घुमक्कड़ी (भाग- 3)
हरिद्वार-ऋषिकेश-देहरादून यात्रा
दिनांक : 8 जून 2022
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अगले दिन सुबह सात बजे नींद खुली तो सबसे पहले खिड़की में से गंगा को निहारा। सुबह-सुबह गंगा के प्रवाह और उसकी कलकल की ध्वनि एक अलग ही रोमांच और ताजगी भर देरी है। होटल के इस कमरे में गंगा जी की तरफ की पूरी दिवार पर शीशे की खिड़की लगाई गई है, इसलिए खिड़की खोलने पर सुबह की ताजी हवा और नदी के प्रवाह की ध्वनि स्पष्ट सुनाई देती है। यही बैठे-बैठे चाय का आनंद लिया गया और हरिद्वार में रहने वाले लोगो से थोड़ी ईर्ष्या करने लगें। कि ये कितने सौभाग्यशाली है, जिन्हें रोज ही ये मौका मिलता है। थोड़ी देर बैठे रहने के बाद हम तैयार हुए आगे के सफर के लिए और हरिद्वार में ही नाश्ता करके ऋषिकेश के लिए बस पकड़ने के लिए मुख्य सड़क तक आ गए। हरिद्वार से ऋषिकेश जाने वाली मुख्य सड़क पर आने के बाद आपको बहुत सारे साधन मिल जाते है, ऋषिकेश जाने के लिए। यहाँ से ऑटो वाले भी 60-70 रुपये में आपको ऋषिकेश छोड़ देते है। जल्दी ही हमें एक बस मिल गई, बस ने हमें लगभग 50 मिनट बाद ऋषिकेश के बस स्टैंड के ऊपर छोड़ दिया। वैसे तो हरिद्वार से ऋषिकेश केवल 23 किलोमीटर है, परंतु गाड़ियों का जाम होने के कारण इतना समय लगा। स्वयं के साधन से अगर सड़क पर जाम ना मिले तो आप 25 से 30 मिनट में ऋषिकेश पहुँच सकते है। ऋषिकेश में हमने एक दिन पहले से ही ऑनलाइन होटल बुक कर रखा था, क्योंकि जिस प्रकार से हरिद्वार में भीड़ थी, उसको देखते हुए ऋषिकेश में भी होटल मिलना मुश्किल लग रहा था। हमारा होटल तपोवन में था तो वहाँ के लिए हमने इलेक्ट्रिक रिक्शा किया जिसने हमें होटल के सामने उतार दिया। होटल में प्रवेश की सारी औपचारिकता पूर्ण कर हमनें सामान कमरें में रखा। आजकल एक नया तरीका आया है। जिसमें एक कमरे में होस्टल की तरह कई सारे ऊपर नीचे बेड लगे होते है, जहाँ आप साझेदारी में चार या छः या दस लोग एक कमरे में रुक सकते है। हमनें चार बेड वाला कमरा जिसे अंग्रेजी में डोम कहते है, बुक किया हुआ था। होटल में प्रवेश की औपचारिकता पूरी करते हुए पता चला था कि यहाँ जो मैनेजर महोदय काम करते है, वो पहले जयपुर में भी काम किये हुए है। उनसे बात करने पर थोड़ी बहुत जानकारी उनसे निकल आयी, तो हमने जानकारी का फायदा उठाते हुए उन्हें ही निवेदन कर दिया कि अगर आप हमें यहाँ दो दिन के लिए कोई मोटरसाइकिल उपलब्ध करवा दे तो मेहरबानी होगी। उन्होंने तुरंत पंद्रह मिनट में हमारे लिए एक बुलैट मोटरसाइकिल की व्यवस्था कर दी। यहाँ ऋषिकेश में 800 से 1200 रुपए तक पूरे दिन के लिए मोटरसाइकिल या स्कूटी जैसे साधन उपलब्ध हो जाते है, जिनमें आप अपनी सुविधा के