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निस्वार्थ सच्चा प्रेम ( A true Love Story ) - 6

9 सितम्बर 2022

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वह मात्र और मात्र उन बातों को बताता हैं जिनमें उन्होंने बचपन में मस्ती की थी किस प्रकार स्कूल में बंक मारके खेला करते थे और आपस में लड़ा करते थे  उसकी बाते सुनकर  एक लम्बे समय बाद वेद के चैहरे पर एक मुस्कान देखने को मिली थी । 
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गीता काव्या को प्यार से समझाती हैं बच्चा बहुत हो गया कब तक आखिर उसकी यादों में खोई रहोगी कब तक खुद को उसकी गलती की सजा देती रहोगी। अब जब आगे बड़ हीं चुकी हो तो उसे जीओ भी खुद को क्यों उसकी यादों में जकड़ रखा हैं ? बहुत हो गया मोम की तरह पिघलना अब बन्द करो । जीवन बहुत लम्बा हैं ऐसे कैसे जी पाओगी अगर यू हीं मोम बन कर पिघलती रहीं तो । मोम बनने से काम नहीं चलेगा तुम्हें फौलाद बनना हीं पड़ेगा और उसकी यादों के बन्धन से खुदको आज़ाद करना हीं होगा। 

काव्या गीता की बातों को सुनकर आंशू पोछते हुये कहती हैं जी मैं उससे प्यार नहीं नफरत करती हूं पर इस दिल का क्या करू जो उसके लिये आज भी धड़कता हैं इन सांसो का क्या करूं कि सांसे लेती हूं तो ऐसा लगता हैं कि हर सांस में उसका हीं नाम निकलता हैं । इसी लिये खुद को दिन में एक मिनट के लिये भी फ्री नहीं रखती कि भूल से भी उससे जुड़ी कोई बात याद न आये पर रातों का क्या ? मैं रातों में सो नहीं पाती हूं उन प्रश्नों को सोच सोच कर जो अब भी अनउत्तरित हैं मुझे उससे नफरत हैं और रहेगी पर एक बार उससे मिलकर उन प्रश्नों का जबाब जरूर चाहती हूं जो मुझे रातों में सोने नहीं देते। मैं क्या करू अगर उस ऊपर वाले ने मुझे 
जिन्दगी दी हैं मुझे आग के दरिया की तरह
उससे पार जाने के लिए मोम की कश्ती दी हैं ।

गीता एक वार फिर उसके दिमाग से खेलती हैं और कहती हैं तू पागल हैं तू हीं सोच जिन प्रश्नो के उत्तर आज तक नहीं मिले अब क्या मिलेगे? और अगर मिल भी गये तो क्या जो समय निकल चुका हैं या निकल जायेगा वह क्या लोट आयेगा बेटा बात को समझो और भूल जाओ उसे मिटा दो अपनी यादों से । 
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आनन्द की बातों में सभी हंस हंस कर लोट पोट होने लगते हैं और समय ऐसे बीतने लगता हैं जैसे घड़ी की सुई आज दौड़ लगा रहीं हो सभी सोने के लिये चले जाते हैं । 
वेद अपने रूम में सोने के लिये जाता हैं पर  नींद उससे कोसो दूर होती हैं वह फिर उन बातों को सोचने लगता हैं जो गीता ने उससे कहीं थी अब वह उस दौराहे पर आ चुका होता हैं यहाँ से उसे रास्ता नहीं सूझ रहा था कि किधर जाये एक तरफ वह था जो उसे काव्या भले न दिला पाये पर उसकी खुद से खुद की पहचान जरूर करा सकता था दूसरी तरफ गीता से किया हुआ बादा था कि अब मैं खुद की पहचान भी नहीं करूंगा और इन्हीं ख्यालों मे रात कब खत्म हो गयी पता हीं नहीं चला । 
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आनन्द के समझाने पर वह उसके यहां रुक जाता हैं और आनन्द की सहायता से उसकी जोब भी लग जाती हैं अब एक तरफ सब कुछ भूल कर वेद अपने काम में जुट जाता हैं वहीं दूसरी और काव्या भी खुद को मोम से फौलाद बनाने में जुट जाती हैं । समय बीतने लगता हैं दिन महीनों में बदल जाते हैं और महीने साल में एक एक कर अब पांच वर्ष निकल जाते हैं न तो दोनों एक दूजे से मिल हीं पाते हैं । और ना हीं एक दूजे को भूल पाते हैं।
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एक दिन अचानक दिव्या का फोन आता हैं वह बहुत घबड़ाई हुई होती हैं वेद उसके फोन पर दौड़ कर वहां चला जाता हैं जाकर देखता हैं कि दिव्या के पिता की हालत पुनः बिगड़ने लगती हैं और वह होस्पीटल में होते हैं यह उनका दूसर हार्ट अटेक था बहुत सावधानी व देखभाल की उन्हें जरूरत थी डाक्टर उनका उस समय तो इलाज कर देते हैं और दो दिन भर्ती करने के बाद वह कहते हैं फिल हाल तो मामला सभल गया है पर अब इन्हे २४ x७  देखभाल की आवश्यकता है अतः अब इन्हें अकेला नहीं छोड़ें डॉक्टरों ने यह बात साफ तौर पर कहीं थी। 

