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सिरहाने ख्वाब की रोशनाई है सोचता हूँ लिखूंकोरे पन्नों की रूह अफ़ज़ाई है सोचता हूँ लिखूं कंटीली धुंध में लब्ज़ों की गरमाई हैसोचता हूँ लिखूं . आँखें सैलाब की पसंद हैं लिखूं तो कैसे लिखूं
घूम रही है चाक घडी पल दिवस महीना वार दुक्ख की भट्ठी में यूँ तपता है कुम्हार