वेद और काव्या दोनों हीं एक सामान्य परिवार से थे जहाँ वेद थोडा चंचल था वहीं काव्या शान्त थी दोनों एक हीं सोसायटी मे रहते थे दोनो एक दूजे को आते जाते देखते किन्तु बात करने की हिम्मत नहीं जुटा पाते थे एक दिन एक शादी के फंसन मे दोनों मिले और हाय हैलो हुआ दोनों को हीं मात्र एक पहल की हीं जरूरत थी दिल तो दोनों का एक दूजे के लिये पहले से हीं धडकता था । और इस सादी में वह मोका भी मिल गया था दोनों ने इसके बाद भी काफी दिनों तक बात सिर्फ हाय हैलो तक ही सीमित रखी उससे आगे नहीं बड़े किन्तु कहते हैं न जो बाते जवान से नहीं होती हैं आंखों से वहीं बाते बड़ी आसानी से हो जाती हैं ।
दोनों एक दूजे का फ्री समय देखने लगे और जो भी फ्री होता वह दूसरे के ब्लोक के सामने बाले पार्क में टहलने लगता दूसरा उसे देखता और वह भी पार्क में आ जाता किन्तु बातों का सिलसिला अब भी आगे नहीं बढ पा रहा था ।
एक दिन वेद स्वीमिंग पूल मे स्वीमिंग कर रहा था अचानक काव्या भी आ गयी और किनारे से बैठी बैठी स्वीमिंग करने लगी वेद ने आगे आने को इशारा दिया उसने भी इशारे में जबाब दिया तैरना नहीं आता ।
वेद ने उससे कहा मैं हूं ना डर किसका अब इस प्रकार बातों का सिलसिला आगे बड़ने लगा था वह उस दिन तो नहीं आई किन्तु एक दिन अचानक खुद तैरने लगी स्वीमिंग पूल में अकेली थी और डूबने लगी स्वीमिंग पूल के पास ही टेनिस कोर्ट था यहाँ वेद टेनिस खेल रहा था वह जैसे ही चिल्लाई टेनिस कोर्ट से भाग कर वेद सीधा स्वीमिंग पूल में कूद गया और उसे निकाल लाया साथ हीं उस पर अधिकार के साथ एक डांट लगाई कि पागल हो जब मैं बोल रहा था कि आ जाओ मैं हूं कुछ नहीं होगा तब आई नहीं और अब मरने के लिये अकेले हीं तैरने आ गयी। साथ ही पूल पर तैनात सीक्योरिटी को भी डाट लगाई तुम कहां थे।
काव्या यह सब देख रहीं थी और सोच रहीं थी कि आज तक जिसने मूंह से एक शब्द नहीं बोला आज वह इतना बोल रहा हैं कमाल हैं वह उसके गुस्से में अपने लिये परवाह और प्यार दोनों हीं देख रहीं थीं और उसे इस बात का बुरा नहीं लग रहा था कि वह उस पर चिल्ला रहा था वरण उसे इस बात की खुसी हो रहीं थीं कि उसे मेरी परवाह भी हैं और मुझसे प्यार भी वह बात अलग हैं कि अभी तक उसका इसने इज़हार नहीं किया हैं पर अब जल्द हीं करेगा यह सोच कर उसके चैहरे पर हल्की मुस्कान दोड गयी थी । यह देख कर वेद को गुस्सा आ गया और वह बोला पागल हो मैं बक रहा हूं और तुम मुस्कुरा रहीं हो काव्या अपनी उंगली उसके मूंह पर रख उसे चुप होने का इशारा करती है।
वहां काफी भीड अब तक जमा हो चुकी होती हैं जो सब कुछ ठीक ठाक देख कर लोटने लगती हैं काव्या वहां से उठना नहीं चाहती हैं वह इसी तरह वेद की गौद मे पड़े रहना चाहती हैं पर वेद उसे उठा देता हैं और चैज करने को कहता हैं ।
जाओ चैज करो नहीं तो डूबने से बचा लिया निमोनिया हो गया तो नहीं बचा पाऊगा। काव्या भी अब सीरियस हो जाती है और प्यार से Thanks 👍वेद कहकर चली जाती हैं वेद वहीं बैठा बैठा उसे तब तक देखता हैं जब तक वह उसे दिखती हैं । और जैसे हीं दिखना बन्द होता हैं वेद खुदको कोसने लगता हैं मैने क्यू उसे जाने को बोला अच्छी खासी गोद मे पड़ी थी। और यह कहकर वह भी चैज करने के लिये चला जाता हैं ।
