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घुमक्कड़ी (अंतिम भाग-5)

19 जुलाई 2022

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घुमक्कड़ी (अंतिम भाग-5)

हरिद्वार-ऋषिकेश-देहरादून यात्रा

दिनांक : 10 जून 2022

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सुबह जल्दी उठकर हम तैयार हो गए, क्योंकि कि आज हमें देहरादून के लिए निकलना था, और जैसी हरिद्वार-ऋषिकेश में गाड़ियों की भीड़ थी, उससे लग रहा था कि अगर सुबह जल्दी देहरादून के लिए नहीं निकले, तो गाड़ियों के जाम में फंस जाएंगे। वैसे हमारे पास मोटरसाइकिल थी, इसलिए जाम का इतना डर नहीं था, परन्तु अगर आपको पहाड़ो की सड़कों पर बाइक चलाने का मजा लेना है, तो सबसे अच्छा समय है सुबह-सुबह जल्दी, जब सूरज उदय हो रहा हो या देर शाम जब सूरज अस्त हो रहा हो, इन दोनों समय ही सूरज की लाल रोशनी से नहाएं पहाडों को देखना बड़ा सुखद अनुभव होता है। 

हम ऋषिकेश से ही नाश्ता करके चल पड़े थे, देहरादून की तरफ। ऋषिकेश से देहरादून लगभग 43 किलोमीटर है। 4-5 किलोमीटर वापस हरिद्वार रोड़ पर आकर आप देहरादून की रोड़ पकड़ सकते है। ये 43 किलोमीटर का सफर आपके जीवन के सबसे अच्छे सफर में से एक हो सकता है। रोड़ बहुत अच्छी बनी हुई है। रास्ते के दोनों तरफ जंगल और बड़े-बड़े पेड और बीच-बीच में रोड़ पर बने पूल आपको एक ऐसे अनुभव और आनंद में ले जाते है, जिसका वर्णन शायद मैं शब्दों में करने में असमर्थ हूँ। वैसे भी हम राजस्थान वालों को ऐसे मौके बहुत कम मिलते है, क्योंकि हमारी सड़कों के दोनों तरफ तो खूब सारी खाली जगह और मिट्टी होती है, जिसमें दूर-दूर तक खुली सड़क को देखा जा सकता है, और आप जैसलमेर, बाड़मेर की सड़कों पर चले तो आपको को कई किलोमीटर तक पेड़ देखना भी नसीब नहीं होगा। खैर कभी आप को मौका मिले तो ये अनुभव में आपके के लिए छोड़ता हूँ, आप स्वयं अनुभव करें। रास्तें में डोईवाला, हर्रावाला, चिद्दरवाला गाँव आते है तथा लच्छीवाला नेचर पार्क रास्ते की सुंदरता को ओर बढ़ा देता है। लगभग एक घंटे बाद हम देहरादून पहुंचे। सबसे पहले आईएसबीटी देहरादून के पास एक होटल में कमरा बुक किया और वहाँ हमारा सामान रख कर थोड़ा आराम कर, हम आगे का कार्यक्रम बनाने लगे, तय हुआ कि आज केवल यहाँ कि दो-तीन जो भी सबसे अच्छी जगह है, और जो एक रुट पर है, केवल उन जगहों का ही भ्रमण किया जाएगा। तो हमें गूगल देवता को पूछा और रुट चार्ट बनाने लगे। सबसे पहले इंडियन फारेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट देहरादून, फिर रोबर्स केव गुच्चुपानी, उसके बाद मालसी डियर पार्क और अंत में सहस्त्रधारा देखने का कार्यक्रम तय हुआ। सबसे पहले शहर के ट्रैफिक के बीच में से निकलते हुए हम इंडियन फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट पहुँचे, मैन गेट पर प्रवेश की औपचारिकता पूर्ण कर तथा प्रवेश शुल्क देकर आप पूरा इंस्टिट्यूट घूम सकते है। यहाँ कि इमारतें केवल ईटो से बनाई हुई है, अंग्रेजों के काल में बना यह संस्थान आज भी वैसे का वैसा बना हुआ है, बड़ी ही शांत और सुंदर जगह है। हाँ, बताना भूल गया यहाँ अंदर जाने के बाद लोग म्यूजियम का टिकिट कटवा कर उसे देखने जाते है, परन्तु अगर आप बॉटनी मतलब पादप विज्ञान के विद्यार्थी नहीं है तथा आप इस विज्ञान में रुचि नहीं रखते है, तो आपको इस म्यूजियम में कुछ भी समझ नहीं आएगा, हमारे लिए तो ये म्यूजियम देखना मतलब, काला अक्षर भैस बराबर ही था। हाँ यहाँ की कैंटीन अच्छी है, जहाँ आप नाश्ता या चायपान कर सकते है। हमनें भी हल्का सा नाश्ता किया और मालसी डियर पार्क की तरफ चल पड़े। वैसे में सुझाव देना चाहता हूँ कि अगर आप डियर पार्क जा रहे है तो रास्ते ने गुच्चुपानी पहले चले जाएं, वरना हमारी तरह आपको उल्टा चलना पड़ेगा, हम पहले पार्क चलें गए, उसके बाद वापस उसी रास्ते पर गुच्चुपानी आये, जो कि