‘बंगाल’ नाम सुनकर ही सबसे पहले ज़ेहन में आता है माँ काली का विराट रूप और ज़ायकेदार व्यंजन, सिन्दूर-खेला में एक दूसरे को सिन्दूर लगाती महिलायें और बुद्धिजीवियों की एक महान परंपरा|
‘बंगाल’ जो मध्य काल के इतिहास में एक सम्रद्ध सूबे के तौर पर जाना जाता रहा यहाँ तक कि अंग्रेजों ने भी बंगाल को ही हिन्दुस्तान में ब्रिटिश शासन का केंद्र बिंदु बनाया| ‘बंगाल’ जहाँ के विचारकों और बुद्धिजीवियों ने समाज में व्याप्त कुरीतियों के विरुद्ध चेतना जाग्रत कर राष्ट्र का पथ प्रदर्शित किया| ‘बंगाल’ जहाँ विदेशी शासन के विरुद्ध क्रांति की ऐसी मशाल जली, जिसने समूचे राष्ट्र को स्वतंत्रता से प्रकाशित किया|
उसी ‘बंगाल’ में आज अराजकता का माहौल दिखता है, खून-खराबा दिखता है, तोड़-फोड़ और आगज़नी दिखती है| ‘बंगाल’ से सम्बंधित लगभग हर न्यूज़ चैनल पर दिखायी गयी ख़बर या समाचार-पत्र में प्रकाशित समाचार में हत्या, लूटपाट, आगज़नी ही होती है| ऐसा लगता है जैसे ‘बंगाल’ दो राजनीतिक दलों का युद्ध क्षेत्र बन गया हो| जैसे इस राजनीतिक युद्ध के अतिरिक्त ‘बंगाल’ में कुछ होता ही नहीं है|
माना जा सकता है कि जानबूझकर ‘बंगाल’ से सम्बंधित सिर्फ अराज़कता की ख़बरें दिखाई जा रही हों, परन्तु अगर ऐसी घटनाएँ हो रही हैं तो ये बचाव का बहाना नहीं बन सकता| इधर कुछ समय से सरकारी अधिकारीयों खासकर केन्द्रीय सरकार के अधिकारीयों के साथ मारपीट की घटनाएँ एवं उन्हें उनके कर्त्तव्य का निर्वहन न करने देने की घटनाएं देखकर तो ऐसे लगने लगा है जैसे ‘बंगाल’ देश का हिस्सा ही न हो|
हद तो तब हो गयी जब माँ काली के उपासक ‘बंगाल’ में संदेशखाली जैसी घटना हो गयी और वो भी एक महिला मुख्यमंत्री के होते हुए| जहाँ एक व्यक्ति जो उस क्षेत्र का बेताज बादशाह कहा जाता है, जिसने उस क्षेत्र के लोगों की ज़मीने हड़प लीं, वो लम्बे समय तक संदेशखाली की महिलाओं का यौनशोषण करता रहा और सरकार और प्रशासन को इसकी भनक भी नहीं लगी| इस मामले का खुलासा होने पर भी सरकार ऐसी किसी घटना से लगातार इनकार कर रही है| यहाँ तक कि सरकार द्वारा ही खुले तौर पर शोषित महिलाओं पर दबाव बनाया जाने लगा|
मनुस्मृति में एक श्लोक है “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता| यत्रेयास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः” अर्थार्त “जहाँ नारी की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं, और जहाँ नारियों की पूजा नहीं होती है वहां समस्त क्रियाएं (अच्छे से अच्छे कर्म) निष्फल हो जाते हैं| इस महान संस्कृति में पले-बढ़े हम भारतीय किसी नारी का अपमान कैसे कर सकते हैं|
सच जो भी हो, अगर आरोप लगे हैं, तो सरकार की जिम्मेदारी है कि इस मामले की निष्पक्ष जांच हो एवं दोषियों को राजनीतिक संरक्षण न मिले, उन पर कठोर कार्यवाही हो| तब तक सरकार उन शोषित महिलाओं को सुरक्षा का भरोसा तो दिला ही सकती है, एक महिला मुख्यमंत्री से कम से कम
महिलाओं के प्रति इतनी संवेदना की अपेक्षा तो की ही जा सकती है|