05/06/22,
ज्येष्ठ मास,
दिन रविवार,
संध्याकाल,
विश्व पर्यावरण दिवस,
सखी राम राम,
जयश्रीकृष्ण,
आदरणीय आज विश्व पर्यावरण दिवस है और हम इस पर भाषण देकर कविता लिख ओर स्टेटस मे डाल कर बहुत श्रम कर के चीखते चिल्लाते है पर पेड नही लगाते ऐसे मनाते है ।हर दफ्तर विद्यालय मे कविता पाठ सेमिनार सब करते है पर कोई काम ऐसा नही करते जिससे पर्यावरण को लाभ हो बस शोर बहुत मचाते है बस शोर।
बताऊ सखी तमिलनाडु के एक प्रोफेसर है जिन्होने रिटायर्ड होकर इस संपदा के महतव को समझा व मान रखा अपनी समस्त राशि निस्वार्थ पेड लगाने पर व्यय की।इधर एक युगल के विवाह उपरांत कोई संतान न हुई गरीब थे सो निर्णय लिया बच्चा गोद न लेकर पेड गोद ले व लिया ही नही खरीदा व सडक के किनारे रोपा
व फिर इच्छा बढती गई एक दो तीन चार दस बीस पचास व सो दो सो और ऐसे ऐसे सैकड़ो पेड रोप दिए।सखी रोपे ही नही पाले व जब तक वो स्वपोषित होते तो अगले लगाते क्रमबद्ध सिलसिलेवार क्रम जारी रख नेकी की। व नेकी कर दरिया मे डाल की कहावत को चरितार्थ किया।
।यह है पर्यावरणविद न कि सेमिनार करने वाले झुलसते मौसम मे एक पेड लगा तस्वीर खिंचा नाटक करने वाले।
सखी मा बाप को खुशिया कैसे दे यह था विषय आज की चर्चा का जो मैने कैक्टस के उदाहरण के साथ जवाब दिया व खूब सराहा जा रहा है।
उधर साहित्यिक कल्पना पर भी दो रचनाए देकर beautiful beautiful कमैंट पाए।
सखी can v pay मां के उपकार न चुका पा सकने पर रचना लिखी।कमैंट भी
सराहनीय आ रहे है ।
सखी बस आज इतना ही एक बात बताऊ सखी कभी एक पेड किसी पानी के स्त्रोत के आसपास लगा कर देखना कभी कोई गंदी सड़क साफ कर देखना।कभी नदी पर गन्दगी फैलाने वाले को रोक कर उनसे लडकर देखना बडा सुख मिलेगा ।जानती हो कैसे जैसे एक कविता लिखी व उस पर हजारो अच्छे कमैट आ गए।
तो चलू सखी अब पौधो को पानी दे आऊ ।पर्यावरण दिवस को सार्थक कर आऊ है तो नित्य कर्म पर आज इसके लिए ही सही।
जयश्रीकृष्ण जयश्रीकृष्ण जयश्रीकृष्ण।
कल मिलते है सखी फिर ।
तुम्हारा दोस्त,
संदीप शर्मा। देहरादून उत्तराखंड से।