दिव्या भी वेद की हां में हां मिलाते हुये कहती हैं हां पापा आप हैं तो सब कुछ हैं आप ठीक हो जाये पहले फिर हम इस विषय पर बात कर लेंगे।
दिव्या के पिता कहते हैं बेटा जानता हूँ तुम दोनों समझदार हो पर एक बात याद रखना जिंदगी मोका बार बार नहीं देती हैं कुछ तो बात होगी कि उस समय इसे मैं होस्पीटल लेकर गया और यह हमसे परिवार की तरह घुल मिल गया और उसके बाद से इसने जब जब हमें इसकी जरूरत अनुभव हुई एक फोन पर चला आया हमारे साथ न रहकर भी हमसे अलग नहीं हैं और हमसे रिस्ता न होते हुये भी उसे निभा भी रहा हैं । अब तुम समझदार हो चुके हो अपनी अपनी जिंदगी का फैसला कर सकते हो पर इन बूढ़ी आंखो के भी कुछ अरमान हैं अच्छा होगा जीते जी वह पूरे हो जाये या फिर उन्हीं अरमानो को लेकर दुनियां से जाना होगा ।
हवन कुण्ड तो जलना तय हैं अब विवाह के मण्डप का हवन हो और उसमे प्रेम की आहूति डाली जाय या मृत्यु का हवन हो और इस देह की उसमे आहुति डाली जाय अब तो बस यही देखना शेष हैं ।
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काव्या पर भी अपनी जिंदगी में आगे बढ़ने के लिये प्रेशर डाला जा रहा था उससे भी काम के साथ साथ सादी के लिये कहा जा रहा था पर काव्या अड़िग थी उसने साफ साफ कह दिया कि अभी मैं सिर्फ अपने काम पर ध्यान देना चाहती हूं आपकी हर बात मान ली अब आगे मुझसे किसी भी प्रकार की जबरदस्ती न करें। और वह अपने काम व कैरियर पर फोकस करने लग जाती हैं वह वेद से नफरत तो करने लगी थी पर किसी और से विवाह बन्धन में नहीं बधना चाहती थी जिसका कारण था कि अभी वह पूरी तरह से आश्वस्त नहीं थी कि वेद ने उसे धोका दिया हैं ।
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वेद असमंजस में था कि वह अंकल की बात का क्या जबाब दे वह उनके एहसान तले दवा हुआ था और दिव्या की भी मर्जी नहीं जानता था उधर दिव्या भी इसी उलझन में थी कि कहीं वह यह न समझे कि हमने उसकी जान बचाई हैं और हम उसे अब उसका बदला चाह रहें हैं वह भी अपनी नजरे चुरा रहीं थी अब हालत यह थी कि दोनों न तो बात करने की पहल हीं कर पा रहें थे और न हीं सीधे सीधे हां या न कह पा रहें थे एक दिन दिव्या के पिता एक एक कर दोनों को बुलाते हैं और उनसे उनकी मर्जी पूछते हैं दोनों हीं पहले तो बचने का प्रयास करते हैं फिर अपने मन की बात कह देते हैं वह सब समझ जाते हैं और दोनों को घूमने जाने को कहते हैं दोनों एक साथ घूमने चले जाते हैं पर साथ रहकर भी जो संनाटा था वह टूटने का नाम हीं नहीं ले रहा था फिर अचानक दोनों एक साथ बोलते हैं और रुक जाते हैं फिर कुछ देर के लिये संनाटा छा जाता हैं उसके बाद दोनों एक दूसरे से नजरे मिलते व चुराते हैं और माहोल खामोश हो जाता हैं कुछ समय बाद खामोसी की गहरी चुप्पी टूटती हैं वेद कहता हैं दिव्या जैसा कि आप जानती हो मेरे विषय में और मैं आपके विषय में जानता हूं फिर भी इस समय बात न आपकी हैं न मेरी बात हैं अब बात हैं अंकल की आपने क्या सोचा हैं । आप कुछ बोले तो कोई बीच का रास्ता निकल सकता हैं ।