अब दोनो सिर्फ मिलते ही नहीं थे एक दूजे का हाल भी पूंछने लगे थे और बातें भी करने लगे थे। बातों बातों में पता चला कि काव्या BSC की स्टूडेंट है और वेद एक निजी कम्पनी मे कार्यरत हैं ।
अब दोनों का छुट्टी का दिन एक दुजे के साथ बीतने लगा था अब तक वेद अपने ओफिस बाइक से जाता था किन्तु अब बाइक से न जाकर बस से जाने लगा था क्योंकि आधे रास्ते में काव्या का कॉलेज पड़ता था और वह अभी उसकी बाइक से उसके साथ जाने को तैयार नहीं थी । दोनों हीं 2x2 की बस में पास बैठकर जाते और बातें करते थे काव्या अब घर से टिफिन लाने लगी और दोनों हीं बस में बैठ कर बडे प्रेम से टिफिन साझा करते थे कभी टिफिन काव्या के हाथ में होता और वेद चम्मच से उसमे से ले लेकर उसे खिलाता तो कभी टिफिन वेद के हाथ में होता काव्या उसे खिलाती दिनों यह सिलसिला चलता रहा बस में आने जाने बाले देखते पर सिर्फ देखते हीं थे। काव्या का कॉलेज आता वेद भी वहीं उसके साथ उस स्टोप पर उतर जाता और कुछ समय उसके साथ बिता कर वहीं से बस बदल कर अपने ओफिस चला जाता और साम को वहीं से दोनों एक हीं बस में साथ आते अब उनका प्यार परवान चढ़ने लगा था किन्तु दोनों ने हीं अभी तक इस बात का इज़हार नहीं किया था पर ताडने बाले कयामत की नजर रखते हैं बस में डेली आने जाने वाले लोग यह सब देख रहें थे और समझ भी रहे थे ।
कॉलेज आता वेद भी वहीं उसके साथ उस स्टोप पर उतर जाता और कुछ समय उसके साथ बिता कर वहीं से बस बदल कर अपने ओफिस चला जाता और साम को वहीं से दोनों एक हीं बस में साथ आते अब उनका प्यार परवान चढ़ने लगा था किन्तु दोनों ने हीं अभी तक इस बात का इजहार नहीं किया था पर ताडने बाले कयामत की नजर रखते हैं बस में डेली आने जाने वाले लोग यह सब देख रहे थे और समझ भी रहे थे ।
इसी प्रकार दोनों एक दूजे के साथ आने जाने लगे दिन से सप्ताह सप्ताह से महीने और महीनों से साल बीतने लगा दोनों की एक फिक्स सीट थी जिस पर दोनो बैठा करते थे बस में सफर करने वाले डेली पेसेंजर भी यह समझ गये थे तो वह भी उस सीट पर नहीं बैठते थे उनके लिये वह सीट मानों उस बस में रिजर्व थी ।
वह भी एक दूजे के साथ अब बड़ी आत्मीयता से सफर करते थे कभी वेद की गोद में काव्या सर रख कर सो जाती तो कभी काव्या के कंधे पर वेद सर रखकर सो जाता सब से बेखबर वे परवाह दोनों बहुत खुस थे बस में बाते करते उन्हें सभी देखते उनके चैहरे की खुसी सुबह सुबह सभी मुसाफिरों को सकारात्मक उर्जा देने वाली थी ।
अचानक सेमेस्टर पूरा होने के बाद काव्या का आना बन्द हो गया अब वेद गाड़ी में अकेला आने लगा उसके चैहरे पर वह खुसी नहीं होती थी जो काव्या के रहते थी । अब वह बीच में उतरता भी नहीं था किन्तु उस स्टोप के आते हीं उसकी आंखे कुछ तलाशने लगती थी उधर काव्या भी परेशान थी अपार्टमेंट में तो मात्र कुछ समय का मिलना था वेद सुबह हीं ऑफिस चला जाता रात को आता अब दोनों रातों में कभी स्ट्रीट लाइट की रौशनी में तो कभी चांदनी रात में एक दूजे से मिलते थे और काफी देर तक एक दूजे के साथ रात बिताते जिसके कारण वेद को दिन में अब वह स्फूर्ति नहीं रहती और उसका काम प्रभावित होने लगा था परिणाम स्वरूप कार्यालय में भी उसके काम को लेकर अब उसे सुनना पड़ता था एप्रेजर का समय आया और उसे वह न मिला जो मिलना था उसकी इन दिनों की लापरवाहीयों के कारण उसका होने वाला प्रमोशन रुक गया था और उसे वोर्निंग भी मिल गयी थी ।
