क़िस्मत अपनी अपनी { कहानी __चौथी क़िस्त ]
[अब तक --- कृष्णा की माता कहती है कि मुझे डर है कि उनकी अंतिम यात्रा में ज्यादा लोग सहयोग करने आएंगे या नहीं }
एक काम करो कृष्णा तुम अपने सारे दोस्तों को खबर करो और सहयोग करने कहो । तुम्हारे दोस्तोम की संख्या भी अगर 20/25 हो जाएगी तो दाह संस्कार ठीक ठाक निपट जाएगा । साथ ही उनके मंझले भाई को भी सूचित कर दो । इस तारतम्य में कृष्णा ने अपने सारे दोस्तों को अपनी समस्या बताइ और कल सहयोग करने को कहा , तो उनके सारे दोस्तों ने कहा कि तुम फ़िक्र मत करो तुम्हारे घर का काम हम अपना ही काम मान कर करेंगे । इसके बाद जब कृष्णा ने अपने मझले ताऊ पुखराज जी को फ़ोन लगाया तो उन्होंने जवाब दिया भतीजे अभी मैं वर्धा में हूं । कल एक नए पावर प्लान्ट लगाने संबंधित बातों के लिए मेरी मुख्य मंत्री और उर्जा मंत्री के साथ वर्धा में मीटिंग है। कल मैं आ नहीं पाऊंगा ।
कृष्णा और उनकी माता जी रात भर इसी चिन्ता में रहें कि मोतीलाल जी की अंतिम यात्रा में 20/25 लोग रहेंगे या नहीं । उनके शव को मुक्ति धाम तक ले जाने में लोगों की कमी के कारण अड़चन तो नहीं आएगी । जिस शख़्स ने जीवन भर मां सरस्वती की पूजा किया हो और लक्षमी माता से जिनकी कुछ दूरी रही हो , उनको श्रद्धानजलि देने लोग जुटेंगे या नहीं ।
देखते ही देखते सुबह हो गई । मोतीलाल जी का पार्थिव शरीर अंदर के कमरों में ज़मीन पर सफ़ेद कपड़ों से लिपटा रखा था । शव के चारों ओर घर परिवार और पड़ोस की कुछ महिलाएं विलाप करती बैठी थीं । उन सबके बीच सुहागा जी सफ़ेद साड़ी पहने उदास बैठी थीं । उनके मुख पर दुख से ज्यादा चिन्ता की लकीरें नज़र आ रहीं थीं । लगभग 9 बजे पड़ोस के गुप्ता जी आए । साथ वे बहुत सारे कपड़े और फूल मालाएं लेकर आए थे । जिनको उन्होंने कमरे के एक किनारे रख दिया । गुप्ता जी के बाद छोटापारा से 10/12 बंसोड़ लोग पहुंचे और वहां पहुंचते ही उन सबने मिलकर बांस और रस्सियों की सहायता से अंतिम यात्रा हेतु काठी बनाना प्रारंभ कर दिए। उनके जाने के बाद मुक्तिधाम के पास स्थित लकड़ी टाल के मालिक यादव जी आए। उन्होंने कृष्णा को बताया कि बेटे मैंने तुम्हारे पिता के दाह संस्कार के लिए यथोचित लकड़ियां निकलवा कर ,मुक्तिधाम के अंदर भिजवा कर सही स्थान पर रखवा दिया है । एक बात और बेटे मैं इन लकड़ियों का पैसा नहीं लूंगा। ये मेरी तरफ़ से आप लोगों को सहयोग होगा और मेरी तरफ़ से मोतीलाल जी को एक प्रकार से श्रद्धान्जलि होगी । इसके बाद बाज़ार से रमेश भट्टर जी आए। उनके हाथ में एक बड़ा थैला था , जिसमें अंतिम क्रिया संबंधित लगभग सारे सामान थे । जिन्हें उन्होंने कमरे के एक किनारे रख दिया और कृष्णा को सारे सामानों के बारे में जानकारी देते हुए कुछ समझाने लगे । तब तक सुबह के 9;30 बज गए थे । घर के बाहर लगभग 100 व्यक्ति एकत्रित हो चुके थे । इस बात को जानकर कृष्णा और उनकी माताजी को सुकून मिला कि जिस बात से वे डर रहे थे वैसी अब कोई बात नहीं हो सकती थी । अब मोतीलाल जी की अंतिम यात्रा यथोचित तरीके से निपट जाएगी । इसके बाद उनके घर के आगे जो हालात पैदा हुए वह कृष्णा और उनकी माताजी की समझ से बाहर थीं । सढे दस बजे तक उनके घर के आगे हज़ारों लोगों की भीड़ जुट चुकी थी । शव यात्रा हेतु किसी ने अग्रवाल गैरेज से एक ट्र्क भी भिजवा दिया था । जैसे जैसे समय बीतते जा रहा था वैसे वैसे लोग आते ही जा रहे थे । साढे ग्यारह बजे के आसपास वहां लोगों की इतनी भीड़ जुट चुकी थी कि ऐसा लग रहा था कि सारा शहर मोतीलाल जी की अंतिम यात्रा में शामिल होने की चाहत रखता हो। लोगों के मुख से यह भी पता चला कि आज रायपुर के सारे स्कूल में बच्चों को छुट्टी दे दी गई और कारण वही बताया गया कि एक वरिष्ठ शिक्षक मोतीलाल जी की अंतिम यात्रा में शामिल होने स्कूल के बहुत सारे शिक्षक जाने वाले हैं । कुछ देर बाद तो वहां स्कूल के बहुत सारे विद्ध्यार्थी भी नज़र आने लगे ।
1 बजे के आसपास जब मोतिळाल जी की अंतिम यात्रा निकाली गई तो लोगों की संख्या अनगिनत हो चुकी थी । इसके अलावा शहर के हर चौक चौराहों पर हज़ारों लोग मोतीलाल जी के अंतिम दर्शन और उन्हें श्रद्धान्जलि देने हेतु फूल मालाएं लेकर खड़े थे। इस अंतिम यात्रा में शहर के व प्रदेश के कई बड़े अधिकारी गण व नेता गण भी अपनी भागीदारी दर्ज़ कराते नज़र आ रहे थे । इन सारे नामी गिरामी लोगों को कभी न कभी मोतीलाल जी ने पढाया था । वे सब मोतीलाल जी द्वारा दी गई शिक्षा और उनके आचरण से प्रभावित थे व उनके मुरीद भी थे । मोतीलाल जी की अंतिम यात्रा की भीड़ को देखकर प्रशासन भी अलर्ट हो गया और शहर की ट्रेफ़िक व्यवस्था को व्यवस्थित करने में लग गया ।
( क्रमशः )