दिव्या के साथ वेद भी उन्हें लेकर घर को जाता हैं वह ऑफिस में फोन कर कुछ दिन की अमरजेन्सी छुट्टी ले लेता हैं  अब वह उस महान आत्मा की देख रेख करता हैं जिसकी बदोलत आज वह जिन्दा था, जिसने उसे जीवन दान दिया था । और वेद इस बात को अच्छे से जानता था आज समय था कि वह उनकी सेवा कर सके और वह कर रहा था तभी कुछ ऎसा होता हैं कि वह वेद की जिंदगी को ही बदल देता हैं अंकल वेद और दिव्या दोनों को बुलाते हैं और समझाते हैं देखो बेटा मैं जानता हूं तुम दोनों की जिंदगी का सच और यहीं कारण हैं कि तुम दोनों ही अकेले अकेले हो किन्तु याद रखना दो अपूर्ण अगर मिल जाये तो एक पूर्ण  इंसान बन जाता हैं ।  हा बेटा मैं जो कह रहा हूं उसे समझो मेरी ज़िंदगी का अब कोई भरोसा नहीं हैं उधार की ज़िंदगी और पैसे के बल पर कुछ श्वासे खरीद तो सकता हूं पर कब तक उसकी भी एक समय सीमा हैं मैं तुमसे जिद तो नही करूंगा पर चाहता हूं कि तुम दोनों अगर एक हो जाते हो तो मैं निश्चित होकर यहाँ से बिदा ले सकूंगा फिर भी अंतिम निर्णय तुम दोनों का हीं होगा । तुम चाहो तो मना कर सकते हो और चाहो तो मान सकते हो । वेद उन्हें संभालते हुये कहता हैं आप अभी आराम करे अभी पहली आवश्यकता हैं कि आप स्वस्थ्य हों इस विषय पर हम बाद में बात कर लेंगे। 

दिव्या भी वेद की हां में हां मिलाते हुये कहती हैं हां पापा आप हैं तो सब कुछ हैं आप ठीक हो जाये पहले फिर हम इस विषय पर बात कर लेंगे।

दिव्या के पिता कहते हैं बेटा जानता हूँ तुम दोनों समझदार हो पर एक बात याद रखना जिंदगी मोका बार बार नहीं देती हैं  कुछ तो बात होगी कि उस समय इसे मैं होस्पीटल लेकर गया और यह हमसे परिवार की तरह घुल मिल गया और उसके बाद से इसने जब जब हमें इसकी जरूरत अनुभव हुई एक फोन पर चला आया हमारे साथ न रहकर भी हमसे अलग नहीं हैं और हमसे रिस्ता न होते हुये भी उसे निभा भी रहा हैं । अब तुम समझदार हो चुके हो अपनी अपनी जिंदगी का फैसला कर सकते हो पर इन बूढ़ी आंखो के भी कुछ अरमान हैं अच्छा होगा जीते जी वह पूरे हो जाये या फिर उन्हीं अरमानो को लेकर दुनियां से जाना होगा ।

हवन कुण्ड तो जलना तय हैं अब विवाह के मण्डप का हवन हो और उसमे प्रेम की आहूति डाली जाय या मृत्यु का हवन हो और इस देह की उसमे आहुति डाली जाय अब तो बस यही देखना शेष हैं ।