अनुसार तेल डलवाकर घूम सकते है। हमनें भी बाइक उठायी और सबसे पहले चल पड़े श्री नीलकंठ महादेव की पहाड़ी की तरफ। ऋषिकेश से नीलकंठ महादेव पच्चीस किलोमीटर के करीब पड़ता है। परंतु रास्ते की खूबसूरती और साथ साथ बहती गंगा मय्या के कारण सफर बहुत जल्दी कट जाता है। पता ही नही चलता कब आप महादेव की शरण में पहुँच जाते है। रास्ते मे गाड़ियों की थोड़ी भीड़ तो थी, परन्तु हम आराम से नीलकंठ महादेव पहुँच चुके थे। वहाँ पहुँचे तो पता चला पूरा ऋषिकेश ही महादेव के दर्शन के लिए लाइन में लगा है। जब लाइन में लगने के लिये लाइन के साथ साथ पीछे जाने लगे तो लाइन तो शिवजी के नागराज की तरह खत्म ही नहीं हो रही थी। पता चला लाइन में लगकर तो दर्शन का नम्बर पाँच घंटे पहले नहीं आएगा। तो अब धैर्य ने जवाब दे दिया और हम दोनों दोस्तो ने तय किया कि शिवजी को यही से हाथ जोड़ कर चला जाये। हम मुख्य मंदिर से निकल भी पड़े, फिर अचानक मुझें पता नहीं क्या सूझी मैंने हमारे दोस्त को कहा, कि अब आपकी परीक्षा है, आप अपने पुलिस स्टॉफ का होने का कुछ तो लाभ दिलवाइए। तो उन्होंने कहा कोशिश कर सकता हूँ, बात बनी तो ठीक वरना यहीं से हर हर महादेव कह कर चल पड़ेंगे। मैंने कहाँ आप प्रयास तो करें, तो वो वहाँ ड्यूटी पर तैनात पुलिस स्टॉफ के पास गये और अपना परिचय देते हुए उनसे दर्शन करवाने का आग्रह किया। पुलिस वाला कोई भला मानुष था, तो उसने पांच मिनट का नाम लिया और बैठने को कहा, हम वही बैंच पर बैठ गए। कुछ देर में वो मंदिर के अंदर जाकर आया और हमें सीधे यहीं से मंदिर के अंदर जाने का इशारा किया। जहां से लोग दर्शन करके वापस आ रहे थे, हम उसी तरफ से अंदर चल दिए, अंदर जाकर जैसे ही मुड़े सामने ही श्री नीलकंठ महादेव विराजमान थे। लोग वहां जल चढ़ा रहे थे, परंतु हम तो साथ में कुछ लाये ही नहीं थे, तो हमनें पास की नल से हाथों में ही पानी भरा और उसे ही गंगा जल मानकर महादेव को अर्पित कर दिया। कहते है ना कि "मन चंगा तो कठोती में गंगा।" आज उस मुहावरे का सही अर्थ भी अनुभव कर लिया। आराम से दर्शन करने के बाद और पुलिस वालों को धन्यवाद देते हुए हम मंदिर के बाहर आ गए थे। मंदिर से बाहर निकल कर जैसे ही बाइक लेने के लिए स्टैंड की तरफ बढ़े, रास्ते में एक स्थानीय महिला ने तरबूज और ककड़ी की दुकान लगा रखी थी, तो उसको देखते ही मन में स्वाद लेने की इच्छा जागृत होने लगी, सोचा चलो पहले ये काम निपटाया जाएं। बीस-बीस रुपये की दो प्लेट ली गयी, प्लेट साफ करने के बाद हमने एक-दूसरे की तरफ देखा तो अघोषित सहमति बनी की एक-एक और ली जाएं, एक-एक प्लेट और साफ करने के बाद पेट और मन दोनों को तृप्ति प्राप्त हुई। अब हम चल पड़े धीरे-धीरे वापस ऋषिकेश की ओर, रास्ते में कई जगह