काव्या रात को काम से घर आती हैं बहन का काफ़ी मन होता हैं कि वह उसे आज घटी घटना बता दे पर वह जानती थी कि अगर बता दिया तो परिणाम क्या होगा इस लिये वह मन की बात मन में हीं दबा जाती हैं । किन्तु आज वह काव्या से बातें करना चाहती हैं उसके लिये वह सोचती हैं कहां से बात सुरू करे कुछ समय बाद सोच समझ कर वह उसका हाल पूछती हैं, ओफिस कैसा चल रहा हैं कोई परेशानी तो नहीं बहुत से वो प्रश्न जिनके पूछने का न कोई कारण हीं था न हीं ओचित्त फिर भी पूछती हैं क्योंकि वह उसके दिल का हाल जानना चाहती हैं ।
काव्या हर सबाल का एक हीं जबाब देकर बात का वहीं अंत कर देती हैं। "सब ठीक चल रहा हैं" बहन एक एक शब्द के जबाब को सुन कर सन्तुष्ट नहीं होती हैं वह उसे अपने पास बुलाती हैं और प्यार से समझाती हैं क्या बात हैं काव्या आज कल बिलकुल खामोश रहने लगी हो कुछ बोलती हीं नहीं एसा कब तक चलेगा यह खामोशी स्वास्थ्य के लिये व मन के लिये भी ठीक नहीं हैं बात समझने की कोशिष करो।
काव्या कहती हैं आप चाहती थी मैं यहाँ आ जाऊ मैं आ गयी आप चाहती थी मैं काम करू मैं कर रहीं हूं आप चाहती थी मैं वेद को भूल जाऊ मैं उसे भुला रहीं हूं अब आप और क्या चाहती हैं मैं वह भी करूंगी पर मुझसे अब हमदर्दी मत दिखाओ अब मुझसे किसी की हमदर्दी वर्दास्त नहीं होती और यह कह कर वह रो पड़ती हैं । गीता उसे सभालने की कोशिश करती हैं पर वह वहाँ से उठ कर अपने रूम में भाग जाती हैं और अपने बिस्तर पर निढाल हो कर गिर जाती हैं खुदको कोसने लगती हैं भगवान से अपने लिये मौत की भीक मांगने लगती हैं कि भगवान मुझे मौत भी नहीं दे रहा हर दिन सैकडों मौतें होती हैं पर मैं जीना नहीं चाहती और वह हैं कि मुझे मौत भी नहीं दे रहा ।
गीता एक बार फिर अन्दर आती हैं और उसका सर उठा कर अपनी गोद में रख लेती हैं उसके आँसूओं को पोछती हैं वह उठकर गीता के सीने से लिपट जाती हैं और फबक फबक कर रोने लगती हैं आज उसकी आंखों से आँसू इस प्रकार वह रहें थे जैसे तेज वारिस में नदियों में बाड़ आ जती हैं। गीता भी उसे नहीं रोकती और उसका मन हल्का होने देती हैं क्योंकि अब वह उसके सच्चे प्यार को जान चुकी थी वह यह भी जान चुकी थी कि वेद धोके बाज नहीं था उसकी अपनी मजबूरी थी अब उसका व्यवहार सानान्य हो गया था उसके मन में काव्या के प्रति हमदर्दी पनपने लगी थी ।
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वेद वहां से चला तो जाता हैं और अब उसकी तलाश भी खत्म हो जाती हैं वह समझ नहीं पाता कि वह क्या करे और कहां जाये। वह सोच विचारो में तेज गती से आगे बडने लगता हैं इस समय वेद उस कटी पतंग के समान था जिसे यह नहीं पता था कि वह कहां जाकर गिरेगी समुद्र के उस पंक्षी की तरह था जिसे दूर दूर तक बैठने के लिये न कोई वृक्ष हीं नजर आ रहा था और न ही कोई छोर नजर आ रहा था उसकी आंखों के सामने अथाह सागर था और साथ हीं एक डर कि अब इस अथाह सागर में डूबने के शिवा कोई और रास्ता हीं नहीं हैं इसी सोच विचार में चलते चलते वह एक गाड़ी के आगे आग जाता हैं वह तो भाग्य से गाड़ी चलाने बाला समय पर ब्रेक लगा देता हैं बरना उसका मरना तय था जैसे हीं गाड़ी मालिक गुस्से में बाहर आता हैं वह वेद को देख कर हैरान रह जाता हैं वेद तुम ।
वेद तुम किन ख्तालो में थे यहाँ कैसे इतने दिनों तक कहां थे न कोई खैर न खवर वह एक साथ उससे बहुत से प्रश्न कर डालता हैं वेद निशब्द उसकी बातों को सुनता हैं और ऐसे खड़ा रहता हैं जैसे मानो कोई हाड़ मास का इंसान न होकर कोई स्टेचू खड़ा हो ।
वह पुनः पूछता हैं वेद कहा हो क्या हुआ कुछ बोलते क्यों नहीं ?
