क्या समय था कोरोना आया।
साथ में लॉकडाउन को लाया ।
सबको अपनी जान की परवाह। इसलिए सब तरफ की गली मोहल्ले घर सब कुछ सूने पड़े थे।
सब तरफ नील बटा सन्नाटा था। स्कूल बंद ऑफिस बंद थिएटर बंद मॉल बंद बाजार बंद दुकानें बंद होटल बंद बिल्कुल चुप सड़कें तो बिल्कुल चुप थी ।
शादियों में भी कोई शोर शराबा नहीं बहुत सन्नाटे से शादियां हो रही थी। किसी के स्वर्गवास पर भी लोगों का आना जाना नहीं ।
कोई शोर शराबा नहीं सब तरफ सन्नाटा सन्नाटा सन्नाटा निल बटे सन्नाटा।
अभी सब चालू हुआ तो भी मन में बहुत डर है।
लगता है कहीं वापस हम इसकी चपेट में ना आ जाए।
इसीलिए बिना मास्क लगाए इधर-उधर नहीं जाते ।
घर में लोगों को आने पर भी थोड़ा परेशान होते हैं ।
एकदम से पहले जैसा माहौल तो नहीं हो पाएगा।
कोरोना कालका सन्नाटा सबके दिमाग पर हावी हो गया है।
पता नहीं है कब जाएगा निल बटे सन्नाटा ।
जब मार्केट में जाते हैं कहीं भीड़ होती है कोई मनवहां उतरने का नहीं करता। लगता है अपने घर वापस चलो।
कहीं भीड़ में वापस किसी बीमारी की चपेट में ना आ जाए।
क्या समय आ गया है लोगों को एक दूसरे की इस से मिलने की जगह भी सन्नाटा पसंद आने लगा है।
जो लोग खुलकर मिल भी लेते हैं मगर वापस एक हल्की खांसी होने पर भी मन में घबरा जाते हैं कहीं हम कोरोना की चपेट में तो नहीं आ गए ।
अब तो यही दुआ करते हैं कि यह सन्नाटा वापस ना आए और जिंदगी अच्छी तरह चलती रहे।
निल बटे सन्नाटा अच्छा नहीं लगता चलती फिरती जिंदगी ही अच्छी लगती है। स्वरचित वैचारिक रचना 11 नवंबर 21