वह रोती हैं और मन हीं मन खुद को कोसती हैं वह वहाँ के सारे बंधन तोड़ कर भाग जाना चाहती हैं पर वह असहाय एक कटे पेड़ की भाति गिर पड़ती हैं उसका खुद पर भी बस नहीं चलता औरो की तो वह सोचे भी क्यो?
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रात भर होटल में वेद सो नहीं पाता हैं उसकी वैचेनी बडती हीं जाती हैं वह विचारो में न जाने क्या क्या सपने बुनता हैं उसे खुद पर पूरा भरोसा होता हैं कि वह सुबह न सिर्फ खुद की पहचान कर पायेगा वह खुद के विषय में जान पायेगा वरण वह इस जगह का रहस्य भी जानेगा जो उसको अपनी ओर खीच रहीं होती हैं उस जगह से यह अनजाना लगाव क्यो हैं
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सुबह हो भी नहीं पाती हैं कि तड़के वेद के फोन की घंटी बजती हैं वेद फोन उठाता हैं सामने से बड़ी घबडाई हुई आवाज़ में दिव्या बोलती हैं वेद पापा की तबीयत बहुत खराव हैं वह कल रात से हीं सिटी होस्पीटल में हैं उन्हें अटेक आया था और अब उन्होंने आपसे मिलने की जिद पकड़ रखी हैं न जाने ऎसी कोनसी बात हैं कि वह आपसे हीं करना चाहते हैं अगर आप न आये तो उनके मन की बात मन में हीं रह जायेगी इसी लिये मजबूरन आपको फोन किया हैं ।
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मैं आता हूं आप चिन्ता न करें जितनी जल्दी हो सकेगा मैं वहाँ पहुचता हूं । वेद होटल से हीं दिन की पहली फ्लाइट पकड़ कर बम्बई के लिये रवाना हो जाता हैं और रास्ते में वह उस अहसास के विषय में सोचता हैं जो उसे वहां हुआ था। उसकी पहचान उसका वह खिचाव आज भी वहीं के वहीं था उसे उसकी पहचान आज भी नहीं मिल पाई थी जिसकी कि पूर्ण सम्भावना थी।
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वेद बम्बई के सिटी होस्पीटल में पहुच जाता हैं दिव्या गेट पर हीं उसका इंतज़ार कर रहीं होती हैं आते हीं वह उसे आई सी यू में ले जाती हैं पिता उसे वेद को छोड़ कर बाहर निकल जाने का इशारा करते हैं वह आ जाती हैं ।
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वेद उनके सिरहाने लगी कुर्सी पर बैठ जाता हैं वह उनसे उनका हाल पूछता हैं और कहता हैं अचानक यह कब और कैसे आपने मुझे बताया क्यों नहीं ।
दिव्या के पापा बेटा यह तो होना हीं था दिल पर बोझ लिये हुये जो बैठा था कब तक साधता इसी लिये तुम्हें बुलाया हैं कि अपने दिल का बोझ हल्का कर सकूं ।
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काव्या को सारी रात बुरे बुरे ख्याल आते रहे उसे ख्वाबों में दिख रहा था कि वेद उससे बहुत दूर जा रहा हैं कोई उसे खीच रहा हैं वेद का एक हाथ काव्या के हाथों में हैं और दूसरा हाथ किसी और के वह वेद को अपनी और खीच रहा हैं काव्या कस के पकड़े हुये हैं फिर भी रेत के समान हाथ इसके हाथों से फिसलता चला जा रहा हैं बस उंगलियां हीं उंगलियों में अटकी हुई हैं वह भी बस निकलने हीं बाली हैं काव्या चीख कर उठ पड़ती हैं उसके चैहरे पर सर्दी की रातो में भारी पसीना होता हैं और श्वासें तेजी से चल रहीं होती हैं मानो वह सच में किसी से लड़ाई लड़ी हो और किसी को खीच रहीं हो या अभी अभी दौड़ कर आयी हो उसकी चीख सुनकर उसकी बहन आती हैं उसके चैहरे के उड़े हुये रंग व उसकी वदहवास हालत को देख कर वह हैरान रह जाती हैं ।
