनको बदल दिया।
गांव,शहर,तहसील,खंड बने,प्रांत,देश से विश्व बना दिया”।
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। मनुष्य सदैव समाज में रहता है। वह अपने समाज में रहकर समाज की हर रीति-रिवाज और उस प्रथा का अनुसरण करता है जिसे हमेशा से समाज अनुसरण करता आ रहा है।
समाज में रहने वाला हर मनुष्य उस समाज में व्याप्त सामाजिक कुरीतियां, पाखंड और अंधविश्वासों का भी अनुसरण इसलिए करता है क्योंकि उसे बचपन से ही उन सभी चीजों को देखने और करने का अनुभव मिलता है।
मेरी हर कहानी, कविता और उपन्यास में सामाजिक कुरीतियां का जिक्र इसलिए किया जाता है क्योंकि आज से एक दशक पीछे मनुष्य को जिन कुरीतियों ने बर्बाद किया है वे मनुष्य की प्रगति में अवरोध पैदा करने के लिए काफी हद तक जिम्मेदार है।
इस रचना में मेरे द्वारा एक घर की कहानी को समाज की कुछ घटनाओं से सह संबंधित करके और कुछ काल्पनिक किरदारों के माध्यम से शुरू करने की कोशिश कर रहा हूं।
यह उपन्यास पूरी तरह से समाज में व्याप्त सामाजिक कुरीतियां और उनके द्वारा होने वाले प्रभावों को प्रदर्शित करता है।
एक घर में रहने वाले लोगों की जागरूकता ही उस समाज की प्रगति के लिए काफी हद तक भागीदार होता है।
समाज में एक बड़े वर्ग का अशिक्षित होना उसे अंधविश्वास और पाखंडवाद की तरफ ले जाता है।
वह हमेशा सामाजिक कुरीतियां अपनाने के लिए अग्रसर होता है इसमें वह अयोग्य बच्चों को तो धकेलता है इसके अलावा वह प्रतिभाशाली बच्चों की जिंदगी को भी बर्बाद करने मे पीछे नहीं रहता है।
इन सभी बातों को लेकर मैं इस उपन्यास को लिखने की कोशिश कर रहा हूं ।
आपसे उम्मीद करता हूं कि आपको यह बहुत अच्छा लगेगा।
मैं मेरे व्यस्त समय में से कुछ समय निकालकर आपके सामने मेरे विचार रखने जा रहा हूं।
घर घर की कहानी एक सामाजिक रिश्तों को लेकर लिखी गई रचना है जिसमें मनुष्य के जीवन में आने वाली परिस्थितियों को देखते हुए रचना के किरदारों को एक गरीब परिवार के जीवन के रुप में लिया गया है।
यह रचना आकस्मिक परिस्थितियों के अलावा उन परिस्थितियों का वर्णन करती है जो मनुष्य के द्वारा स्वयं पैदा की जाती है।
नायक की संघर्ष भरी जिंदगी किस तरह हर मोड़ पर उसे अपने कदम पीछे हटाने के लिए मजबूर कर देती है।
एक दुबला पतला सा रंग गोरा और नाक चपटी जिसके घुंघराले बाल उसकी भौतिक संरचना का ज्ञान कराते हैं। यह रचना हर घर की उस कहानी को बताती है जो वर्तमान समय में टूटते हुए रिश्तों की व्याकुलता बयान करती है।
एक घर में रहने वाले हर मनुष्य की कोई ना कोई जिम्मेदारी अवश्य होती है लेकिन जब घर के सदस्य अपनी जिम्मेदारी से भागते हैं तो दूसरे लोगों को बड़ा ही क्लेश पैदा होता है।
एक तरफ एक रचना रिश्तों को तार-तार कर देती है और दूसरी तरफ इसमें रिश्तों की अहमियत भी दिखाती है।
मनुष्य की जिंदगी में अगर उसे घमंड होता है तो वह उसकी जिंदगी में ज्यादा दिनों तक नहीं रहता है क्योंकि समय और प्रकृति ने इस दुनिया में हर मनुष्य ने सबक सिखाया है।
यदि मनुष्य के मन में प्रेम,दया,करूणा, स्नेह,सच्चाई ईमानदारी इत्यादि आदर्श बसते हैं तो मनुष्य के पारिवारिक रिश्ते खराब नही होते हैं।
