27/05/22,,
ज्येष्ठ मास,
दिन शुक्रवार,
संध्याकाल
सखी मेरी को राम राम।
जय श्रीकृष्ण जयश्रीकृष्ण।
सखी तुम बताओ इतना पढती हो मेरे शब्दो का वजन भी ढोती हो तुम्हारा पसंदीदा डायलॉग कौन सा है जो मै कहता हू।तुम न बताओगी जानता हू बक बक बहुत करता हूं न पर हाॅ जय श्रीकृष्ण कहना न भूलता तो यह तो मेरा सबसे प्रिय डायलॉग व संबोधन से लेकर मेरी शायद पहचान भी हो।वैसे मै यह क्यू कह रहा हू ये जानता हू तुम्हारे मन मे आएगा जरूर। पर यह लिपी का चर्चा का प्रश्न था तो उत्तर दिया था आनंद फिल्म का संवाद स्व राजेश खन्ना व अमिताभ जी का ,,""बाबूमोशाय,, हम सब कठपुतलिया है इस जीवन के रंगमंच की जिसकी डोर उपर वाले के हाथ मे बंधी है,कौन,कब,कैसे उठेगा,कोई नही जानता।हा हा हा हा ,हाहाहा,""अटठाहस।
इस डायलॉग की सबसे बडी खासियत फिल्म मे शब्दो से ज्यादा ,इसके टाइमिंग की है।कि कब यह शब्द आते है और जब आते है तो कठोर से कठोर पाषाण ह्रदय भी पिघल ऑखो से झरझर ऑसू रोके नही रोक पाते।
सखी "Try again "
"नया मौका "कहानी का थीम था।जो अपुण ने एक ऑगल भाषा मे व एक अपनी मातृ भाषा मे लिख कर दस मे से दस अंक दोनो मे पाए।समझ रही हो न सखी।
यह आजकल अपना हाल है बस इतनी ही समीक्षा मिल रही है।
वैसे झूठ भी बोल रहा हू किसी रचना के पाठक व मित्र शायद सत्रह के आसपास भी थे अब वो कौन सी पता नही।
आज एक रचना।
"जीवन के रंग " भी लिखी ,उसमे भी फुल मार्क्स आए।
अब आज का homework तो पूरा हो गया ।
आजकल किताब छपवाने की धुन सवार हो रखी है शुरूआत हो चुकी है अपनी श्रध्दा जी बहुत सहायक है।इस विषय पर ।तीन लेखक तो जुड गए है बारह रह गए है कोई बात नही वो भी जुड जाएगे। आशा है जल्द ही ।ईश्वर सहायक है।
कहते भी है कि एक बार जो विचार मन मे आ जाए कि करना है तो सारी कायनात सहायक हो उठती है।बस अब ओखल मे सिर दे दिया है । तो जो भी होगा देखा जाएगा।
किसी को कोई अनुभव हो तो अवश्य बताए। खट्टा मीठा जो भी हो।बताए हो सके तो जुडे क्योकि भले ही ई बुक है व कोई आर्थिक लाभ विशेष न होगा पर प्रसिद्ध हो सकते है यदि रचना मे दम हुआ तो । तो इधर मुझे श्रध्दा मैम ने सुझाया कि हम सर्टिफिकेट भी दे सकते है सहायक लेखक लेखिकाओ को जो जो प्रतिभाग लेगे देखते है।अगर यहा थोडे भी कामयाब हुए तो फिर पेड बुक को ट्राई करेगे।आशा तो है प्रतिलिपि की ट्रेनिंग फलीभूत होगी व रंग लाएगी ।और रंग न भी लाई ।तो अनुभव तो अवश्य देगी न ।
वो एक कहावत भी तो है "कि मुल्ला सीख न देगा तो क्या घर भी न आने देगा।"
यानि लौट के बुद्ध घर को आए नही बल्कि सीख व अनुभव लेकर आएगे।
तो समझी ।सखी इस प्रयास मे ही सब दिन निकल जाता है बस दरकार है तो बारह झुझारू लेखको की रचनाओ की, हाॅ कह दे फिर थीम सोचेगे तब उन पर कविताए रच इतिहास बनाएगे।
क्या कहती हो श्री गणेश तो कर दिया है देखते है इति श्री कब होती है ।
आसान नही है यह बीढा उठाना निशुल्क कह कर भी सब समय खा जाती है और तुम तो जानती ही हो सखी समय ही धन है। वो तो अच्छा हुआ छुट्टिया है। पर सखी सोचो जब अब ये हाल है तो स्कूल खुलने पर क्या होगा चलो ""चिंता काहे जब हरि दिखाए राहे।""
है न सखी
तो अब चलता हू।
जयश्रीकृष्ण जयश्रीकृष्ण जयश्रीकृष्ण।
स्नेहिल तुम्हारा।
संदीप शर्मा।