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हल पर हाथ लगा के देखो

22 फरवरी 2016

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फेंट फेंट के 

बात के झाग 

जहर बेल से 

जल गइल बाग़

गला फाड़ के
कान फाड़ के
राग होईल बैराग ,
कइसन मधुबन
ई ता खाण्डव
ई तांडव के पांडव 
भुखला के का दिहन
मुह में रोटी साग
ब्बात के झाग
बात के आग 
गला पे गमछा 
मू पर गमछा 
ढोलक ताली 
सम पर खाली 
चिकरते रहो चिल्लाओ 
भेजे थे पेट काट के
मु पर 
मट्टी साट के 
गऊ से सीधा था तुम 
मु में जीभ नहीं था 
अब तो गला का नस है 
तुम पर किसका बस है 
सिस्टम बुझा रहा है ? 
घुघनी रोटी खा के 
लैंप जला के 
बाऊ जी जा के 
तरकारी लावें 
तू बैठे 
किताब में 
मू नुका के ?
अब इनका सिस्टम बुझाया 
इन्दरनगरी भेजे 
एक्लॉता फोटिन कैरेट 
चैन बेच के
अन्धेरा में
फोकचा का ठेला खेंच के 
हमरे राजा को 
हम इन्दरपुरी भेजे 
घूर गया मुंडी
पर बज्जर 
हे दीनानाथ
घूर गया मुंडी
ताजा हवा खाली 
ढोलक ताली
ढाबा ढाबा 
बखत खराबा 
बातबनौरी महल 
बन गया 
चार साल दस साल 
निकल गया 
बाबूजी ऊपर निकल गए 
बहनी ट्युसन 
माई टेंसन
रात दिन
बस झंझट गूंजा 
घुन्नल बूंट के 
खोख्ख्हल भूंजा 
बात का दंगल 
बाहर तनि देखो 
भूख का जंगल 
एक गो घांस 
उगा के देखो 
इतना है सिम्पैथी 
हल पर हाँथ ठेका के देखो 
बाबूजी का रखा है ठेला 
झारो धूरि हिम्मत है? 
मलेरिअ से बच्चा मरता 
दस्त से बच्चा मरता 
का कर लिए 
बनते डाक्टर ?
ढाबा पर जो 
छोकरा है 
पूछो उससे 
का होता है 
बिन आंसू 
काहे रोता है 
ई सब में 
पोपलार्टी नहीं है 
पावर नहीं है 
बिना डोलाये 
हाँथ गोर 
फेमस बन्ना है 
लटके रहिये
गुथ्थम गुथ्था 
पटके रहिये 
दुनिया को अब 
टाइम नहीं है 
रास्ता छोड़िये 
हटके रहिये ....

नीरज कुमार

नीरज कुमार

धन्यवाद

23 फरवरी 2016

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रचनाएँ
lonelytrail
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मुझे कुछ कहना है.
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लकीरें

19 जनवरी 2016
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सिरहाने ख्वाब की रोशनाई है सोचता हूँ लिखूंकोरे पन्नों की रूह अफ़ज़ाई है सोचता हूँ लिखूं कंटीली  धुंध में लब्ज़ों की गरमाई हैसोचता हूँ लिखूं .                                       आँखें सैलाब की पसंद हैं                                      लिखूं तो कैसे लिखूं                                          

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कुम्हार

19 जनवरी 2016
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घूम रही है चाक घडी पल दिवस महीना वार दुक्ख की भट्ठी में यूँ तपता है कुम्हार 

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कुम्हार

19 जनवरी 2016
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घूम रही है चाक घडी पल दिवस महीना वार दुःख की भठ्ठी  में यूँ तपता है कुम्हार . 

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धन्यवाद

21 जनवरी 2016
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मेरी  प्रथम प्रस्तुति को सराहने के लिए मैं उदार पाठकों का हार्दिक आभारी हूँ. 

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मुक्त हो गया बैल

21 जनवरी 2016
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मुक्त हो गया बैल रह गया बंधन कोल्हू वहीँ पि स  रहा  देह शैल पर  साँस का चन्दन व्यर्थ घिस रहा प्रकाशित काव्य संग्रह पाँव पगडण्डी ठौर से 

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प्रिय मित्रों

22 जनवरी 2016
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शब्दानगरी के सदस्यगणमेरी मित्रता  का निवेदन स्वीकार करने के लिए हार्दिक धन्यवाद.झारखण्ड के हज़ारीबाग़ मैं १९६५ में  जन्मा  मैं बस प्रकृति से एक लगाव महसूस करता हूँ. पटना विश्वविद्यालय से जियोलॉजी में स्नातक करने के बाद भी मेरी रूचि भाषा और साहित्य में रही है और छिटपुट  कविताएँ लिखता रहता हूँ. १९९२ में

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चम्पई

12 फरवरी 2016
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रंग चम्पई मार्ख़ीन की धोती रंगाई चम्पई हथेलिओं से अंगना पसारती भौजाई मेहँदी पर जल्दी चढ़ी रोज रोज की पीसी हरदिया ऊपर से चम्पई चढ़ा के बढ़ी दरदिया ई सब कैसे कहें बतावें रो रही ननमुनिया और चाहिए मूढ़ी लाई थरिया ले अल्मुनिआ धुप मुई सिहरावन वाली न समझे न बूझे मुंडेर से जो ढूढे तब से दूर तलक  ना सूझे अम्मा जी

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हल पर हाथ लगा के देखो

22 फरवरी 2016
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फेंट फेंट के बात के झाग जहर बेल से जल गइल बाग़गला फाड़ केकान फाड़ केराग होईल बैराग ,कइसन मधुबनई ता खाण्डवई तांडव के पांडव भुखला के का दिहनमुह में रोटी सागब्बात के झागबात के आग गला पे गमछा मू पर गमछा ढोलक ताली सम पर खाली चिकरते रहो चिल्लाओ भेजे थे पेट काट केमु पर मट्टी साट के गऊ से सीधा था तुम मु में जी

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विदा भंगुर दर्पण

23 फरवरी 2016
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आज तव तर्पण भंगुर दर्पण . सत्यशील हेआजीवन पुष्प सुकोमल अभिवंदन पुण्य रिक्त है वृहत मरू वज्राहत भग्न कदम्ब तरु पाषाण कुरूप से संघर्षण विदा हे भंगुर दर्पण .  तुझ पर प्रहार शब्दबेधि कलिकाल सत्य की बलिवेदी छद्म हास का कुटिल व्याल रच रहा मौन का मकड़जाल यह विश्व असुंदर चक्क्रव्यूह लघु दर्पण! अब जीवन दुरूह

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