नई ग़ज़ल
रुक़्न/वज़्न- मफ़-ऊ-ल/मफ़-ऊ-ल/फाइलातुन/फेलुन
221/221/2122/22
कल शाम,इक ख्वाब, ने डराया, मुझको,
उस डर ने, हर रात, में जगाया, मुझको।
अच्छाइ, दिल में मि,रे है फिर लौ,ट-आई(लौटाई)
दुश्मन भ,लाई (भलाई) ने,है बनाया,मुझको।
किरदार, उसका जी, है शकुनी, जैसा,
जीवन के, जुए में, है हराया, तुझको।
इक महक,ते तन कि,जी छुवन है, मखमलि,
सहमी हु,ई रात,में सुलाया, मुझको।
करता ग,या मैं क,त़ल हूं ख्वाई,शों का,
जिसने जी,भर कर जी,है रुलाया,मुझको।
वह चांद, है चांदनी, सी चाहत, उसकी,
हर रात,चांदनि से,है भिगोया, मुझको।