आज के जमाने में तो घुंघट भाग्य ही कोई निकालता हो मगर पुराने समय में शादी के समय से ही औरतों को इस घुंघट के पीछे छिपा देते उनकी वे वेदनाऐ और खुशी आसुं सब वे अपने घूंघट के पीछे छिपा लेती थी कभी-कभी जब मन का होता तो उनकी निश्चल हंसी यह घूंघट भी नहीं रोक पाता था।
हमने हंसते हुए देखा है घुंघट के पीछे अपनी मां को ,अपनी सास को।
जब उनके बच्चे,
जब उनके पोते पोती प्रगति की सीढ़ी पर चढ़े ।
जब वे ना पढ़ पाए,
मगर नई सोच के साथ उन्होंने अपनी लड़कियों को अपनी पोतियों को सफलता की सीढ़ी चढ़ते हुए अपनी मंजिल की ओर जाते देखा।
उनकी निश्चल हंसी आज भी याद आती है।
उस घूंघट के पीछे कि वह हंसी आज भी याद आती है।
उन्होंने खुद ने भले घुंघट करा हो जिंदगी में जिंदगी भर।
मगर हम को आजादी की सांस लेने दी, आज भी याद आती है।
क्या दिन थे वह भी सासू मां को गए तो अभी 9 महीने ही हुए जब भी घर में कोई आता उनका घुंघट आज अभी तक भी उनके मुंह पर आ जाता था। उस घूंघट के पीछे की हंसी आज भी याद आती है।
स्वरचित सत्य 23 अक्टूबर 21