हाल ही में एक फिल्म रिलीज़ हुई है “हीरामंडी”| हालाँकि
मैंने वो फिल्म अब तक देखी नहीं है, लेकिन जैसा कि प्रचारित है कि ये फिल्म
वेश्याओं पर आधारित है| इस विषयवस्तु पर फिल्म बनाने पर किसी को कोई आपत्ति नहीं
होगी क्यूंकि हम मानें या न मानें वैश्यावृत्ति हमारे समाज की एक सच्चाई है|
किन्तु मुझे यह जानकर आश्चर्य हुआ कि कपड़ों के एक
बड़े ब्रांड ने “हीरामंडी कलेक्शन” के नाम से कपड़ों का एक नया कलेक्शन निकाला है|
विगत कई दशकों से फिल्मों के नायक-नायिकाओं द्वारा पहने गए वस्त्रों के आधार पर
नया फैशन चलन में आता रहा है, किन्तु क्या ये मानसिक दीवालियापन नहीं कि संभ्रांत
घरों की महिलायें किसी फिल्म में एक वैश्या द्वारा पहने गए कपड़ों से प्रेरित कपड़े पहन
कर नया फैशन चलन में लायेंगी|
पिछले तीस वर्षों से विभिन्न विज्ञापनों के माध्यम
से समाज में स्त्रियों को सिर्फ उपभोग की वस्तु के तौर पर दिखाया गया| किसी विशेष
टूथपेस्ट, परफ्यूम, शेविंग क्रीम यहाँ तक कि किसी विशेष इनरवियर का इस्तेमाल करने
वाले पुरुष की ओर स्त्री कामुक होकर लोकलाज को छोड़कर भागी चली आती है| शायद धीरे
धीरे स्त्रियों ने भी यह मान लिया है कि उनके चरित्रवान होने से अधिक आवश्यक है
उनका उत्तेजक दिखना| ऐसे में जब समाज स्वयं स्त्रियों को देवी नहीं एक सम्भोग की
वस्तु के तौर पर देखना चाहता हो, सिर्फ स्त्रियों को इसके लिए दोष देना न्यायसंगत
नही होगा| हम सब इस सामजिक पतन के दोषी हैं|