दिव्या उसकी बात ठीक से समझ नहीं पाती हैं वह उससे साफ साफ कहने को कहती हैं फिर वह समझाता हैं कि आप भी अभी तक अपने पहले प्यार को नहीं भूल पाई हैं और मेरे भूलने न भूलने से कोई फर्क पड़ने बाला नहीं हैं क्यो न हम अंकल जी की खातिर उनकी खुसी के लिये विवाह कर लेते हैं और उसके बाद हम वैसे हीं रहेंगे जैसे आज रह रहें हैं । दिव्या को पूरी तरह भरोसा तो नहीं होता उसकी बातों पर फिर भी वह पिता की खुसी की खातिर यह करने को तैयार हो जाती हैं और आनन फानन में दोनों की शादी हो जाती है। और जैसा कि दोनों के बीच तय था एक ही कमरे में दोनों दो अजनबीयों की तरह अलग अलग सोते हैं ।
कुछ महीनों बाद अचानक दिव्या तेज बुखार में आ जाती हैं और दिन व दिन वह कमजोर होने लगती हैं उसका स्वास्थ्य सभलने का नाम हीं नहीं ले रहा होता हैं वेद उसका बहुत ख्याल रखता हैं वेद की इस प्रकार देखभाल से वह संतुष्ट तो थी पर अब उसे खुद से घ्रणा होने लगी थी वह सोच रहीं थी कि हमारा तो जो होना था वह होता हीं पर अब हमारे कारण इस भले व्यक्ति की जिंदगी और खराब हो रहीं हैं । वह कमजोर पड़ने लगती हैं उसे मन हीं मन वेद से प्रेम होने लगता हैं वेद था कि बस अपना धर्म निभा रहा था ।
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काव्या अब धीरे धीरे अपने काम में व्यस्त होने लगी थी और वेद को भूलने लगी थी उसके घर बाले उसके लिये सम्बन्ध देखने लगते हैं एक एक कर कई रिस्ते आते हैं पर हर रिस्ता लोट जाता है वह विवाह करना हीं नहीं चाहती थी मानो जैसे उसने ठान लिया हो कि उसे बिना शादी के हीं निराश्रित रहना हो ।
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दिव्या का स्वास्थ्य धीरे धीरे सुधरने लगता हैं और वेद भी अपने काम पर जाने लगता हैं सब कुछ ठीक चल रहा था कि अचानक एक दिन वेद को सर्दी से बुखार चढ़ जाता हैं कई कई रजाई उढाने पर भी उसको सर्दी लग रहीं होती हैं वह दो दिन तक वैहोशी की हालत में होता हैं और दिव्या उसका हर पल ध्यान दे रही थी यहाँ तक कि अब वह बैड पर हीं सो रहा था और दिव्या भी उसके पास हीं सो रहीं थी एक कमजोर लम्हा आता हैं और दोनों एक दूसरे की ओर खिचे चले आते हैं श्वासों से श्वासें टकराती हैं एक दूसरे के जिस्म टकराते हैं एक दूसरे की गर्मी का एहसास होता हैं और दोनों एक दूसरे के आगोस में खो जाते हैं सारी मर्यादाये टूट जाती हैं दिखाबे के पती पत्नी आज सच में पती पत्नी बन जाते हैं और जब होश आता हैं तब तक देर हो चुकी होती हैं ।
वेद और दिव्या एक दूजे से नजरें चुराते हैं इसमें दोश किसी का नहीं था दोनों हीं एक कमजोर लम्हे का शिकार हो गये थे किन्तु इस मिलन का एक सकारात्मक असर यह हुआ कि वेद का जो बुखार डाक्टरो की दबा से नहीं उतर रहा था वह बुखार पूरी तरह उतर गया था वह इस बात की शर्मिंदगी में था कि वह अपना बादा निभाने में असफल रहा और वह दूसरे शहर में अपनी कम्पनी से अपना ट्रास्फर ले लेता हैं दिव्या अब चाहती थी कि वह अब न जाये पर वह अब रुककर दौबारा वही गलती नहीं दोहराना चाहता था और वह लाख रोकने पर भी दूसरे शहर जाकर काम करता हैं । कुछ समय बाद दिव्या को पता चलता हैं वह वेद के बच्चे की मां बनने बाली हैं वह फोन पर वेद को बताती हैं वेद उससे इस अनचाही परेशानी को लेने से मना करता हैं और एवोर्शन कराने को कहता हैं पर वह उसकी नहीं सुनती हैं उसके बच्चे को अपनी कोख मे पालती हैं इस बीच वेद उससे मिलने एक भी वार नहीं आता हैं वह भी वेद को कुछ नहीं बराती हैं जब दस मांह पूर्ण होने पर भी बच्चा बाहर नहीं आता और डाक्टरो द्वारा एक के बाद एक तीन डिलिवरी की डेट निकल जाती हैं तो