Chapter~1
(इशारे)
दिल्ली......! जितनी रफ्तार से यह सहर चलता है उतनी ही थमी थमी सी जिंदगी है यहां की। इन लोगों को देखकर ऐसा लगता है जैसे इन्हें इंतजार है किसी के आने का| इन सबके बीच मैं भी इंतजार कर रहा था। उस शख्श के पास जाने का जिससे में बेहद प्यार करता था।
अब मेरे मन में थोड़ी सी भी उलझन नहीं थी बस इंतजार था, तो उससे मिलने का। अगर थोड़ी बहुत उलझन बची हुई थी तो उसमें इतना दम नहीं था कि वह मुझको रोक सके| मुझे लग रहा था कि मैं चिल्ला-चिल्लाकर सारी दुनिया से कह दू कि मुझे उससे प्यार हो गया है। और कल उसको मै अपने दिल का हाल बताने वाला हूं। लेकिन कल तक का ये सफर काफी कठिन सा प्रतीत हो रहा था। दिल जोर जोर से दहाड़ने को कर रहा था। लेकिन इन सब के बीच अपने दिल की फीलिंग्स को किसी के साथ बॉटने का मन कर रहा था।
पर बताऊं तो कैसे? काश मेरा कोई दोस्त होता जिससे मैं अपने दिल की बात कह पाता। मेरा मन किया कि मम्मी को बता दूं। लेकिन मेरी उलझन तब और बढ़ गई! जब मुझे ख्याल आया कि-अगर उन्हें पता चला तो वह मुझे घर से बाहर भी न निकलने देगे। उन्होंने गांव जरूर छोड़ा था लेकिन वहां के विचार नहीं।
वैसे भी पापा मम्मी इन चीजों में कहां विश्वास रखते है और मेरी कहां सुनने वाले थे। हम गांव से आकर शहर में जरूर रहते है! और पापा एक उच्च पद पर सर्विस मैन भी है। लेकिन उनके खयालात अभी भी गांव वाले हैं। मैं यही सोच कर डर जाता हूं|लेकिन करू तोह क्या करूँ! अपनी फीलिंग्स किसके साथ शेयर करू।
लेकिन में उसे भुला भी तो नही सकता हूं। क्योंकि उसको इतना पसंद जो करता हूं। खैर छोड़िए! यह उलझन दिमाग में लिए मैं अपने कमरे में आ गया। और अपना हेडफोन लगाकर अपने कमरे गाने सुनने लगा और आंखें बंद कर उसे याद करने लगा। कुछ समय हुआ ही था। तभी थोड़ी देर में दूसरे कमरे से आवाज आई -"आज सोना नही है क्या कल तुम्हारा सुबह कॉलेज है। इसलिए लाइट बंद करके सो जाओ।
लेकिन आज मुझे कहाँ नींद आने वाली थी। इतनी खुशी जो हो रही थी कि शब्दो मैं बयान करना मुश्किल था। मैंने लेटे लेटे ही मम्मी से कहा हां मै सोता हूं आप सो जाओ|"अगर आज मेरे पढ़ाई के बारे में कोई मजाक उड़ाता तो भी मुझे आज कोई परवाह नहीं थी|
अभी में आंख बंद करके लेता ही था, तभी पानी की तेज बूंदे मेरे चेहरे से आकर टकराई और मुझे आंखें खोलने पर मजबूर किया| पता नहीं उस टाइम मुझे क्या सूझा? खिड़की के पास जाकर उन बूंदो के साथ खेलने लगा। और अपने मुंह पर बार-बार उन बूंदो को फेकने लगा|
इतने में पता नहीं मेरे मन में क्या आया? खिड़की बंद की और अपनी डायरी निकाली जहां पर मैं अपनी दिन की होने वाली घटनाओं के बारे में लिखता था। मगर आज मैं घटनाओं को छोड़कर अपने दिल की फीलिंग्स लिखने लगा। लेकिन आज जो लिख रहा था, वह सीधे मेरे दिल से आ रहा था। मानो ऐसा लग रहा था जैसे डायरी से अपने मन की बात कर रहा हूं।