वेद सिर्फ एक बात बोलता है क्या आप मुझे जानते है?
वह कहता हैं तू कैसी बात कर रहा हैं यार मैं तेरा दोस्त तेरा भाई आनन्द तू मुझे नहीं पहचान रहा तुझे हूआ क्या हैं चल पहले गाड़ी में बैठ फिर बाद में बातें करते हैं ।
वेद पर न करने का कोई बहाना नहीं होता हैं वह उसके एक कहने पर हीं उसके साथ गाड़ी में बैठ जाता है।
गाड़ी चलने लगती हैं वह वेद से फिर पूछता हैं क्या हाल बना रखा हैं अब तक कहां था और इस समय कहां से आ रहा हैं चल बता यार ।
वेद अपने साथ घटी घटना उसे एक एक कर बताता हैं और साथ हीं वहां होने का व इस हाल में होने का कारण भी बताता हैं ।
यह सुन कर आनन्द को बहुत दुख होता हैं वह कहता हैं चल मेरे साथ मेरे घर चल जितना हो सकेगा मैं तुझे तेरे बारे में बताऊगा तू चिंता मत कर जिस पर वेद कहता हैं नहीं अब मैं खुदके बारे में जानना हीं नहीं चाहता जो हूं जैसे हूं यहीं से अपने जीवन की एक नई सुरुआत करना चाहता हूं इसमें तुम अगर मेरी कुछ मदद कर सकते हो तो तुम्हारा एहसान बन्द रहूंगा पर इस शहर में नहीं इससे बाहर क्योंकि मैं जिसे नहीं जानता वह तो मुझे जानती हैं और मैं नहीं चाहता कि मैं उसके सामने आऊं और वह भी मुझे इसी तरह पहचाने और मेरा सच जाने वह मुझे धोके बाज समझती हैं यह अच्छा हैं कम से कम अपनी जिंदगी में आगे तो बड़ेगी अगर उसे मेरा सच पता चल गया तो वह वहीं अटक जायेगी और मैं झूटा पड़ जाऊंगा ।
आनन्द कहता हैं चल यह सब बाद में देखेगे अभी घर चलते हैं दोनों घर पहुच जाते हैं आनन्द वेद को अपनी पत्नी से मिलाता हैं और कहता हैं हम दोनों फ्रॆश होकर आते हैं तब तक हमारे लिये खाना लगवा दो आज से वेद अपने हीं साथ रहेगा।
यह सुनकर वेद चौक पड़ता हैं नहीं नहीं यह क्या मैं यहां से कल हीं चला जाऊंगा आप बिलकुल इसकी बातें मत सुनना।
आनन्द ठीक हैं बाबा आज तो हो न तो फिर कल की बात कल करेंगे अभी से उस पर क्यों झगड़े ।
आनन्द की पत्नी दोनों को खाना लगाने की तैयारियां करने लगती हैं दोनो फ्रेश हो आते हैं खाना होता हैं वेद का मन नहीं था पर उन्होंने इतने प्रेम से बनाया था वह उनके आगे विवश था मना नहीं कर सका ।
आनन्द उसे एक रूम दिखा देता हैं और कहता हैं जब तक चाहों बातें करते हैं उसके बाद जब चाहों आराम करने के लिये रूम में चले जाना । वेद पर बातें करने को कुछ था हीं नहीं क्योंकि वह अपने विषय में अब कुछ जानना हीं नहीं चाहता था हाल यह था कि कल तक वह खुद की पहचान जानना चाहता था पर बताने बाला नहीं था आज कोई हैं जो उसका उससे परिचय करा सकता था पर अब वह जानना नहीं चाहता था ।
अतः वेद के पास बात करने के लिये भी कुछ अन्ही था तब आनन्द भी उसकी परेशानी समझ गया था जैसा कि उसने बताया था अतः वह उनकी कॉलेज की बातें जो सिर्फ उनसे जुड़ी थी उसे बताने लगता हैं।
क्रमशः