डाल्टर ओप्रेशन द्वारा बच्चा करने की कहते हैं पर दिव्या को खून की कमी थी डाक्टर कहते हैं कि मां और बच्चे में से किसी एक को बचाया जा सकता है जिसपर दिव्या कहती है यह वेद का अंश हैं मेरी जान भले हीं चली जाये पर बच्चा हर हाल में बचना चाहिये उसके पिता विवश हो जाते हैं वह दुखी होते हैं वेद भी वहां नहीं होता हैं पर डाक्टरो की कोशिष व ऊपर बाले की कृपा से दोनों हीं बच जाते हैं बच्चे की खबर सुनकर भी वेद नहीं आता हैं । फिर अचानक एक दिन दिव्य के पिता को तीसरा अटेक आता हैं और वहीं उनकी मृत्यू हो जाती हैं दिव्या उसे फोन पर बताती हैं वह अगले दिन की सुवह हीं पहुच जाता हैं उनकी अंतिम यात्रा निकाली जाती हैं तेरह दिन की क्रिया होती हैं इन दिनों एक तो वैसे हीं दोनों बात नहीं कर पाते ऊपर से वह करना भी नहीं चाहते थे एक एक कर तेरह दिन बीत जाते हैं वेद अपने बच्चे को ठीक से देखता भी नहीं हैं फिर काव्या के कहने सुनने पर वह उसे देखता हैं दोनों एक मांह बाद उसका नाम करण करते हैं जिसमें कोई पंडित नहीं आता दिव्या हीं उसका बाम वेदांश रख देती हैं उसका मानना था कि यह वेद का अंश हैं इस लिये इसका नाम वेदाश होना हीं चाहिये ।
पर यदि संवैधानिक रूप मे देखा जाय तो अब तक उसके साथ प्रति दिन बलात्कार हो रहा था पर हमारे समाज में इसे पति का अधिकार व पत्नी का धर्म कहा जाता हैं और वह भी यहीं समझ रहीं थी यहीं कारण था कि उसका विरोध नहीं कर पा रहीं थी दूसरी बजह वह खुद थी वह वेद की नफरत में भी इसे सहज स्वीकार कर रहीं थी। पर अब उसे इससे बचने का यह बहाना मिल गया था इसे वह गवाना नहीं चाहती थी।
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पिता की मृत्यु के बाद, वेद दिव्या व वेदांश का ख्याल रखता है वेदांश अब चार वर्ष का हो चुका होता है एक दिन वेद गहरी नीद सो रहा होता है तभी उसके चैहरे पर पानी की एक बूंद टपकती हैं वह हाथ से हटा देता हैं फिर एक एक कर बार बार उसके चैहरे पर कई बूंदें टपकती हैं वेद उठता हैं तो पाता हैं उसके सिरहाने पर बैठी हुई दिव्या रो रही होती हैं ।
वह एक दम से होश में आ जाता हैं और इस कदर दिव्या को रोते देख घबरा जाता हैं वह उससे रोने का कारण पूछता हैं वह नहीं बताती हैं और सुवक सुवक कर रोती रहती हैं वह कहता हैं पापा को मिस कर रहीं हो दिव्या तुम्हें खुद को सभालना होंगा वह तो अब कभी नहीं आयेगे पर तुम पर और भी जिम्मेदारी हैं अगर इसी तरह कमजोर पड़ जाओगी तो कैसे काम चलेगा वह उसे कस के पकड़ लेती हैं और उसके सीने से लग कर इस प्रकार फूट फूट कर रोती हैं मानो मोम पिघल रहीं हो वेद समझ नहीं पाता हैं हर समय चट्टान जैसी मजबूत दीखने बाली दिव्या आज मोम की तरह क्यों पिघल रहीं हैं वह उसे सभालते हुये पूछता हैं दिव्या क्या बात हैं? अगर बताओगी नहीं तो पता कैसे चलेगा ? और पता नहीं चलेगा तो समाधान कैसे निललेगा? बाबा अब चुप भी हो जाओ बच्चा जाग जायेगा ।
वह रुधी हुई आबाज में कहती हैं तुम बहुत बुरे हो मैं आज तुम्हारे कारण दुखी हूं वेद और भी चिंतित हो जाता हैं और पूछता हैं मेरे कारण मैने ऎसा क्या कर दिया ? कि मुझे हीं नहीं पता अगर तुम मेरे कारण दुखी हो तो पहले तो मैं अपनी उस गलती के लिये क्षमा मागता हूं जिसके कारण तुम. दुखी हो फिर मैं अपनी गलती को सुधारूगा पहले बताओ तो सही मेरी गलती क्या हैं ?
