*जय श्रीमन्नारायण*☘️🌿☘️🌿☘️🌿☘️🌿*गुरु ही सफलता का स्रोत*🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼 *भाग:-४* *गतांक से आगे------* *अनुभवति हि मूर्ध्ना पादपस्तीव्रमुष्णं।**शमयति परितापमं छायया संश्रितानाम्।।*(अभिज्ञान शाकुंतलम:५/7)अर्थात:- वृक्ष अपने सिर से तो तीव्रउष्णता का अनुभव करता है पर अपने आश्रितों के ताप को छाया से
मौनमौन होकर उस आनंद की अनुभूति करना चाहता हूँलाखों वर्षों से जिसके लिए भटक रहा हूँ।जग मन विलास है....प्रभु हृदय-हुलास है;यह भाव निरंतर आ रहा है,चिर -शांति का द्वार लग रहा है।अनुभूतियाँ जीवन की अनेक हैं..अनेक हैं धरातल भी..मौन का धरातल हृदय-पटल हैसत् चित् आनंद जहाँ हर
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