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तोड़ के इन जंजीरों को

8 अगस्त 2022

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तोड़ के इन जंजीरों को मैं, पंछी बन उड़ जाऊ।

मां भारती का तिरंगा, नील गगन में फिर लहराऊं।।

हम भारत माता की बेटी है, हममें साहस है अपार।

एक बार जब हम ठाने तो, कर जाये हर मुस्किल पार।।


कृष्ण प्रेम में मीरा जैसी हम, दीवानी बन जाती है।

तोड के सब सामाजिक बंधन, श्याम रंग रंग जाती है।।

देश प्रेम गर हो ह्रदय में लक्ष्मीबाई बन जाती है।

रणभूमि में रणचंड़ी बन कर, शत्रु का खून वहाती है।।


गर ममता मयीं रूप धरे तो, पन्नाधाय कहाती है।

अपाने पुत्र का गला कटा कर, राज धर्म निभाती है।।

रानी पद्मिनी की सुन्दरता पर खिलजी, जब गिद्ध बन कर मडराया था।

अग्नि कुंड में सखियों के साथ कूद कर, जौहर वृत दिखाया था।।


दुतिचंद हो या हो पी टी ऊषा, इनने भी जंजीरें तोड़ी थी।

तभी तो जाकर भारत की बेटी, सबसे आगे दौड़ी थी।।

मेरीकोम ने भी तो देखो,  कितना कष्ट उठाया था।

तब जाकर अपना तिरंगा, सारी दुनियां में लहराया था।।


क्रिकिट में भी भारत की बेटीयों ने, अपना दम दिखलाया है।

और ओलम्पिक होकी में भी देखलो, भारत का मान बढाया है।।

तोड़ के जो इन जंजीरों को, पंक्षी बन उड़ जाती है।

भारत की वो ही बेटी, भारत की शान बढ़ाती है।।

स्वरचित मौलिक रचना


गिरधारी लाल चतुर्वेदी 'सरदार' 


मथुरा उत्तरप्रदेश


मो० न० 7042280444

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रचनाएँ
निस्वार्थ सच्चा प्रेम
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प्रेम पर आधारित कहानी हैं। जिसमें प्रेम हैं करुणा हैं विश्वास हैं सब कुछ है एक बार जब आप पढेंगे तो निरन्तर पढेंगे
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