आज पहली बार किसी को आंखों से मैंने बात करते हुए देखा था| मैं उससे पास जाकर कुछ कहता- तब तक उसके क्लास का वक़्त हो गया था और वह चली गई।अगले दिन न जाने क्यों? उसेे अपने सामने देखकर मैं बहुत खुश था।शायद मैं इंतजार कर रहा था उसका। खैर अब आंखों से शुरू हुई बातें इशारों से होने लगी थी|
बड़े ही अजीब होते थे! "उसके इशारे"। समझ तो नहीं आते थे लेकिन मेरे चेहरे पर एक मुस्कुराहट जरूर दे जाते थे|अब समय के साथ में धीरे-धीरे में उसके इशारे भी समझने लगा था| मैं रोज कुछ ना कुछ इशारे करके उसे हँसाता था। और एक दिन तो हद ही पार हो गई। मैं उसे देखकर ज़ोर ज़ोर से हँसने लगा। और हँसते हँसते जैसे ही मैं उससे बात करने के लिए आगे बढ़ा बीच में आकर प्रिंसिपल सर् ने आकर मुझे पकड़ लिया और अपने साथ अपने ऑफिस मे ले गए। लेकिन मुझे याद है उस दिन वह बहुत हँसी थी।
शायद उसे भी मेरे इसी बचपने से प्यार था। उसे देख कर मुझे ऐसा लगने लगता था कि जैसे मेरा बरसों का इंतजार खत्म हो गया हो|
अब जिंदगी ने एक रफ्तार पकड़ ली थी। यह दिन इतना तेजी से बीते कि हम दोनों को पता ही नहीं चला| कब हम दोनों कॉलेज के आखिरी दिनों तक आ गए। इन्ही इशारों के साथ पूरा साल बीत गया ना कभी मैंने उससे कुछ कहने की हिम्मत जुटाई और ना उसने कभी मुझसे कुछ कहना चाहा। साल जाता दिख रहा था दिल भी बेचैन था क्योंकि आंखें तो रोज मिलती है लेकिन बातें कभी नही होती।
कभी-कभी तो दिल करता था कि भागकर उसके पास चला जाऊं और उस से अपने दिल की बात कह दूं। और उसके साथ उस सफ़र पर चला जाऊं जहां हम दोनों के सिवा कोई पहुंच ही न पाए। लेकिन कभी मेरे दिमाग ने तो कभी मेरे पैरों ने मुझे इसकी इजाजत नहीं दी। मुझे इंतजार था तो सिर्फ कल का। कल का दिन मेरे लिए स्पेशल है, कल के दिन वैलेंटाइन-डे जो है।
अगर मैं कल उससे अपने दिल की बात ना बता पाया तो शायद कभी ना उसे बता पाउंगा| तभी मेरा ध्यान डायरी से हटकर उन घड़ियों की टिक टिक करती सुइयों ने अपनी ओर खींचा जो वैलेंटाइन-डे शुरू होने का इशारा कर रही थी|
मेरी नजर घड़ी पर गई! रात के 12:00 बज रहे थे। आज वह दिन आ ही गया जिसका मुझे बेसब्री से इंतजार था| वह पूरी रात में नहीं सोया उससे मिलने की इतनी जल्दी जो थी |
सुबह जल्दी उठकर सभी काम कर तैयार हो गया। आज तो मैंने ब्रेकफास्ट भी नहीं किया था, उससे मिलना जो था|
आज मैं कॉलेज समय से पहले ही पहुँच गया था। और कॉलेज के गेट के बाहर उसका इंतज़ार करने लगा उसके आने का।लेकिन काफी समय इंतजार करने के बाद भी वह नहीं आयी। मै बेचैन होने लगा। क्योंकि कॉलेज का गेट भी बंद होने वाला था, लेकिन उसका कोई पता नहीं था| मेरे अंदर अजीब-अजीब ख्याल आ रहे थे। "पता नहीं क्या हुआ होगा , क्यों नहीं आयी|"
वहां काफी समय इंतजार करने के बाद मुझे अंदर से रोना आ रहा था सच कहूं तो में दुखी हो गया था। मन तो कर रहा था कि आज अपनी जान ही दे दूं। लेकिन मरता क्या न करता उससे मिलना जो था| अब मेरी आंखों में आंसू थे और वहीं पास में पड़ी एक बेंच पर बैठकर उसके आने की आस में शाम तक बैठा रहा लेकिन वो नही आई.....!
