आज तव तर्पण
भंगुर दर्पण .
सत्यशील हे
आजीवन
पुष्प सुकोमल
अभिवंदन
पुण्य रिक्त
है वृहत मरू
वज्राहत
भग्न कदम्ब तरु
पाषाण कुरूप
से संघर्षण
विदा
हे भंगुर दर्पण .
तुझ पर प्रहार
शब्दबेधि
कलिकाल
सत्य की
बलिवेदी
छद्म हास का
कुटिल व्याल
रच रहा
मौन का मकड़जाल
यह विश्व असुंदर
चक्क्रव्यूह
लघु दर्पण!
अब जीवन दुरूह .
जितने प्रहार
सुतनु भग्न
आकुल पृथ्वी
रवि अश्रुमग्न .
निर्दोष सरल
समतल निर्भय
निश्छलता में
महाजय .
हर चोट में
पूरा सूर्य जला
ये सिर्फ
सत्य के तले पला
बाँध नियमो के
अनियम से
तोड़ा अश्म संघर्षण से
फिर संध्या विह्वल
ले समेट
जाती है
दर्पण अब
अंध अंतरिक्ष
की थाती है
हुआ है
युग परिवर्तन ,
विदा
अभिमानी दर्पण .