वह उससे पूछती हैं क्या हुआ तो काव्या उसे अपना सपना सुनाती हैं वह फिर उससे गुस्सा हो जाती हैं और उसकी ख्याली दुनिया से बाहर निकलने की कहती हैं तब तक सुबह हो चुकी होती हैं वह उसे नहा धोकर तैयार होने को कहती हैं काव्या भी वैसा हीं करती हैं नास्ता करने का उसका जरा भी मन नहीं होता हैं फिर भी वह दूसरों पर आश्रित थी और खुल कर किसी बात का भी विरोध नहीं कर सकती थी अतः वे मन वह नस्ता कर ओफिस के लिये निकल जाती हैं ।
उसे रह रह कर सुबह का सपना याद आता हैं और मन में किसी अनिष्ट की आशंका उसे व्याकुल किये हुये होती हैं ।
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दिव्या के पिता वेद को अपने पास बुलाते हैं और कहते हैं बेटा मन पर एक बोझ था आज वह हल्का करना चाहता हूं न जाने किस पाप की सजा मेरी बेटी भोग रही हैं और अनजाने में एक पाप और करने चला था तभी यह हुआ हैं पर मरने से पहले अपना प्रायश्चित करना चाहता हूं और तुम्हें वह बताना चाहता हूं जो तुम जानने के लिये न सिर्फ उताबले हो वरण उसे जानना तुम्हारे लिये नियतांक आवश्यक भी है ।
वेद यह सुन कर व्याकुल हो उठता हैं उसे लगता हैं शायद उसके भूत के विषय में ये कुछ जानते हैं और बताना चाहते हैं तभी वह उनसे कहता हैं कहिये अंकल बाताईये वह कहता हीं रह जाता हैं और दिव्या के पिता पुनः वैहोश हो जाते हैं ।
वेद दौड़ कर डॉक्टर को बुलाता हैं डॉक्टर वेद को बाहर जाने के लिये कहता हैं पर वेद की अब धड़कनें जोर जोर से धड़कने लगती हैं वह समझ नहीं पाता कि इस स्थिति में वह क्या करे वह दौड़ कर दिव्या के पास जाता हैं और उससे पूछता हैं क्या तुम जानती हो अंकल मुझसे क्या कहना चाहते थे प्लीज बताओ पता नहीं वह क्या कहना चाहते थे ।
दिव्या उसे दिलाशा देती हैं और कहती हैं घबडाने की कोई जरूरत नहीं हैं अभी होश में आ जायेगे और बता देंगे चिंता करने से या पागल होने से कोई लाभ तो होने बाला हैं नहीं जब उन्हें बताना हीं हैं तो होश में आते हीं बता हीं देंगे।
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काव्या के ऊपर काम के साथ साथ परिवार का भी दबाव बढ़ता हीं जा रहा था और उस दबाव से निकलने के लिये उसने खुद को एक स्व चलित यंत्र बना दिया था और दिन रात सिर्फ काम हीं काम में खुद को व्यस्त रखने लगी और दिल में वेद की यादें व मस्तिष्क में काम के जुनून ने उसे जिन्दा लास बना दिया था ।
उसके लिये न कोई मौसम था न हीं कोई तीज त्यौहार न हीं उसकी अपनी कोई मन मर्जी थी सिर्फ काम को हीं उसने सपने जीने का एक जरिया बना लिया था उसका मानना था कि इस काम के कारण हीं आज वेद उससे दूर हुआ हैं मैं भी उसकी यादों से इसी के माध्यम से दूर चली जाऊंगी उसे याद नही करूंगी पर यह उसका धोका था जो वह खुद को दे रहीं थी जितना वह उसकी यादों से भाग रहीं थी उतना हीं वह उसे दिल हीं दिल खोजना भी चाहती थी बस एक वार कारण था कि एक वार मिल कर उससे उसकी बेवफाई का कारण जानना चाहती थी । जबकि उसे तो यह पता हीं नहीं था कि उसके साथ हुआ क्या था ।
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अंकल को होश आ जाता हैं वेद दौड़ कर उनके पास जाता हैं वह भारी मन से वेद से कहते हैं बेटा तुम्हारा यहाँ एक्सीडेन्ट हुआ था वहा काफ़ी भीड़ थी और तुम बेहोशी की हालत में कुछ बड़ बडा रहें थे कोई नाम था मैं समझा तुम दिव्या- दिव्या कह रहें हो और कुछ लोगो की मदद से मैं तुम्हें होस्पीटल ले गया पर वहां जाकर पता चला कि तुम दिव्या नहीं काव्या कह रहें थे अपनी वैहोशी की हालत में लगातार तुम इसी नाम को ले रहें थे काव्या- काव्या।