व्यर्थ में लंबा रास्ता हो जाता है। मालसी डियर पार्क का नाम ही देहरादून ज़ू है। जहाँ आपको बहुत सारे प्रकार के साँप, हिरण, तेंदुआ, मगरमच्छ, और तोते और चिड़िया देखने को मिल जायेंगे। यहां सबसे आकर्षक मुझें मछलियों का एक्वेरियम लगा, जिसमें आपको कई प्रकार की मछलियां जैसे शार्क, पियाना, गोल्ड फिश और भी बहुत सारी रंग-बिरंगी मछलियां देखने को मिलेगी, अगर आप परिवार के साथ घूमने जाते है, तो ये जगह आपके बच्चों को बड़ी अच्छी और मनोरंजक लगेगी। इसके बाद हम रॉबर्स केव पहुँचे। जो कि देहरादून से 8 किलोमीटर दुर है। इस जगह अगर भीड़ ना हो तो ये बहुत सुंदर जगह है, जहाँ एक लम्बी गुफा के अंदर से जो कि ऊपर से खुली हुई है, पानी बहता हुआ आता है। ये गुफा आप में बड़ा आकर्षण पैदा करती है। रॉबर्स केव का अन्य नाम “गुच्चुपानी” है और रॉबर्स केव को स्थानीय लोग अधिकतर गुच्चुपानी के नाम से ही जानते हैं। रॉबर्स केव एक अंग्रेजी शब्द है, जिसका हिंदी अर्थ “डाकुओं की गुफा” होता है। भारत में ब्रिटिश शासन के समय इस गुफा में सुल्तान नामक एक खतरनाक डाकू रहता था, जो अंग्रेजों का सामान लुटकर इस गुफा में छुपा देता था। इसी वजह से इस गुफा का नाम “रॉबर्स केव” पड़ गया। रॉबर्स केव की लंबाई 600 मीटर है। इस गुफा के अंदर कुछ झरनें भी है, जो पहाड़ों से निकलते हुए चट्टानों के अंदर से आते है। यहाँ अगर आप बिना जूते और चप्पल के पानी के अंदर नंगे पांव चलते है, तो उसका आनंद ही अलग है। वैसे यहाँ 10-10 रुपये में किराये पर चप्पल और नहाने के लिए कपड़े भी मिलते है। यहाँ बाहर खाने-पीने के लिए रेस्टोरेंट बने हुए है, जहाँ बैठकर आप खाने-पीने का आनंद ले सकते है। हम दो घंटे से अधिक समय तक यहाँ रुके और अपने सफर के अंतिम पड़ाव सहस्त्रधारा की तरफ आगे बढ़ चले। इतनी देर तक बाइक चलाने तथा शहर की भीड़ में चलने के कारण मेरे हाथ दुखने लगे थे। अब बाइक चलाने का जिम्मा दोस्त का था, मै पीछे बैठकर रास्ते का आनंद लेने लगा। अगर मौसम अच्छा हो, धूप ना हो तो सहस्त्रधारा का ये रास्ता बहुत मजेदार और सुंदर है। पहले आपको पहाड़ पर चढ़ना पड़ता है उसके बाद वापस आप पहाड़ से उतर कर पहाडों के बीच मे स्थित सहस्त्रधारा पहुँचते है। बस यहाँ बाइक या गाड़ी आराम से चलाएं, रास्ता थोड़ा घुमावदार है। जिसके कारण कोई भी दुर्घटना होने की संभावना रहती है। यह जगह देहरादून से लगभग 14 किलोमीटर दूर है। सहस्त्रधारा एक लोकप्रिय आकर्षण है, जो अपने औषधीय और चिकित्सीय महत्व के लिए प्रसिद्ध है। सहस्त्रधारा उत्तराखंड के सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में से एक है। यहां के पानी का तापमान आसपास के तापमान से थोड़ा कम है। इसकी सुरम्य सुंदरता दूर-दूर से यात्रियों को आकर्षित करती है। यहां एक मजेदार रोपवे की सवारी पर पहाड़ों के शानदार दृश्य का आनंद भी लिया जा सकता है। तथा पहाड़ों के बीच बना महादेव का मंदिर भी मन में श्रद्धा उत्पन्न करता है। यहाँ पहाड़ों में से जगह जगह निकलते पानी की झरनें आपको अनायास ही अपनी ओर खिंचते है। यहाँ छोटे-छोटे पानी की कुंड बने हुए है जहाँ आप स्नान करके अपनी थकान मिटा सकते है। हमनें भी थोड़ी देर नहाने का आनंद लिया और उसके बाद महादेव के दर्शन किये। ये आज के दिन और सफर का अंतिम पड़ाव था, इसलिए हम यहाँ घंटो बैठे रहे और केवल प्रकृति के रहस्यों, सुंदरता और रमणीयता को ह्रदय में बसाते रहे। 

शाम होने को थी, इसलिए हम वापस देहरादून अपनी होटल को चल दिये, पूरे शहर को पार करते हुए और गूगल देवता के आशीर्वाद से देहरादून की छोटी-छोटी गलियों का भ्रमण करते हुए हम होटल पहुँचे। 

जहाँ से हमनें अगले दिन वापस हमारे मूल गंतव्य स्थान सीकर, राजस्थान पहुँचना था।

जीवन यात्रा में बाहरी यात्रा का एक पड़ाव पूर्ण हुआ। 

धन्यवाद।


• डॉ. अनिल 'यात्री'

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