मनुष्य के जीवन में जितने भी उतार चढाव आते है वे उसके लिए सफलता लेकर आते हैं क्योंकि मनुष्य हमेशा संघर्ष में ही सीखता है और संघर्ष मनुष्य को हीरा बना देते हैं।
जिस तरह हीरा के जीवन में जितनी रगड़ आयेगी उसके अंदर उतनी ही चमक आयेगी उसी तरह मनुष्य की जिंदगी में जितने ज्यादा संघर्ष रहेंगे उसकी जिंदगी में उतना ही सफलता का विकल्प होगा।
मनुष्य जब सामने वाले व्यक्ति को देखकर सोचता है कि वह मेरे से अधिक सुखी और संपन्न है लेकिन जब उसकी जिंदगी में झांककर देखा जाये तो उसे अपने जीवन का अहसास अच्छा लगता है इसके अलावा इस प्रकृति ने हर मनुष्य को हर चीज का उपयोग करने का अधिकार दिया है लेकिन मनुष्य की हीन सोच ने मनुष्य को बेकार बना दिया है जो उसकी जिंदगी को अपने आप से घृणा करने योग्य बना देता है जिसका अंतिम परिणाम मौत होती है।
यह रचना आपके जीवन में सुरक्षा नियमों और सुरक्षा साधनों का महत्व बतयेगी और बतायेगी कि थोड़ी सी लापरवाही मनुष्य की जिंदगी को मौत के करीब किस तरह ले जाती है।
“इस रचना के सभी पात्र और काल्पनिक है और इस रचना को घर और परिवार के आपसी संबंधों को लेकर रचना की है। इस रचना का संबंध न ही किसी धर्म राष्ट्र लिंग या जाति से कोई संबंध नहीं है एवं रचना का उद्देश्य किसी की भावनाओं को आहत करता बिलकुल नहीं है”
आशा करता हूं कि यह रचना आपके लिए बहुत रोचक लगेगी।
“पूरे गांव में एकदम से सन्नाटा छा गया। चारों तरफ बच्चे से लगाकर बूढे आदमी की आंखों में आसूं थे। हर शख्स की जुवान पर एक ही अल्फाज था कि हे भगवान तूने जो भी किया वह बुरा किया मासूम सी लड़की की तरफ भी नहीं देखा। एक पति की जवान बीवी और एक छोटी सी बच्ची (जिसे सांसारिक दुनिया के विषय में तनिक भी ज्ञान नहीं है ) के सिर से पिता का साया उठा लिया। हे भगवान ! ऐसी बुरी तो किसी दुश्मन के साथ भी मत करना। शाम का वक्त हो चला है लेकिन गांव के लोगों के कानों में कहीं से पूरी खबर नहीं आ रही है। सब लोग इधर-उधर से सुनकर अपने-अपने तरीके से बता रहे हैं।
किसी भी घर में अभी तक चूल्हा तक नहीं जला है। उसकी पत्नी छाती पीट-पीटकर बहुत बुरी तरह रो रही है और बेहोश पड़ी है। डॉक्टर को बुलाकर उसके ड्रिप चढ़ाई जा रही है और दूसरी तरफ उसकी मां का गला सूख गया है और वह भी घायल हो रखी है । उसके गले से आवाज नहीं निकल पा रही है। वह बेटा-बेटा चिल्लाकर बुरी तरह विलाप कर रही है। एक मासूम सी बच्ची जिसकी किसी को कोई परवाह नहीं है।
वह तो बहुत अच्छा इंसान था ,उसने तो कभी बुरे कर्म भी नहीं किये। उसे तो उसका गुस्सा का गया। वह एकदम खरी कहने वाला इंसान इस दुनिया से कैसे चला गया। हे विधाता! तेरी लीला तू ही जाने ! चारों तरफ इसी तरह की बातें हो रही थी।
“आज हमारे गांव में यह बहुत बुरा हुआ जो एक पत्नि की मांग का सिंदूर और एक मां-बाप के बुढ़ापे का सहारा और एक भाई का कंधा टूट गया”
सभी लोग फोन पर व्यस्त है। और तरह-तरह की खबरें आ रही है।
कोई कहता है कि आई सी यू में भर्ती हैं । कोई कहता है लाश आने वाली है और कोई कह रहा कि पोस्टमार्टम के बाद फल लाश आयेगी।
हर तरफ अलग-2 बातें बन रही है लेकिन कुछ क्लियर पता नहीं चल रहा है। गांव में चारों तरफ लोग बिखरे हुए हैं। सभी ने सुबह का खाना खाया है जब से खबर सुनी है, तब-से किसी ने पानी तक नहीं पीया है। क्या होगा यह भगवान जाने ?