Chapter~2
(दुसरी मुलाकात में)
मन उदास था काफी इंतेज़ार करने के बाद भी वो नही आई।
थक हारकर वापस मै अपने घर लौट आया । आज ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे मानो किसी ने मेरे सीने पर टनों के हिसाब से वजन रख दिया हो।
तभी माँ ने किचन से खाने के लिए आवाज लगाई।
आंखों में आँशु और भरा हुए गले से मैंने माँ को खाने के लिये मना कर दिया।
और अपने कमरे में जाकर लाइट बंद कर चुप चाप बैठ गया। आंखे बंद करके आज की घटना को याद कर ही रहा था।
तभी अचानक पानी की बूंदे मेरे चेहरे पर गिरती हुई दिखाई दी। लेकिन आज इन बूंदो के साथ खेलने का मन नही कर रहा था।
आज उन बूंदो की झिम झिमाहत से भी मन में एक बेचैनी उत्पन्न हो रही थी।
काफी देर तक मचलने के बाद मैंने फिर उस डायरी का सहारा लिया जिसमे मैंने कभी उसको बड़े प्यार से संजोया था। लेकिन आज कुछ लिखने का मन नही कर रहा था।
काफी कोशिश करने के बाद भी मैंने शब्दो को नही पिरो पाया। और डायरी बंद करके अपने बिस्तर पर बैठ गया।
काफी कसमकस के बाद पता नही कब आंख लग गयी।
जब सुबह उठा तो मन पिछले दिन की बात को लेकर काफी उदास था। जैसे मेरी चलती हुई गाड़ी में किसी ने ब्रेक मार दिया हो। सब कुछ अपनी जगह रुक सा गया हो।
बड़ी हिम्मत करके मैंने अपने कदमो को आगे बढ़ाया और बाथरूम की तरफ चल दिया।
तभी पीछे से माँ की आवाज आयी~ बेटा जल्दी से तैयार हो जाओ आज नास्ते में तुम्हारी पसन्दीदा डिश बनाई है।
और मै माँ को उखड़े मन से ठीक है बोलकर बाथरूम की तरफ चल दिया।
तैयार होने के बाद जैसे ही मैं खाने की टेबल पर बैठा तो माँ ने गर्म गर्म आलू के पराठे और चटनी मेरे सामने रख दी। जिस खाने के लिए मैं अपनी माँ से हमेशा ज़िद करता रहता था। लेकिन आज वो मेरे सामने रखा है। और कोई उत्तेजना भी नही हो रही है। इन सब उथल~पुथल के बीच पिताजी भी तैयार होकर अपने कमरे से बाहर निकले। और खाने की टेबल पर आकर बैठ गए। पिताजी ने कॉलेज के बारे में पूछना शुरू किया। लेकिन आज मन किसी भी प्रश्न का उत्तर देना नही चाहता था। लेकिन पिताजी के सामने मन को काबु में किये सिर हिलाकर उनके प्रश्न का जवाब दिया और अपने कमरे में चला गया।
कमरे में पहुचते ही उस खुली डायरी पर निगाह पड़ी।जो टेबल पर रखी हुई थी। काफी देर तक डायरी उलट~ पुलट करने के बाद घड़ी के टक टक पर ध्यान गया तो घड़ी में 9:15 का समय हो रहा था।
झट से डायरी को अलमारी में रखकर। बैग उठाकर माँ को बिना कुछ कहे घर से बाहर चल दिया। घर से कॉलेज की दूरी लगभग 15 मिनट की थी। और आज वो दूरी इतनी बढ़ गयी थी कि 45 से चले जा रहा था और रास्ते खत्म होने का नाम ही नही ले रहे थे। काफी देर चलने के बाद कॉलेज पहुँचा। लेकिन आज कॉलेज में पहुँचने पर वो खुशी नही हो रही थी। जो हमेशा होती थी। अपनी क्लास की वजाय में उसकी क्लास की तरफ मुड़ गया। और मन ही मन भगवान से यह प्रार्थना करने लगा की आज वो आयी हो। इन सब उधेड़बुन के बीच जैसे ही मैं उसके क्लास के पास पहुंचा तो मैंने देखा उसकी सारी सहेलियां बैठी हुई है सिवाय उसके। दिल ने तो कहा चलो उसके बारे में पता किया जाये लेकिन मन ने वही दिल की बात काटते हुए। ऐसा करने से मना कर दिया। लेकिन अब मन अपनी अलग चिंता की आग में जल रहा था। कि कोई कॉलेज आखिरी में आकर क्यों छोड़ेगा क्या हुआ होगा, कोई उसे रोक रहा कॉलेज आने के लिए और भी बहुत कुछ अजीब और डरावने ख्याल आ रहे थे, लेकिन तभी पीछे से मेरे साथ पढ़ने वाले मेरे सहपाठी ने मुझे आवाज लगाई।
और उसने कहा~ तूने नोटिस बोर्ड पड़ा
मैंने कहा~ नहीं क्यों क्या हुआ
तभी उसने बताया कि हमारी परीक्षा इस महीने के लास्ट से शुरू होने वाली हैं।और अब कॉलेज सिर्फ दो दिनों का बचा है।
