किरन सुबह से काफी पे काफी बना के पीए जा रही है।।कामवाली बाई अभी तक नहीं आई है।।सिंक में बर्तनों का अम्बार लगा है।।
किरन सोचती है कहा मर गयी ये कम बख़्त भूख भी जोरों से लगीं है।।। बर्तन साफ होते तों कुछ बना कर खा भी लेती।।।
तभी शगुना जल्दी जल्दी दरवाजे से अन्दर आते हुए दिखाई दी ।मैं कुछ बोलती उससे पहले ही बोल पड़ी
क्या किरन मैडम दिन भर कविता कहानियों को लिखने में लगीं रहतीं हों ।।। कभी कभार मोबाइल को आराम भी दे दिया करो बेचारा थक जाता है।। मैं तो कहती हूं जरा दाएं बाएं भी नज़र दौड़ा लिया करो।।इस पड़ोस में क्या हो रहा है।। वर्मा जी का ही देखो लड़की लव मैरिज करने के लिए कह रही हैं। घर में रोज झगड़े हो रहे हैं।। महाभारत समझो छिड़ी हुई है।।।।
मुझे अब तक जो भूख लगी थी वो गायब हो गई अब उसकी बातों में मुझे भी आनंद आने लगा। वो जमीन पर बैठी थी।। मैंने कहा नीचे क्यों बैंठी है सोफे पर बैठ जा वो भी नीचे से उपर आ गई ।।।
मैंने कहा रुक काफी बना कर लाती हूं दोनों बैठ कर पीते हुए बातें करेंगे।। मैं काफी बना लाई हम दोनों काफी पीते हुए बातें करने लगे।।
उसने आगे बोलना शुरू किया और कहने लगी पता है।वो मिश्राइन मैडम है ना जो अपने बहू की बहुत तारीफ करती है।। मेरी बहू लाखों में एक है करोड़ों में एक है।।।
किरन-हां तो सभी अपने बहू की तारीफ करती है।
शगुना- अरे आप कितनी भोली है।।उनकी बहू नौकरी करतीं हैं और सास से सारे घर के काम करवाती है।
किरन-जब तूं उनके घर काम करती है तो काम बचता हीं कितना होगा।।
शगुना-क्या मैडम मैं वहां कहां काम करती हूं।पर आते-जाते मैं अक्सर उनके घर की बातें पांव दबा कर सुन लेती हूं।
किरन-तू उनके घर की बातें छुप छुपा कर सनती है।।
शगुना- अरे क्या मैडम इतना लिखती हों।ये भी नहीं पता इसे जासूसी करना कहते हैं।।
किरन -और जासूसी करके उसमें नमक मिर्च लगा कर चट पटा बना कर उनके घर की सारी बातें इधर उधर फैलाती हो जाओ भागों यहां से अपना काम करो।।
सही कह रही है।सब कुछ लिखा कभी जासूसी नहीं लीखी।।मास्क गार्गल ओवर कोट पहन कर ही लोग जासूसी नहीं करते।।।
शगुना जैसे भी जासूस होते हैं।।।जो एक घर की बात को दूसरे घर पहुंचा ते है।।।
।।पूर्णिमा किरन।।