ये कहानी हैं एक छोटे से बच्चे की हिम्मत की हैं जिसने स्कूल का परिवेश बदल दिया
जिसका नाम सनी हैं जो कि नवमी कक्षा में पढ़ता है और कराते में बहुत माहिर हैं पर ये बात किसी को भी इस नये स्कूल में नही पता थी।
सनी आज अपने नये स्कूल पे पहला दिन और नये लोंगो में पहला कदम रखते हुये स्कूल पहुँचा और स्कूल जा रहे दूसरे बच्चे से - आपका नाम क्या हैं?
उसने कहा- सूरज,
सनी- मेरा नाम हैं मैं आज ही यहाँ कक्षा नवमीं में एडमिशन लिया हूँ।
उससे बाते करते-2 सनी और सूरज स्कूल के क्लासरूम में आ गए फिर बेल बजी और सभी ने जन-गण-मन गाकर अपने-अपने कक्षा में चले गये,थोड़ी देर कक्षा में शिक्षक आये उन्होंने क्लास में एक नज़र घुमाई और सनी पर आकर उनकी नज़र ठहरी, शिक्षक जी बोले-आ गए सनी बेटा-
जी सर जी- सनी ने कहा।
शिक्षक- ठीक है बैठो।
शिक्षक ने सभी को हिंदी पाठ पढ़ाने लगे- वो बीच-बीच मे उस कहानी से सबंधित प्रश्न सभी से पूछते मगर कोई सटीक जवाब नहीं मिलता तो फिर वही सवाल सनी से पूछते तो वह जरूर बताता था इस तरह पहले दिन ही सनी ने सभी बच्चों का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया।
स्कूल की छुट्टी होते ही सनी सूरज के साथ पैदल घर की ओर निकल पड़ा,चलते-चलते उसकी नज़र सूरज के पैर पर पड़ी तो उसने देखा उसके पाँव में एक कृतिम पाँव लगा और वो लड़खड़ा रहा हैं सनी उसे तुरंत पकड़ा और सड़क के किनारे बिठाकर आराम से उसे पाँव में सेट किया और फिर सूरज को सहारा देकर उठाया और फिर सूरज चलने लगा,
सूरज - थैंक्यू सनी, पर न जाने तुम्हे देख कर कुछ ऐसा लगता कि तुम मेरे दोस्ती के क़ाबिल हो,
सनी-ये तो वक़्त बतायेगा दोस्त की अपनी दोस्ती कब तक चलती हैं और कितनी टिकती हैं,विचारों की ज़मीन पर,
सूरज- उसकी बात सुनकर सोचता रहा गया कि बात तो सही कही हैं उसने।
सूरज को उसके घर छोड़ने के लिए सनी ने उनके माता पिता को प्यार से प्रणाम कर अपने घर की और चला गया।
दूसरे दिन वो जल्दी उठकर सीधे सूरज के घर पहुँचा उसके मातापिता को प्रणाम कर बोला- अंकल आप चिंता में कीजिये ये मेरा दोस्त हैं मैं अपना और इसका ध्यान रखूँगा ,उसके पिता ने प्यार से दोनों के सर पर हाथ फेरा, सूरज के चेहरे पर भी मुस्कान थी दोनों स्कूल की ओर निकल गये, प्रार्थना खत्म होते ही दोंनो क्लास में पहुँचे धीरे-धीरे दोस्ती में घुल गये और क्लास में सनी और सूरज के सभी का काम सही ढंग से चल रहा था कि एक दिन सनी को एक दूसरे क्लास के लड़के ने बुलाया और कहा-तुम्हे क्लास का कप्तान क्या बना दिया तुम तो इस स्कूल में ज़्यादा उड़ रहे हो,हद में रहना वरना ठीक कर दूँगा,
सनी- आप बड़े तो हैं लेकिन आपको तरीका नहीं बात करने का ,मैं अभी शिकायत करता हूँ प्राचार्य से फिर देखता हूँ तुम्हे उसने सनी को धक्का दिया सनी पीछे की तरफ गिरने से खुद को बचाया।
स्कूल ख़त्म होते ही सनी सूरज के साथ पैदल निकल पड़ा, सूरज -आज वो लंबा से लड़का क्या कह रहा था तुमसे-
सनी -कुछ नही यार ऐसे ही मुझे डरा रहा था,
सूरज-जरा बचके रहना ये लड़के बहुत बदमाश हैं मुझे भी कई बार धमका चुके है क्योंकि मैं इन्हें भाव नही देता।
