भरने को भर दूं पूरी किताब अपने शब्दों से
लिखने को लिख दूं बेहिसाब खाली पन्नों पे
कारण भी है लिखने के और लिखना भी चाहता हूं मैं
साथ भी है ईश्वर का और आगे बढ़ना भी चाहता हूं मै
कुछ करना भी चाहता हूं मैं,सबको पढ़ना भी चाहता हूं मैं
सीखना भी चाहता हूं मैं सबको दिखना भी चाहता हूं मैं
संघर्ष के इस मंच पे,गिर के उठना भी चाहता हूं मैं
ना करो रोक टोक,गम ये शोक,
मेहनत के आगे झुकता है जोग
जब सिर चढ़ जाये परिश्रम का रोग
बस साथ रखना सकारात्मक सोच
तब हर बोझ लगे है हल्का
सही प्रयोग करो तुम बल का
छल का प्रश्न नहीं है उठता,जब विश्वास करो तुम खुद पे
चाहे उठ जाओ कितना भी ,पर रहो सदा तुम झुक के
अंहकार ना सर पे घर करे,इस बात का ध्यान रहे
मस्तिष्क में सिर्फ ज्ञान रहे,ना ज्ञान का अभिमान रहे
ज्ञात रहे कितना भी सीखों, उतना ही और है सीखने को
ज्ञात रहे जितना हो जीते, उतना ही और है जीतने को
ज्ञात रहे ज्ञान समाप्त ना होता, जितना पढ़ो उतने अज्ञानी
ज्ञात रहे अधिक ज्ञान भी घातक, भूलो ना रावण की कहानी
हां मुझे ज्ञात हैं मैं बालक हूं अभी उम्र मेरी कुल सत्रह बरस
पर इस छोटे जीवन में भी लोगों को लिया मैंने काफी परख
दुनिया भी जीतेंगे हम खुद पे विश्वास रखना सीख लिया
ऊं नाम भी साथ देता जब साथ खुद का देना सीख लिया
साथ खुद का देना सीख लिया- आशीष