पर मैं तुम्हें होस्पीटल ले आया था शायद उसी की दुआओ का असर था कि तुम ठीक भी हो गये मैं नहीं जानता की काव्या कोन हैं पर हो सकता हैं वह तुम्हारी कोई हो तुम जब घर पहुचे थे तो दिव्या तुम्हें यह बताना चाहती थी पर मैने ही सच बताने से उसे रोक दिया था।
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अंकल मैं समझा नहीं क्यू तो आपने मेरी जान बचाई ? और क्यों आपको लगा कि मैं दिव्या- दिव्या कह रहा हूं? और क्यों आपने दिव्या को सच बताने से रोका कृपया बताये मैं कुछ समझ नहीं पा रहा हूँ मैं पागल हो जाऊंगा अगर यह पहेली नहीं सुलझी तो ।
बेटा मैं तुम्हें सब सच सच बताता हूं दरसल दिव्या किसी लडके से प्यार करती थी और वह दिव्या से प्यार का नाटक करता था जबकि असल मे वह हमारी उस जमीन को हथियाना चाहता था जो गांव में हैं हमारी पुस्तेनी जब उसे लगा कि वह अपने इस मकसद में सफल नहीं हो सकेगा तो वह दिव्या को धोका देकर भाग गया मैने उसे देखा नहीं था।
जब तुम्हारा एक्सीडेन्ट हुआ और तुम्हें बुदबुदाते देखा तो मुझे लगा तुम दिव्या दिव्या कर रहें हो मुझे लगा शायद उसका ह्रदय परिवर्तन हो गया हो और वह वापस आ गया हो क्यो कि दिव्या भी उसे भूल नहीं पाई थी और हर पल उसी को याद करके रोती रहती थी न कुछ खाती थी न सोती थी।
जब तुम्हें इसने घर पर देखा तो मुझसे पूछा कि तुम कोन हो मैं समझ गया कि तुम वह नहीं जो मैं समझ रहा था पर तुम्हारा स्वास्थ्य ठीक नहीं था इस लिये मैने बताने से इंकार कर दिया कि तुम्हारा स्वास्थ्य ठीक होने पर हम सब बता देंगे।
पर मैं इतनी हिम्मत हीं नहीं जुटा सका कि तुम्हें सच बता दूं अब जब यह हाल हुआ तो सोचा कि यह मेरे हीं कर्मो का फल हैं जाने से पहले तुम्हें बताना चाहता था। बेटा पता करो काव्या कोन हैं और कहां हैं फिर भी अगर तुम्हें लगे तो पुनः कहता हूं इस घर परिवार को अपना हीं समझना और कुछ अगर पता न चले तो लोट आना ।
कह कर इसारे से आराम कराने को कहते हैं और सो जाते हैं ।
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वेद कुछ समझ नहीं पाता हैं कि इस हाल में उनके साथ रुके या काव्या की खोज करे कि अपनी खुद की। बहुत सोच विचार के बाद वह निर्णय लेता हैं कि इनके स्वस्थ्य होने तक वह यहीं रुकेगा जिसने उसे जीवन दान दिया हैं उसे इस हाल में छोड कर वह कैसे जा सकता हैं । उसके बाद उसी जगह उसी कोलेज व अपनी कम्पनी जायेगा।
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एक सप्ताह बाद वह स्वस्थ हो जाते हैं और होस्पीटल से घर आ जाते हैं अब वेद भी उनसे आज्ञा पाकर काव्या की व खुद की तलाश मे पुनः दिल्ली पहुचता हैं अगले दिन वह कोलेज में काव्या नाम से पूछतांछ करता हैं तो पता चलता हैं कि एक लड़की इस नाम की थी पर उसकी ग्रेजुएशन हो चुकी थी और अब वह उस कोलेज में नहीं हैं ।
वेद वहां से उसका पता लेता हैं और वहा पहुचता हैं यहाँ वह रहती थी उस सोसाइटी को देख कर भी वेद को लगता हैं कि यह सोसाइटी पहचानी पहचानी सी हैं यहाँ से भी उसका कुछ रिस्ता हैं पर उसे कुछ याद नहीं आता हैं वह वहाँ पता करता हैं सिक्योरिटी से पूछता हैं क्लब हाऊस में पूछता हैं पर कुछ पता नहीं चलता । वह हार थक कर बैठ जाता हैं और बडे ध्यान से उस स्वीमिंग पूल को देख रहा होता हैं तभी एक सीक्योरिटी गार्ड जो कि अधेड उम्र का था कहता हैं अरे साहब आप आज बहुत दिनों बाद क्या फिर से यहीं आ गये हो आप ।
क्रमशः