शाम के नौ बजे के आसपास खबर आती है कि आज उसकी लाश का पोस्टमार्टम नहीं हुआ है इसलिए कल ही उसका शव लाया जायेगा।
सभी लोग दुखी होकर जहां के तहां रह जाते हैं और मृत व्यक्ति के परिवार को सांत्वना देने के लिए घर पर ही रहते हैं। पूरे गांव में इसी बात की चर्चा है और मृत व्यक्ति के घर पर अभी भी भीड़ जमा है। किसी को पैर रखने के लिए जगह नहीं है। उसकी पत्नी होश आते ही बुरी तरह रोने लगती और तुरंत बेहोश हो जाती है। यही हाल उसके मां बाप और भाई बहिन का है । कुछ लोग सोच रहे इनकी सारी रात कैसे गुजरेगी। पूरी रात-रात रो-रोकर इनमें से कोई ज्यादा बीमार हो गया तो लेने के देने पड़ जायेंगे।
“हे भगवान ! तूने बुरी बनाई”
“लाश कल आने वाली है। सर्दी का वक्त है । इस समय लाश आने की उम्मीद खत्म हो चुकी है। लोगों का आना जाना अभी बंद नहीं हुआ है और बुरी तरह हाहाकार मचा हुआ है।
कुछ घरों में बच्चे भूखे सो गए लेकिन कुछ के बच्चे अभी बुक भूख से चिल्ला रहे हैं उन्हें क्या पता कि गांव में कितनी बडी घटना हो गई है।
बड़े लोग तो यह जाते हैं लेकिन बच्चे भूखे रह नहीं पा रहे हैं। इसलिए कुछ लोगों ने चोरी छुपे खाना बनाकर बच्चों को खिला दिया है।
लेकिन बड़े लोग और नाते-रिश्तेदार अभी भी भूखे बैठे हुए हैं।
मुंह में ग्रास जायेगा भी कैसे? एक जवान लड़का जिसकी उम्र पच्चीस साल रही हो और वह अपनी असामयिक मौत का शिकार हो गया है तो गांव के किस व्यक्ति की आंखों में आसूं नहीं आयेगा और किस व्यक्ति के मुंह में अन्न का ग्रास जायेगा”
“उम्मीदों के खत्म होते ही सारे गांव में जगह-जगह अलाव जल रहे हैं और लोग धार्मिक और सामाजिक विषयों पर बातें करके इस मनहूस रात को गुजार रहे हैं”
“ मुर्दाघर में लाश रखी हुई है और लोग इस शख्स की हर अच्छाई और बुराई के बारे में चर्चा कर रहे हैं”
यह मनुष्य की जिंदगी का असली मूल्यांकन है।
इस कहानी को पढ़ने पर आपको घर की कॉमन समस्याओं का पता लग जायेगा जो किसी ना किसी रूप में हर घर में उपलब्ध होती है और एक दिन वह चिंता को चिता के रूप में बदल देती है”
जिंदगी में आपसी कलह उस घर की बर्बादी का कारण बन जाती है।और एक दिन होता है जब उस घर के जले हुए दीपक सदा के लिए बुझने लगते हैं।
यह कहानी आपकी जिंदगी में अच्छी सीख और सबक देगी।
अगर यह कहानी अच्छी लगती है तो पाठकों से अनुरोध है कि आप वास्तविक समीक्षा करें और अपना अमूल्य सुझाव दे । जिसका ससम्मान पालन और पूर्ण करने का प्रयास किया जायेगा।
इस रचना के पाठकों का, मै आभार प्रकट करता हूं। सभी के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद देना चाहता हूं कि वे अपने आसपास के माहौल इस रचना के माध्यम से अपने आसपास के माहौल से रूबरू हो जायेंगे।
"मैं मेरे सभी पाठकों से निवेदन करूंगा कि आप मेरे इस उपन्यास को पढ़कर समीक्षा और सबस्क्राइब करें।
मेरी प्रगति का असली श्रेय मेरे माता-पिता,गुरू,मेरी पत्नी,मेरे फॉलोवर्स और मेरे पाठकों को जाता है"