इतनी सारी समस्याओं के बीच एक और समस्या की खबर सुन मन मे और बेचैनी उत्पन्न हो गयी।
अब सिर्फ यह ख्याल आ रहा था। कि उसका क्या होगा। कहीं उसका साल तो खराब नहीं हो जाएगा।
इन सब के बीच कॉलेज के बंद होने का समय हो गया था। और कॉलेज बंद होते ही मैं अपने घर की तरफ निकल पड़ा। मन में उतनी ही बेचैनी लिए रास्तो की तरफ बढ़ता चला जा रहा था। और जब घर पहुंचा तो मैंने देखा की माँ को बहुत तेज बुखार है। तो मैं उन्हें झटपट से पास वाले डॉक्टर के क्लिनिक पर ले गया। काफी देर जांच करने के बाद पता चला की उन्हें मलेरिया हुआ है। तब तक पिताजी भी वहाँ पहुंच गए थे। और डॉक्टर ने उन्हें वहीं हॉस्पिटल में भर्ती कर लिया। रात होने वाली थी तो पिताजी ने मुझे घर भेज दिया और खुद माँ के पास रुकने के लिए बोला। तो मै घर चला आया। आज मै घर पर अकेला ऊपर से उसकी यादें दोनो एक दूसरे के साथ ऐसे जुड़ी हुई थी जैसे कोई प्रेमी जोड़ा प्यार में आपस मे लिपटे होते है। घर पहुंच कर मैं अपने कमरे में गया और अलमारी में से डायरी निकालकर उसमे लिखने लगा। लेकिन वही कुछ शब्द तो ठीक थे। लेकिन जब बारी उसकी यादों को डायरी पर उतारने की आयी तो कलम बंद पड़ गयी।
काफी जदोजहद के बाद कलम और डायरी को वहीं छोड़ मै अपने बिस्तर की तरफ बढ़ गया। और लाइट बंद करके सोने लगा लेकिन नींद का तो कोशो कोशो तक कोई ठिकाना नही था सिर्फ ठिकाना तो उसकी यादों का औऱ उसकी बेहिसाब शरारतो का। बस उन्ही को याद करते हुए कब सोया पता ही नही चला। सुबह उठा जल्दी से फ्रेश हुआ। औऱ हॉस्पिटल की तरफ निकल गया। हॉस्पिटल पहुँचते ही पिताजी हॉस्पिटल से घर आ गए। क्योंकि उनकी आज बहुत ही जरूरी मीटिंग थी। तो आज मुझे कॉलेज न जाकर सिर्फ माँ के पास रहना था। पुरा दिन माँ के पास रहने के बाद डॉक्टर ने माँ को डिस्चार्ज करने के लिए बोला। तब तक पिताजी भी आ गए थे।हम और पिताजी माँ को घर ले आये। माँ को देखने कुछ पड़ोसी भी आये। इस वजह से काफी लेट हो गया था तो मै बिना कुछ खाये पिए सोने चला गया। लेकिन आज याद तो आयी लेकिन उस क़दर नही जिस क़दर रोज आती थी।
इन्हीं यादों के सिलसिलों के साथ परीक्षा भी निकट आ गयी थी।कुछ समय बिता..
परीक्षा प्रारम्भ हुई तो उसी बीच मैंने बड़ी हिम्मत जुटाकर उसकी सहेली से उसके बारे में पूछ लिया।
तब जाकर मुझे सच का पता चला कि वो इस कॉलेज में सिर्फ पड़ने आती थी। लेकिन उसका एडमिशन किसी और कॉलेज में है। इसलिए अब वह वही पर क्लास अटेंड कर रही हैं।
यह सुन अपने आप पर बढ़ा पछतावा हो रहा था काश हिम्मत करके उसे बोल दिया होता तो शायद आज वह मेरे पास होती है।
लेकिन अब कर भी क्या सकते है... ऐसा सोचकर उसे भूलने की कोशिश में लग गया.. परीक्षा समाप्त हुई। रिजल्ट अन्नोउंसड हुए। और मै पास हो गया।
लेकिन अब शुरू हुआ सबसे खतरनाक दौर.. बेटा अब आगे क्या.. एक ऐसा सवाल जो काफी विद्यार्थियों के लिए अभिशाप है। और वही मेरे साथ हुआ। पिताजी ने भी पूछा~ बेटा अब आगे क्या तो मुझे उसे भूलना भी था। और इस दिल्ली से बाहर भी निकलना था। तो मैंने फैसला किया कि मै अब इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने और उसकी यादों को भुलाने चंडीगढ़ जाना चाहता हूँ। .... लेकिन किस्मत ने तो कुछ और ही सोच रखा था।
सब कुछ खत्म करके मै चंडीगढ़ पहुंचा। और मैंने दाखिला लिया अपैक्स विश्वविद्यालय में। सब कुछ सही चल ही रहा था। कि अचानक एक दिन कैंपस के कॉरिडोर में हम दोनों टकरा गए। जैसे ही मैंने उसको देखा मेरी सांसे थम गई। मेरा रक्त का बहाव 4000 km/sec के हिसाब हो गया। दिल की धड़कने तेज हो गयी। लव हार्मोन्स उमड़ उमड़ के बाहर आ रहे थे।
वो भी वही स्तब्ध खड़ी थी मानो कोई पत्थर की मूर्ति मेरे सामने खड़ी हो...
मेरी खुशी का ठिकाना नही रहा......