तेरे पैंतरे को तेरे दंगल को खूब समझते हैं
हम आदिवासी जंगल को खूब समझते हैं
हाकिम हमें ग्रहों की चाल मे मत उलझा
हम,सूरज,चांद,मंगल को खूब समझते हैं
उससे कहो बीहड़ की कहानियाँ न सुनाए
चम्बल के लोग चम्बल को खूब समझते हैं
इन्होंने सर्दियाँ गुजारी हैं नंगे बदन रहकर
ये गरीब लोग कम्बल को खूब समझते हैं
जो बच्चे गाँव की आबोहवा मे पले बढ़े हैं
वो नदिया,पोखर,जंगल को खूब समझते हैं
मारूफ आलम