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हिसाब-किताब

हिसाब-किताब

Tafizul Hussain

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क्या पाया क्या खोया हिसाब-किताब किसके पास है निरंतर चलते रहना हर हाल में खुश रहना जिन्दगी का आधार है तु अकेला ही नहीं इस सफर में सदियों से चली आ रही है ये कारवां हर किसी को यहां जिंदगी का तलाश है दर दर भटकते रहे लाखों यहां एक मुसाफिर तु भी है यहां चंद दिनों की बसेरा के बाद कहा जाता है इन्सान वो भी एक राज है 

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