दिव्या रोते हुये कहती हैं इन पांच वर्षो में तुम्हें हमारी बिलकुल भी याद नहीं आयी कभी भी तुमने मेरा मन जानने की कोशिश की? मैं क्या चाहती हूं तुमने जानना चाहा? तुम हमारा ध्यान रखते थे पर क्या पैसा ही सब कुछ होता हैं? एक वार भी तुमने एक पति का धर्म समझा? मेरे लिये आज तक एक साड़ी भी खरीद कर लाये? एक चूड़ी का सेट भी लाकर दिया? उसके मूंह से इस प्रकार की बाते सुन कर वेद हैरान था उसने कहा दिव्या तुम........ चलो अब मैं ध्यान रखूंगा और शान्त होकर सो जाओ इस बिषय पर सुबह बात करेंगे । दिव्या उससे साथ सोने को कहती हैं पहले तो वेद असहज अनुभव करता हैं फिर उसके पास सो जाता हैं वेदांश अलग पळंग पर सो रहा होता हैं दिव्या उसमे सिमट जाती हैं आज वह अपनी हर हसरत पूरी करना चाहती थी वह उससे लिपट कर गर्म व गहरी सांसे भरती है गहरी गहरी श्वासे इस प्रकार लेती हैं मानो वह अब भी सुवक रही हो वेद उसे और कस कर अपने सीने से लगा लेता हैं वह भी उसमे और सिमट जाती हैं इतना सिमट जाती हैं की कोई भी दूरी शेष नहीं रह जाती और एक वार फिर दोनों वहक जाते हैं फिर दोनों के बीच वह होता हैं जो पिछले पांच वर्षो से नहीं हुआ था एक लम्बे समय बाद आज दोनों की हसरते पूरी हुई थी दोनों एक दूसरे पर अपना प्यार इस कदर वर्षा रहें थे मानो बहुत समय से रुका हुआ बादल आज फट गया हो और प्यार की वर्षा आ गयी हो । वह उसके प्रेम में भीग रहीं थी और जितनी भीग रहीं थी उतना हीं आनन्दित हो रहीं थी। दोनों की श्वासे एक दूसरे से टकरा रहीं थी सर्दी के दिनों मे दोनों पसीने पसीने हो रहें थे और इस प्रका हाफ रहें थे मानो रेगिस्तान में दौड़ लगा रहें हों और थक कर चूर हो गये हो । इस अनपेक्षित संगम के बाद दोनों उसी हाल मे गैहरी नींद सो जाते हैं ।
सुबह जब दोनों उठते हैं तो दिव्या के चैहरे पर संतुष्टि के भाव होते हैं। वह आज खुद को पूर्ण अनुभव कर रहीं होती हैं एसा लग रहा होता हैं मानो उसे तृप्ति मिल गयी हो । उसके चैहरे की चमक देखते हीं बनती थी सादी के पांच वर्ष बाद आज पहली बार उसे लगा था कि वह विवाहित हैं वह उठ जाती हैं पर वेद अभी सोया होता हैं वह उठकर सीधे नहानॆ के लिये चली जाती हैं और नहाकर भीगे बाल आकर अपने बालो से टपकती हूई पानी की शवनमी बूंदे वेद के उपर टपकाती हैं वेद के उपर पानी जाने से वह उठता हैं और दिव्या को देखता हैं। दिव्या को खुस देख कर सन्तुष्ट होता हैं दिव्या के बालो से टपकी बूदे उसके चैहरे पर ऐसे लग रहीं होती हैं मानो खिले हुये कमल पर ओस की बूंदे हो मन चाहता हैं कि इस समय उसे अपनी वाहों में भर ले पर वह हिम्मत नहीं जुटा पाता हैं पांच वर्षो से जिसे छूआ भी नहीं था एक दम से उसके साथ कैसे व्यवहार करे समझ नहीं पा रहा था । उसकी इस असमंजस को दिव्या ने खत्म कर दिया उसके सीने पर पड़ी अपने बालों से टपकी हुई बूद को अपने होटो से चूम कर।
उसके बालों की खुसबू उसे अपनी ओर खीच रहीं थी और वह खुद को रोक न सका उसने दिव्या को अपने सीने से लगा लिया सीने से लगते हीं दिव्या ने जैसे अपना समर्पण कर दिया हो । और अपील कर रही हो कि एक वार फिर वह उसके आगोश में खो जाना चाहती है पानी की इस बंद की तरह अपना अस्तित्व मिटा देना चाहती हैं वह चाहती हैं वर्षों से तपती यह दिल की भूमी इस प्यार की वारिस मे डूब जाये और सारी आग बुझ जाये वेद उसके इस व्यवहार से असमंजस में था आखिर इतने समय बाद अचानक यह बदलाब उसको हैरान कर रहा था। वह उसे समझाता हैं और खुद को सभालता हैं वह सोचता हैं शयद यह उसी त्याग का फल हैं जो मैने पिछले पांच वर्षो से किया हैं और आज यह समर्पण उसी त्याग का प्रतिफल हैं ।
क्रमशः