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ऊंचा घराना

1 नवम्बर 2021

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विधा- लघुकथा
शीर्षक- "ऊँचा घराना"

*ऊँचा घराना*

पुलिस की गाड़ी जैसे ही कॉलोनी में आयी सायरन की आवाज सुनकर भीड़ इकट्ठी हो गयी घरों की छतों पर भी लोग नजर आ रहे थे।
आपस में खुसर -पुसर हो रही थी किसकी शामत आ गयी कॉलोनी में ! तभी इंस्पेक्टर रहीम की आवाज आयी शेखर का घर कौन सा है ?
लोगों ने इशारों से बताया उस ओर...इंस्पेक्टर अपनी टोली लेकर आगे बढ़ गया। अंदर से शेखर के पिताजी दुर्गा दास जो एक बैंक में अधिकारी थे बाहर निकले और बोले क्या बात है ?
इंस्पेक्टर बोलेआपके घर की तलाशी लेनी है आपका बेटा ड्रग्स बेचता है आज वह और उसका दोस्त पकड़ में आया है। वह बोल रहे थे ऐसा नहीं हो सकता आपको गलतफहमी हुई है ।लेकिन तब तक पुलिस  घर में तलाशी लेने लगी थी और उन्हें सोमू काका के बेटे रोहन के बैग में पैकेट मिल गए थे। 
वह घर पर ही था दुर्गादास समझ गये थे शेखर ने चाल चली है रोहन यह काम नहीं कर सकता लेकिन आज शेखर अगर जेल चला गया तो उनके "ऊंचे घराने " का नाम मिट्टी में मिल जायेगा वह इशारे से सोमू को इल्जाम लेने कह रहे थे..
नमक का कर्ज अदा कर सोमू ने अपने निर्दोष बेटे को पुलिस के हवाले कर दिया । शेखर घर वापस आ गया था। 
*ऊँचे कद वाले लोगों*
 के सामने गरीबी का कद  छोटा पड़ गया था !दुर्गा दास सोमू से रोहन को छुड़ाकर वापिस लाने का वादा कर रहे थे।
सोमू काका शेखर से कह रहे थे बेटा कहाँ कमी थी ऊँचे कद वाले लोग तुम नहीं मेरा बेटा है...
शेखर की आंखों में पश्चाताप के आँसू झिलमिला रहे थे ...ड्रग्स तो बैग में उसी ने रखी थी। 
जेल की कल्पना से ही वह सिहिर उठा था। और  बेगुनाह रोहन....

सविता गुप्ता
प्रयागराज।✍️
यह मेरी स्वरचित रचना है।

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