इन्सान जन्म लेता है वह भ्रमित है मैंने दुनिया मे जन्म लिया है और इसी जन्म मे मेरा सारा रहस्य छुपा है लेकिन इन्सान का कोई रहस्य नहीं होता है रहस्य तो होता है प्रकर्ति का जो बड़े कौशल्य के साथ अपना खेल खेलती है और एक शरीर को प्रदान करती है जो अहंकारी है और अहंकारी शरीर आपनी अलग भूमिका बनाकर सुख और दुख के भवरे मे जखड़ जाता है वह रंगमंच को भूल जाता है और यहाँ आपनी मनमानी करता है... और भ्रम मे कर्म और भ्रम मे सुख दुख भोगता है और उसकी तक़लिब जीव को पूरी तरह से अनुभवीत होती है
इन्सान सुख भोगता है.. भूल जाता है, लेकिन जब दुख भोगता है उसकी यादें जब तक नहीं भूलता जबतक उसे कोई बड़ा सुख का मलम नहीं लगता... लेकिन यह जब तक चलता है जब तक जीव भ्रम मे होता है... लेकिन एक ऐसी दुनिया है वहां सिर्फ आनंद ही मिलता है... क्या है ओ रहस्य क्या कोई ऐसी दुनिया है जो उसे स्वर्ग के नाम से जानते है क्या कोई उपर स्वर्ग जैसा कोई मजला है..., नहीं स्वर्ग भी यहाँ है और नर्क भी यहाँ है.. लेकिन उसे हम जानते नहीं है...इसीलिए ईश्वर ने एक शरीर नाम की प्रयोग स्कूल उपलब्ध की है... यहाँ से सारे प्रश्न के उत्तर मिल जाते है... लेकिन उसकी चाबी अनुभव या गुरु के पास होती है... इन्सान को एक अच्छे मित्र की जरुरत पड़ती है... जो हमेशा मार्ग दर्शक बने जैसे अर्जुन मोह माया मे फसा तो कृष्ण ने उसे समजाने के लिए गीता के अठरा अध्याय का निर्माण करना पढा... जो सारी दुनिया को मार्ग दर्शक बनी लेकिन आज सारा माहोल बदल गया है कर्म करने का तरीका बदल गया है जो कर्म द्वापार युग मे बुरे थे वह आज का फैशन बन गया है... इन्सान के चरित्र से बढ़कर उसके धन को ज्यादा महत्व दिया जा रहा है... मतलब इन्सान मेकअप सुख के पीछे पड़े है वह कभी भी उतार शकता है वह बनावट है जो राजस कर्म से प्रलंबित है लेकिन तामस कर्म का प्रभाव पड़ने के बाद वह भी सुख नष्ट हो शकता है जो हमने मन से समजोता कर लिया है की यही सुख है लेकिन हमें सत्य जानकर सुख और दुख के परे निकल जाना है