मुख्य सड़क से नीचे उतर कर रिवर-राफ्टिंग करने वाले बहुत से दल जा रहे थे, एक जगह हमनें भी मोटरसाइकिल को एक दल के पीछे-पीछे नीचे उतार दिया, नीचे उतर कर सफेद मिट्टी से बने गंगा के किनारे को देखना और वहाँ उस मिट्टी में नंगे पाँव चलना भी असीम शांति देने वाला अनुभव था। वही किनारे पर एक टपरी वाले के पास बैठकर चाय और मट्ठी का स्वाद लिया गया। अगर गंगा के प्रवाह का वेग और लहरों के हिलोरें देखने है, तो आप एकदम सही स्थान पर है। ऋषिकेश से नीलकंठ महादेव के रास्ते पर नदी के किनारे अनेक रिवर-कैम्प भी लगे हुए है, जहाँ आप दो दिन और एक रात के हजार से पंद्रह सौ रुपये चुकाकर रहने और खाने का आनंद ले सकते है। हम थोड़ा आराम करने के बाद सीधे ऋषिकेश की तरफ बढ़ लिए, नीचे आने पर एक बड़े पूल वाला तिराहा आता है जहाँ से आप सीधे लक्ष्मण झूला और राम झूले की तरफ भी जा सकते है। हम सीधे रास्ते पर लक्ष्मण झूले की तरफ चल दिये। यहाँ एक बात ध्यान रखें, लोग पहाड़ों के नजारे लेने के चक्कर में अपना हेलमेट उतार देते है, परन्तु ध्यान रखें यहाँ पुलिस चौकी भी है, जो आपको पकड़ के आपका चालान भी काटेंगे और आपने वैसे तो कई जगह पढ़ा भी होगा, "हेलमेट एक संस्कार है जो पुलिस के चालान और मौत दोनों से बचाता है।" इसलिए पहाड़ो में कभी भी अपना हेलमेट ना उतारे।
शाम के लगभग पांच बज चुके थे, और हम लक्ष्मण झूले के पास पहुँच चुके थे, यहाँ तक मोटरसाइकिल ले जाने की कोई मनाही नहीं है, बस आप एक सधे हुए मोटरसाइकिल चालक होने चाहिए, अन्यथा उस अनियंत्रित भीड़ में आप जरूर फंस सकते है, साथ ही किसी ना किसी को चोट भी पहुँचा सकते है। वैसे सबसे अच्छा है, कि आप साइड में मोटरसाइकिल को कही खड़ा करने पैदल ही घूमने का आनंद ले। वैसे अब लक्ष्मण झूले पर पहले की तरह अधिक भीड़ नहीं रहती, क्योंकि कई महीनों से झूला बंद पड़ा है, तथा उसकी मरम्मत का काम चल रहा है। इसलिए हम भी यहाँ थोड़ी देर रुकने के बाद राम झूले ही तरफ चल पड़े, मोटरसाइकिल को एक तरफ खड़ी करके पैदल ही झूले पर चल पड़े, परन्तु आज तो इस झूले पर पैदल चलना भी दुष्कर हो रहा था। उम्मीद से अधिक भीड़ और झूले पर खड़े होकर हमारी तरह फ़ोटो खिंचवाने वाले लोगों ने झूले पर पैदल चलना भी बहुत कठिन कार्य बना दिया था। ऊपर से इतनी भीड़ होने पर झूला हिलता हुआ भी कुछ ज्यादा ही महसूस हो रहा था, उसमें भी कई महाशय तो ऐसे थे, जो अपनी मोटरसाइकिल और स्कूटी सहित ही झूला पार कर रहे थे। ऐसे लोगों का भी भगवान ही भला करें।
