शरद पूर्णिमा, जिसे कोजागरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा भी कहते हैं; हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन मास की पूर्णिमा को कहते हैं। ज्योतिष के अनुसार, पूरे साल में केवल इसी दिन चन्द्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है। ... इसी दिन श्रीकृष्ण ने महारास रचाया था। मान्यता है इस रात्रि को चन्द्रमा की किरणों से अमृत झड़ता है
यह तो शरद पूर्णिमा की मान्यता है कि उस दिन रात्रि में चंद्रमा की शीतल किरणों से अमृत झड़ता है। हम छोटे थे तब हमारी माताजी शक्कर का चपड़ा शक्कर का कांच बोलते थे। खीर ,दूध पोहा, और ना जाने बहुत सारी चीजें बनाती, और चंद्रमा की चांदनी में रखती।
और हमको 108 बार उस चांदनी में सुई पिरोने का कहते उनकी आंखें मजबूत आंखे तेज होती हैं। और हम लोग आपस में कंपटीशन करते हुए छत के ऊपर बैठकर के 108 बार सुई पिरोते। फिर हम सब बच्चे मिलकर बहुत डांस करते बहुत गाने गाते और बहुत मौज मस्ती करते। वापस अगली शरद पूर्णिमा का इंतजार रहता। जब हम गुजरात में आए ,तो यहां पर शरद पूर्णिमा पर हम हॉस्पिटल स्टाफ सब मिलकर के नर्मदा नदी के किनारे पिकनिक पर जाते।
वहीं पर सब बनाते हैं आलू कोफ्ते वगैरह और दूध पोहा बनाते ।
बहुत गरबे करते डांस मस्ती और बहुत मजे से शरद पूर्णिमा का आनंद लेते थे ।
आज शरद पूर्णिमा है। मुझे सारी पुरानी बातें याद आ रही है। बच्चों को शक्कर का कांच बहुत अच्छा लगता था। मगर अब तो बच्चे भी बड़े हो गए। अब वह अपने बच्चों को खिलाते होंगे बना करके। यही जिंदगी है। जिंदगी चलती रहती है। मगर यादें भी हमारे साथ साथ चलती है।
शरद पूर्णिमा के रात पर सुबह से गरबा याद आ रहा है ।जो हम हमेशा गाते थे ।
शरद पूनम नी रातलड़ी नेगरबा नो घोंघाट ।
सरखे सरखी साहेली ने गरबा रमिये आज।
शरद पूर्णिमा की मधुर याद के साथ, आप सबको शरद पूर्णिमा की शुभकामनाएं।