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काव्या पर भी अपनी जिंदगी में आगे बढ़ने के लिये प्रेशर डाला जा रहा था उससे भी काम के साथ साथ सादी के लिये कहा जा रहा था पर काव्या अड़िग थी उसने साफ साफ कह दिया कि अभी मैं सिर्फ अपने काम पर ध्यान देना चाहती हूं आपकी हर बात मान ली अब आगे मुझसे किसी भी प्रकार की जबरदस्ती न करें। और वह अपने काम व कैरियर पर फोकस करने लग जाती हैं वह वेद से नफरत तो करने लगी थी पर किसी और से विवाह बन्धन में नहीं बधना चाहती थी जिसका कारण था कि अभी वह पूरी तरह से आश्वस्त नहीं थी कि वेद ने उसे धोका दिया हैं ।
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वेद असमंजस में था कि वह अंकल की बात का क्या जबाब दे वह उनके एहसान तले दवा हुआ था और दिव्या की भी मर्जी नहीं जानता था उधर दिव्या भी इसी उलझन में थी कि कहीं वह यह न समझे कि हमने उसकी जान बचाई हैं  और हम उसे अब उसका बदला चाह रहें हैं वह भी अपनी नजरे चुरा रहीं थी अब हालत यह थी कि दोनों न तो बात करने की पहल हीं कर पा रहें थे और न हीं सीधे सीधे हां या न कह पा रहें थे एक दिन दिव्या के पिता एक एक कर दोनों को बुलाते हैं और उनसे उनकी मर्जी पूछते हैं दोनों हीं पहले तो बचने का प्रयास करते हैं फिर अपने मन की बात कह देते हैं वह सब समझ जाते हैं और दोनों को घूमने जाने को कहते हैं दोनों एक साथ घूमने चले जाते हैं पर साथ रहकर भी जो संनाटा था वह टूटने का नाम हीं नहीं ले रहा था फिर अचानक दोनों एक साथ बोलते हैं और रुक जाते हैं फिर कुछ देर के लिये संनाटा छा जाता हैं उसके बाद दोनों एक दूसरे से नजरे मिलते व चुराते हैं और माहोल खामोश हो जाता हैं कुछ समय बाद खामोसी की गहरी चुप्पी टूटती हैं वेद कहता हैं दिव्या जैसा कि आप जानती हो मेरे विषय में और मैं आपके विषय में जानता हूं फिर भी इस समय बात न आपकी हैं न मेरी बात हैं अब बात हैं अंकल की आपने क्या सोचा हैं । आप कुछ बोले तो कोई बीच का रास्ता निकल सकता हैं ।‌

दिव्या उसकी बात ठीक से समझ नहीं पाती हैं वह उससे साफ साफ कहने को कहती हैं फिर वह समझाता हैं कि आप भी अभी तक अपने पहले प्यार को नहीं भूल पाई हैं और मेरे भूलने न भूलने से कोई फर्क पड़ने बाला नहीं हैं क्यो न हम अंकल जी की खातिर उनकी खुसी के लिये विवाह कर लेते हैं और उसके बाद हम वैसे हीं रहेंगे जैसे आज रह रहें हैं । दिव्या को पूरी तरह भरोसा तो नहीं होता उसकी बातों पर फिर भी वह पिता की खुसी की खातिर यह करने को तैयार हो जाती हैं और आनन फानन में दोनों की शादी हो जाती है। और जैसा कि दोनों के बीच तय था एक ही कमरे में दोनों दो अजनबीयों की तरह अलग अलग सोते हैं ।

