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ख्वाब

8 नवम्बर 2021

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*ख्वाव*
अक्षत गाँव से कल तुम्हारे बाबूजी का फोन आया  था  मेज पर नाश्ता लगाकर  अर्चना उसकी पत्नी बोली, हर बार की तरह पूछ रहे थे मकान का काम कितना बचा ?
मैंने बोल दिया अभी काम बाकी है अब कौन कहता, कि गृहप्रवेश हो चुका है।
इधर लाकर उनकी देख- भाल करूँ कि ऑफिस और घर देखूं। अक्षत  ठीक  किया कहते हुए नाश्ता करके ऑफिस के लिए निकल गया वह कर भी क्या सकता था ।
अर्चना ही तो घर सम्भाल रही थी। 
२महीने बादआज गांव से लालजी चाचा का फोन आया था अबकी फोन अक्षत ने उठाया था वह बोला जी चाचा बताइये। उधर से आवाज आयी बेटा तुम्हारे पिताजी!
वह कब कैसे बात कर ही रह था कि अर्चना ने कहा बोलते क्यूँ नहीं कि गृहप्रवेश हो चुका है।वह फोन रखते हुए बोला अब कोई नहीं पूछेगा !उसकी आँखें नम हो चली थी अर्चना पूछ रही थी केया हुआ?
 *वह बोला बाबूजी नहीं रहे*.. 
वह सब जल्दी गाँव के लिये निकल पड़े दुनिया को दिखाने के लिए सब काम उन्होंने अच्छे से निपटाया। तेरहवीं भोज की सभी तारीफ कर रहे थे । बेटा हो तो ऐसा के बोल उसके कान में गूंज रहे थे। उसके पिताजी को भी लोग बोल रहे थे दूकान के बदौलत बेटे के सब *ख्वाव* पूरे कर गया।
गाँव से सब वापिस आ गये थे। *मेज पर पिताजी की फ़ोटो रखी थी वह सोफ़े पर बैठा हुआ था। अतीत के पन्ने फड़कने लगे थे उसे याद आ रहा था कि कैसे माँ के न होते हुए भी उन्होंने उसे कभी माँ की कमी नहीं होने दी थी ।उनकी एक चाय की दूकान थी । दूकान गाँव और शहर को जोड़ते हुये रास्ते पर थी। उनके हाथ की चाय के स्वाद की सभी तारीफ किया करते थे। उस दूकान की बदौलत ही आज वह इस मुक़ाम पर पहुँचा था।जब भी साथ में रहने की बात वह कहता बस एक ही  बात बोलते थे। *बेटा एक ही "ख्वाव" है तुम्हारा मकान बन  जाये* ..
 *गृहप्रवेश* पर आऊँगा तो गाँव छोड़ दूंगा। अर्चना आवाज दे रही थी बाबूजी की फ़ोटो टांग दो!
वह हड़बड़ा कर बोला *आपका ख्वाव अधूरा रह गया*!
अर्चना उसका मुंह देख रही थी। आज उसकी आँखें भी पश्चाताप से नम हो उठी थी।
सविता गुप्ता
प्रयागराज✍️
यह मेरी स्वरचित रचना है।

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