सनी-ऐसे लड़को को तो मैं ठीक कर दूँगा।
दूसरे दिन सनी के पापा मेजर रनवीर सिंह प्राचार्य जी मिलकर उन्हें सारी बात बताई क्योंकि रात में सनी सारी बाते अपने पिता को बता दी थी और कुछ और मातापिता ने भी इन कुछ लड़कों की शिकायत की थी, जिससे की प्राचार्य महोदय अपने कक्ष में बैठकर सोच रहे थे कि क्या किया जाये ऐसा कौन सा पाठ पढ़ा दिया जाये कि ये शैतान बच्चे सही हो जाये और आपस मे मारपीट न करें।
ऐसा वो सोच रहे थे फिर उन्होंने कुछ बच्चों को अपने ऑफिस में बुलाया और कहा कि आप सभी मैंने क्यो बुलाया हैं पता है-
सनी-जी सर जी मुझे पता स्कूल का अनुशासन बनाये रखने के लिए और स्कूल में लड़कों के बीच मारपीट न हो इसके लिए।
प्राचार्य- ठीक कहा बेटा सनी तुमने ,आजकल की स्वार्थी दुनियां कोई भी बीच मे आना नही चाहता किसी के ,यदि यहाँ बच्चों में तालमेल और एकता नहीं स्थापित कर पाये तो क्या मतलब इस ज़िंदगी का।
फिर उन सभी बच्चों को प्राचार्य ने क़सम दी की इस स्कूल में ये सब मारपीट और लड़ाई नही होनी चाहिये। सनी और सूरज ने सभी क्लास वालों को एक जगह बुलाकर समझाया कि प्राचार्य जी का ये कहना हैं की स्कूल की प्रतिष्ठा पर कोई आंच नहीं आनी चाहियें।
दूसरी तरफ लंबू कुछ लड़कों के साथ सनी और सूरज को मारने के फ़िराक में था क्योंकि उनकी अच्छाई ने सबकी आँखे खोल दी। क्योंकि लंबू को सभी समस्या का हल सिर्फ मारपीट से ही सूझता था और कुछ लड़के उसकी इसी बात का फायदा उठाते थे।
उस शाम को छुट्टी के बाद तो कुछ नही हुआ मगर सनी ने घर आकर अपने पिता से कहा कि आप उस लंबू लड़के के माता-पिता को बुलाये घर पर।
पापा- क्यो बेटा क्या करना चाहते हो ?
सनी-उन्हें ही ढाल बनाकर ये दिखाना चाहता हूँ कि उनका बेटा क्या कर रहा स्कूल में आकर।
पापा- पर क्या उन्हें पता तो होगा न बेटा।
सनी- हां पापा पर ये मारपीट करके क्या हासिल कर लेगा मुझे उसे यही समझाना हैं।
फिर दूसरे दिन कुछ लोग आये और लंबू के मातापिता को मारकर चले गये घर मे दुखी मौहाल हो गया थोड़ी देर में लंबू का कोई भी दोस्त नहीं आया फिर सनी और सूरज ने लंबू के घर मे कदम रखा और उसे अपने गले से लगाकर बोला- आज फिर मार ले मुझे और सूरज को मगर हमारी अच्छाई को तू नही मार सकता वो जो हमने सभी के दिलो में जगाई हैं ,
उसके इतना कहते ही लंबू तुरंत डंडा उठाया और जैसे ही मारने के लिए हाथ बढ़ाया तो पीछे से सके मम्मी और पापा को खड़ा पाया लंबू उन्हें ज़िन्दा देखकर लिपट गया दोनों से,और फिर प्राचार्य महोदय ने - बेटा तुम्हें इस हद तक समझाना बहुत जरूरी हो गया था क्योंकि तुम्हारी आँखों पर पट्टी चढ़ी हुई थी कि सब कुछ मारपीट से ही ठीक होता हैं और ये सारा नाटक सनी और सूरज और उनके पिता ने किया हैं जिससे की तुम्हारी आँखे समय के रहते खुल जाये और किसी भी स्कूल में इस तरह की कोई भी घटना न हो।
सभी लोग उस दिन बहुत खुश हुए और उसके बाद से स्कूल में कभी भी मारपीट नहीं हुई।
और अहिंसा और नैतिकता की मिसाल बन गया दुनियाभर में सब के लिए।
अजय निदान
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