कुछ महीनों बाद अचानक दिव्या तेज बुखार में आ जाती हैं और दिन व दिन वह कमजोर होने लगती हैं उसका स्वास्थ्य सभलने का नाम हीं नहीं ले रहा होता हैं वेद उसका बहुत ख्याल रखता हैं वेद की इस प्रकार देखभाल से वह संतुष्ट तो थी पर अब उसे खुद से घ्रणा होने लगी थी वह सोच रहीं थी कि हमारा तो जो होना था वह होता हीं पर अब हमारे कारण इस भले व्यक्ति की जिंदगी और खराब हो रहीं हैं । वह कमजोर पड़ने लगती हैं उसे मन हीं मन वेद से प्रेम होने लगता हैं वेद था कि बस अपना धर्म निभा रहा था ।
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काव्या अब धीरे धीरे अपने काम में व्यस्त होने लगी थी और वेद को भूलने लगी थी उसके घर बाले उसके लिये सम्बन्ध देखने लगते हैं एक एक कर कई रिस्ते आते हैं पर हर रिस्ता लोट जाता है वह विवाह करना हीं नहीं चाहती थी मानो जैसे उसने ठान लिया हो कि उसे बिना शादी के हीं निराश्रित रहना हो ।
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दिव्या का स्वास्थ्य धीरे धीरे सुधरने लगता हैं और वेद भी अपने काम पर जाने लगता हैं सब कुछ ठीक चल रहा था कि अचानक एक दिन वेद को सर्दी से बुखार चढ़ जाता हैं कई कई रजाई उढाने पर भी उसको सर्दी लग रहीं होती हैं वह दो दिन तक वैहोशी की हालत में होता हैं और दिव्या उसका हर पल ध्यान दे रही थी यहाँ तक कि अब वह बैड पर हीं सो रहा था और दिव्या भी उसके पास हीं सो रहीं थी एक कमजोर लम्हा आता हैं और दोनों एक दूसरे की ओर खिचे चले आते हैं श्वासों से श्वासें  टकराती हैं एक दूसरे के जिस्म टकराते हैं एक दूसरे की गर्मी का एहसास होता हैं और दोनों एक दूसरे के आगोस में खो जाते हैं सारी मर्यादाये टूट जाती हैं दिखाबे के पती पत्नी आज सच में पती पत्नी बन जाते हैं और जब होश आता हैं तब तक देर हो चुकी होती हैं ।
वेद और दिव्या एक दूजे से नजरें चुराते हैं इसमें दोश किसी का नहीं था दोनों हीं एक कमजोर लम्हे का शिकार हो गये थे किन्तु इस मिलन का एक सकारात्मक असर यह हुआ कि वेद का जो बुखार डाक्टरो की दबा से नहीं उतर रहा था वह बुखार पूरी तरह उतर गया था वह इस बात की शर्मिंदगी में था कि वह अपना बादा निभाने में असफल रहा और वह दूसरे शहर में अपनी कम्पनी से अपना ट्रास्फर ले लेता हैं दिव्या अब चाहती थी कि वह अब न जाये पर वह अब रुककर दौबारा वही गलती नहीं दोहराना चाहता था और वह लाख रोकने पर भी दूसरे शहर जाकर काम करता हैं ।  कुछ समय बाद दिव्या को पता चलता हैं वह वेद के बच्चे की मां बनने बाली हैं वह फोन पर वेद को बताती हैं वेद उससे इस अनचाही परेशानी को लेने से मना करता हैं और एवोर्शन कराने को कहता हैं पर वह उसकी नहीं सुनती हैं उसके बच्चे को अपनी कोख मे पालती हैं इस बीच वेद उससे मिलने एक भी वार नहीं आता हैं वह भी वेद को कुछ नहीं बराती हैं जब दस मांह पूर्ण होने पर भी बच्चा बाहर नहीं आता और डाक्टरो द्वारा एक के बाद एक तीन डिलिवरी की डेट निकल जाती हैं तो डाल्टर ओप्रेशन द्वारा बच्चा करने की कहते हैं पर दिव्या को खून की कमी थी डाक्टर कहते हैं कि मां और बच्चे में से किसी एक को बचाया जा सकता है जिसपर दिव्या कहती है यह वेद का अंश हैं मेरी जान भले हीं चली जाये पर बच्चा हर हाल में बचना चाहिये उसके पिता विवश हो जाते हैं वह दुखी होते हैं वेद भी वहां नहीं होता हैं पर डाक्टरो की कोशिष व ऊपर बाले की कृपा से दोनों हीं बच जाते हैं बच्चे की खबर सुनकर भी वेद नहीं आता हैं । फिर अचानक एक दिन दिव्य के पिता को तीसरा अटेक आता हैं और वहीं उनकी मृत्यू हो जाती हैं दिव्या उसे फोन पर बताती हैं वह अगले दिन की सुवह हीं पहुच जाता हैं उनकी अंतिम यात्रा निकाली जाती हैं तेरह दिन की क्रिया होती हैं इन दिनों एक तो वैसे हीं दोनों बात नहीं कर पाते ऊपर से वह करना भी नहीं चाहते थे एक एक कर तेरह दिन बीत जाते हैं वेद अपने बच्चे को ठीक से देखता भी नहीं हैं फिर काव्या के कहने सुनने पर वह उसे देखता हैं दोनों एक मांह बाद उसका नाम करण करते हैं जिसमें कोई पंडित नहीं आता दिव्या हीं उसका बाम वेदांश रख देती हैं उसका मानना था कि यह वेद का अंश हैं इस लिये इसका नाम वेदाश होना हीं चाहिये ।

क्रमशः



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