अब समय एक दम बदलने लगा था काव्या से वह कुछ नहीं कहता था वह काव्या के साथ फिर भी रात बिताता किन्तु जो बात जवान नहीं कह पाती प्यार करने वाले दिल की धड़कनों से पहचान लेते हैं काव्या को आभास होने लगा था उसने पूछा तो पहले तो वेद ने टाला किन्तु ज्यादा पूछने पर जब उसने काव्या को सब बताया तो वह इस सब के लिये खुद को दोशी मानने लगी कि मेरे कारण ही यह सब हुआ हैं अगर मैं तुम्हारी ज़िन्दगी में न आती तो यह सब न होता वेद उसके मूंह पर उँगली रखते हुये उसे चुप कर देता हैं कहता हैं तुम पागल हो कोई और जोब मिलेगा में देखूगा तुम चिन्ता क्यो करती हो ।
काव्या उसके कहने पर चुप तो हो जाती हैं किन्तु उसका मन उदास हो जाता है। नियत समय से पहले हीं आज दोनों अपने अपने फ्लैटो को चले जाते हैं वेद अपने लिये नया जोब देखना सुरू कर देता हैं और हर जोब अलग अलग जगह होने के कारण वह किसी में भी काम को तैयार नहीं होता हैं कारण यहा यहा जोब मिल रही थी वह सभी जगह काव्या के कॉलेज से अलग अलग दिशाओं में थे वह अब काव्या के साथ का आदी हो चुका था अब काव्या के कोलेज भी चालू हो चुके थे फिर से दोनों साथ आने जाने लगे दोनों साथ तो थे पर वह खुसी न थी वेद कम्प्रोमाइज कर रहा था पर अब वहा उस जोब से खुस नहीं था किन्तु काव्या का साथ उसकी हर परेशानी का जैसे राम वाण औषधि हो वह उसके साथ आकर खुस हो जाता था किन्तु काव्या को अब उसकी फिक्र होने लगी थी और वह लोटते में उससे उसके ओफिस की हीं बात करती थी पर वेद टालता था वह उससे दूसरे जोब की बात करती वह कह देता देख रहा हूं मिल जायेगा किन्तु असल बात नहीं बताता कि मिल तो रहा हैं पर वहां नहीं यहाँ मै चाहता हूं । एक दिन जब वेद काव्या के साथ ही था उसे एक कोल आता हैं और वह उस पर थोडी देर हां हूं करने के बाद न बोलता हैं काव्या पूछती हैं किसका कोल था कहा से था और वह जो छुपा रहा होता हैं भूल जाता हैं एक वार बताकर खुद को रोकता हैं किन्तु काव्या अपनी कसम चढा देती हैं और सच बताने को कहती हैं ।
वह बताता हैं तब काव्या उसे वह जोब करने को मना लेती हैं वह बहुत समझाता हैं किन्तु वह एक नहीं सुनती वह भी फोन कर जोइन करने को बोल देता हैं और एक माह के नोटिस पीरियड के बाद जोइन कर लेता हैं दोनों एक माह साथ आते जाते हैं फिर कुछ समय ऑफिस के बाद रात में मिलते हैं उसके बाद वेद का ट्रांसफर हो जाता हैं और उसे दूसरे शहर जाना होता हैं वेद जोब छोडने की कहता हैं पर काव्या यह करने नहीं देती हैं और उसे शहर बदलने को मना लेती हैं अब दोनों अलग अलग हो जाते हैं कुछ दिनों दोनों दिन में एक वार फोन पर बाते करते रहते हैं।
इधर काव्या भेज तो देती हैं पर खुद को नहीं समझा पाती और हर बख्त उदास खोई खोई रहती हैं उधर हाल उसका भी वही था न काव्या का पढ़ाई में मन लगता हैं न वेद का काम में एक दिन वेद अपनी बाइक से जा रहा होता हैं और एक एक्सीडेन्ट में काफी घायल हो जाता हैं होस्पीटल में भर्ती होने पर इलाज होता हैं जान तो बच जाती हैं किन्तु याददाश्त चली जाती है।
क्रमशः