अब झूले से गंगा जी को पार करके हम परमार्थ निकेतन वाले घाट से सामने वाले घाट पर आ चुके थे, यहाँ गंगा आरती की तैयारी चल रही थी, वैसे ऋषिकेश की सबसे भव्य गंगा आरती का आयोजन परमार्थ आश्रम वाले घाट पर होता है, परन्तु अन्य घाटों पर भी अलग अलग आश्रम के लोग आरती का आयोजन करने लगे है। थोड़ी देर यह बैठने के बाद हमनें देखा कि नाव के द्वारा लोग इस घाट से उस मुख्य घाट की तरफ जा रहे है, तो हम भी पास के काउंटर से टिकट कटवाकर नाव में सवार हो लिए और उस आधुनिक केवट ने हमें कलयुग में गंगा पार करवाई। अब नाव से उतर कर घाट के ऊपर बने बाजार में घुमाई शुरू की गई, यहाँ कपड़े और हैंडीक्राफ्ट की बहुत सारी दुकानें है जहाँ से आप अपनी पसन्द के अनुसार कपड़े और घर की सजावट के लिए समान ले सकते है। घूमते-घूमते सामने गीता प्रेस वालों की दुकान दिखाई दी, तो काफी दिनों से मन मे बसा हुआ विचार हिलोरें लेने लगा, कि कोई सरल भाष्य और प्रमाणिक उपनिषद से सम्बंधित पुस्तक पढ़ी जाएं। दुकान में जाकर वहां पुस्तक खरीदने वाले लोगों का सहयोग करने वाले कार्मिक से पांच मिनट की गहन चर्चा के बाद एक "उपनिषद सार" नामक पुस्तक खरीदी गई। अब थोड़ी थकान महसूस होने लगी थी, तो गंगा स्नान कर थकान मिटाने का निर्णय हुआ। यहाँ के घाट हरिद्वार की तुलना में अधिक साफ-सुधरे और कम भीड़ वाले थे, इसलिए आराम से गंगा स्नान का पूरा आनंद लिया गया। जब नहा रहे थे, तो पास में नहाते एक भाई साहब ने बताया कि यहाँ पास में ही गीता भवन है, जहाँ बहुत अच्छा और सात्विक भोजन मिलता है परन्तु भोजन केवल शाम को सात से आठ बजे के बीच ही चलता है। इसलिए हम पानी से बाहर आये और कपड़े बदल कर खाने के लिए गीता भवन की ओर चल पड़े। आराम से सत्तर रुपये में बढ़िया भोजन करने के बाद हम पास वाले परमार्थ निकेतन आश्रम देखने चले गए, बहुत ही सुंदर निर्माण किया गया है तथा व्यवस्था भी अच्छी की गई है। परंतु इस आश्रम में रुकने के लिए आपको ऑनलाइन ही बुकिंग करनी पड़ती है, जो कि अधिकांशतः इस समय पूर्ण ही होती है। ऋषिकेश में आने वाले अधिकांश सभी सेलिब्रिटी और बड़े व्यवसायी लोग इसी आश्रम में रुकना पसंद करते है। यहाँ के घाट पर शाम पांच-छः बजे से ही गंगा आरती में शामिल होने वाले लोगों की भीड़ लग जाती है। हम जब घाट पर पहुँचे तो पहले से ही वहाँ बहुत अधिक भीड़ थी, सो हम पास के दूसरे घाट पर जाकर आराम से बैठकर गंगा आरती और गंगा नदी में दिखाई देती रोशनियों का आनंद लेने लगे। बहुत देर तक बैठे रहने के बाद घाट पर ही बने एक सुंदर से कॉफ़ी हाउस में कॉफी पीने के लिए चल पड़े, गंगा जी को निहारते हुए कॉफ़ी पीने का मजा ही कुछ अलग सा है, कॉफ़ी का स्वाद ही अपने आप बढ़ जाता है। रात को करीब बारह बजे के आसपास हमनें अपनी बाईक उठायी, तो होटल आकर सीधे कमरे और पलंग का रुख किया। बेड पर जाते ही थोड़ी देर में गहरी नींद के समन्दर में गोते लगाने लगे थे।
(शेष भाग- चार में)
• डॉ. अनिल 'यात्री'