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दीवाली गरीब की....

30 अक्टूबर 2021

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*दीवाली गरीब की*...

सारिका दीवाली की पूजा करके खिड़की के पास आकर खड़ी ही हुई थी ,कि अचानक उसकी नज़र सामने शुक्ला जी के घर पर पड़ी एक लड़का उनके अमरूद के पेड़ के पास पट्टी पर चढ़कर बैठा हुआ था। वह ध्यान से दीयों को देख रहा था।
इतने में अनुज कमरे में आये और बोले खिड़की से क्या देख रही हो चलो पटाखे जलाते हैं। 
वह इशारे से बोली उधर देखो अनुज ने देखा एक छोटा 7-8  साल का बच्चा
दिये बुझने पर उसको उठा रहा था। उससे रहा नहीं गया तेज चाल से निकलकर शुक्ला जी के घर पहुंच गया और उस बच्चे को नीचे उतरने को कहा वह डर रहा था बोलने लगा मैंने कुछ नहीं किया साहब!
अनुज ने देखा वह पीछे कुछ छिपा रहा था हाथ आगे करवाने पर उसके हाथ में एक बोतल थी जिसमें तेल था। बच्चे को लेकर वह घर आया तब तक सारिका भी बाहर आ गयी थी उसने उसका नाम पूछा! उसने मोनू बताया .
*दोनों ने कहा आज दीवाली है तुम क्या कर रहे थे चोरी करना बुरी बात होती है दीवाली मनाने के लिये किसी "कुम्हार से दीये" ले लिये होते वह बोल पड़ा मेरे बाबू कुम्हार थे और दीये बनाते थे मिट्टी लेने गये थे तभी तबियत खराब हुई और चले गए... मेमसाहब मां कहती है दीवाली गरीब की नहीं होती*...हमारी जिंदगी  तो दीप तले अंधेरा की है।
सारिका बोल पड़ी तुम वहाँ क्या कर रहे थे वह बोल पड़ा में दिये के बुझने का इंतज़ार कर रहा था उसका तेल निकाल कर बोतल में भर रहा था मेरी माँ के पैरों में दर्द था और आज सब्जी के लिये तेल भी नहीं था बाबू के मरने के बाद मां भी बीमार रहने  लगी है।खाना भी कभी- कभी नहीं मिलता मैं चोर नहीं हूं...
उसकी बातें सुनकर दोनों की आंखे नम हो गयी वह उसे अंदर लेकर आये और खाना, मिठाई ,पटाखे देकर उससे घर का पता पूछा! उसने दो गली छोड़कर रेलवे लाइन के किनारे का पता बताया।
वह चला गया था अनुज और सारिका बातें कर रहे कुम्हार और दीये तो सबके हैं दीवाली अमीर की है तो गरीब की भी है ।
मोनू बहुत खुश हो रहा था सारिका उसे और उसकी मां को घर ले आयी थी मोनू की परवरिस की जिम्मेदारी उसने ले ली थी
इतने साल बाद उसे मां न बनने का सुख मोनू में मिल गया था अनुज उसे लेकर स्कूल में नाम लिखाने चल दिये..
 मोनू के जीवन का  दीप तले अंधेरा रोशनी में बदल चुका था।

सविता गुप्ता
प्रयागराज।✍️
मेरी स्वरचित रचना है।

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बहुत संदेशपूर्ण रचना। काश सभी ऐसा करते दिवाली पर।

30 अक्टूबर 2021

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