आक्रोश करो आक्रोश करो
झूठ, फरेब, चोरी, अधिकारों के हनन विरुद्ध के आक्रोश करो।
इतनी अराजकता फैली है उसके सामने आक्रोश करो।
अगर हम अधिकारों के सामने। अराजकता के सामने।
गलत के सामने।
क्रोध नहीं करेंगे।
आक्रोश नहीं करेंगे ।
कदम नहीं उठाएंगे तो सब ऐसा ही चलता रहेगा।
जैसी दुनिया चल रही है चलती रहेगी। है हिम्मत तो इसको बदलने के लिए। थोड़ा आक्रोश मन में लाकर सही दिशा में काम करके उसको बदला जा सकता है।
क्योंकि बदलाव तो अपने से ही करना पड़ता है।
किसी गलत रिवाज को बदलने के लिए मन में उसके प्रति आक्रोश तो चाहिए ही, साथ ही उसको लोगों को समझाने की जरूरत भी होती है।
कि इसके सामने सही क्या है।
उसके लिए गुस्सा करना पड़े तो करें। मगर गलत बात को ना माने उसके सामने आक्रोश करो गलत बात के सामने आक्रोश करो। और उन रिवाजों को हटाओ मैंने ऐसा बहुत करा है। इसीलिए मैं लिख रही हूं।
बहुत सारे ऐसे रिवाज जिनको मैंने पसंद नहीं करा। उनको बचपन से लेकर के अभी तक बहुत बार हटाया है।
कहते हैं ना कुछ भी काम की पहल खुद को ही करनी पड़ती है।
स्वर्ग देखना है तो मरना पड़ता है। वही वाला हाल है अगर हमको कुछ बदलाव करना है तो शुरुआत खुद से ही करनी पड़ती है।
पहल करेंगे शायद बुरे भी बनेंगे।
मगर करेंगे तभी होगा ।
इसीलिए सही जगह आक्रोश करो।
सही बात के लिए आक्रोश करो।
और जड़ से गलत बात हटाओ और परिणाम सुखद परिणाम पाओ। उसके लिए थोड़ा सहन करना हो तो सहन भी करो मगर समझा वट गुस्सा और जबरदस्ती से वे रिवाज हटाओ।
स्वरचित लेख 13 नवंबर 21