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जीवन परिचय / हरिशंकर परसाईं

24 फरवरी 2016

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हरिशंकर परसाईं का जन्म 22 अगस्त¸ 1924 को जमानी¸ होशंगाबाद¸ मध्य प्रदेश में हुआ था। हिंदी के प्रसिद्ध कवि और लेखक थे। वे हिंदी के पहले रचनाकार हैं जिन्होंने व्यंग्य को विधा का दरजा दिलाया और उसे हल्केफुल्के मनोरंजन की परंपरागत परिधि से उबारकर समाज के व्यापक प्रश्नों से जोड़ा है। उनकी व्यंग्य रचनाएँ हमारे मन में गुदगुदी पैदा नहीं करतीं¸ बल्कि हमें उन सामाजिक वास्तविकताओं के आमनेसामने खड़ा करती हैं¸ जिनसे किसी भी व्यक्ति का अलग रह पाना लगभग असंभव है। लगातार खोखली होती जा रही हमारी सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था में पिसते मध्यमवर्गीय मन की सच्चाइयों को उन्होंने बहुत ही निकटता से पकड़ा है। सामाजिक पाखंड और रूढ़िवादी जीवनमूल्यों की खिल्ली उड़ाते हुए उन्होंने सदैव विवेक और विज्ञानसम्मत दृष्टि को सकारात्मक रूप में प्रस्तुत किया है। उनकी भाषाशैली में खास किस्म का अपनापा है¸ जिससे पाठक यह महसूस करता है कि लेखक उसके सामने ही बैठा है। उन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से हिन्दी में एम. ए. किया| उन्होंने 18 वर्ष की उम्र में जंगल विभाग में नौकरी भी की। खण्डवा में 6 महीने अध्यापक रहे। दो वर्ष (1941–43) जबलपुर में स्पेस ट्रेनिंग कालिज में शिक्षण कार्य का अध्ययन किया। 1943 से वहीं माडल हाई स्कूल में अध्यापक रहे। 1952 में यह सरकारी नौकरी छोड़ी। 1953 से 1957 तक प्राइवेट स्कूलों में नौकरी की। 1957 में नौकरी छोड़कर स्वतन्त्र लेखन की शुरूआत की। जबलपुर से 'वसुधा' नाम की साहित्यिक मासिकी निकाली¸ नई दुनिया में 'सुनो भइ साधोनयी कहानियों में 'पाँचवाँ कालमऔर 'उलझीउलझी' तथा कल्पना में 'और अन्त में' इत्यादि का लेखन किया। कहानियाँ¸ उपन्यास एवं निबन्धलेखन के बावजूद मुख्यत: हरिशंकर परसाईं व्यंग्यकार के रूप में अधिक विख्यात रहे| परसाई जी जबलपुर रायपुर से निकलने वाले अखबार देशबंधु में पाठकों के प्रश्नों के उत्तर देते थे। स्तम्भ का नाम था-पूछिये परसाई से। पहले हल्के इश्किया और फिल्मी सवाल पूछे जाते थे । धीरे-धीरे परसाईजी ने लोगों को गम्भीर सामाजिक-राजनैतिक प्रश्नों की ओर प्रवृत्त किया। दायरा अंतर्राष्ट्रीय हो गया। यह सहज जन शिक्षा थी। लोग उनके सवाल-जवाब पढ़ने के लिये अखबार का इंतजार तक करते थे। हरिशंकर परसाईं जी का सन 1995 में देहावसान हो गया


कहानीसंग्रह: हँसते हैं रोते हैं¸ जैसे उनके दिन फिरे।

उपन्यास: रानी नागफनी की कहानी¸ तट की खोज, ज्वाला और जल।

संस्मरण: तिरछी रेखाएँ।

लेख संग्रह: तब की बात और थी¸ भूत के पाँव पीछे¸ बेइमानी की परत¸ अपनी अपनी बीमारी, प्रेमचन्द के फटे जूते, माटी कहे कुम्हार से, काग भगोड़ा, आवारा भीड़ के खतरे, ऐसा भी सोचा जाता है, वैष्णव की फिसलन¸ पगडण्डियों का जमाना¸ शिकायत मुझे भी है¸ सदाचार का ताबीज¸ विकलांग श्रद्धा का दौर¸ तुलसीदास चंदन घिसैं¸ हम एक उम्र से वाकिफ हैं।

सम्मान: 'विकलांग श्रद्धा का दौर' के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित।

 
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रचनाएँ
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महान व्यंग्यकार एवं लेखक हरिशंकर परसाईं जी का चयनित साहित्य संग्रह
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जीवन परिचय / हरिशंकर परसाईं

24 फरवरी 2016
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हरिशंकरपरसाईं का जन्म 22 अगस्त¸ 1924 को जमानी¸ होशंगाबाद¸ मध्य प्रदेश में हुआ था। हिंदी केप्रसिद्ध कवि और लेखक थे। वे हिंदी के पहले रचनाकार हैं जिन्होंने व्यंग्य को विधाका दरजा दिलाया और उसे हल्के–फुल्के मनोरंजन की परंपरागत परिधिसे उबारकर समाज के व्यापक प्रश्नों से जोड़ा है। उनकी व्यंग्य रचनाएँ हमार

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कहानी : जैसे उनके दिन फिरे / हरिशंकर परसाईं

24 फरवरी 2016
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एकथा राजा। राजा के चार लड़के थे। रानियाँ?रानियाँ तो अनेक थीं, महल में एक ‘पिंजरापोल’ ही खुला था। पर बड़ी रानी ने बाकी रानियों के पुत्रों कोजहर देकर मार डाला था। और इस बात से राजा साहब बहुत प्रसन्न हुए थे। क्योंकि वेनीतिवान् थे और जानते थे कि चाणक्य का आदेश है, राजा अपने पुत्रों को भेड़िया समझे। बड़ी

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कहानी : सन् 1950 ईसवी / हरिशंकर परसाई

24 फरवरी 2016
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बाबूगोपाल चन्द्र बड़े नेता थे, क्योंकि उन्होंने लोगों को समझायाथा और लोग समझ भी गये थे कि अगर वे स्वतन्त्रता-संग्राम में दो बार जेल-‘ए क्लास’ में न जाते, तो भारत आज़ाद होता ही नहीं। तारीख़ 3 दिसम्बर 1950 की रात को बाबू गोपाल चन्द्र अपनेभवन के तीसरे मंज़िल के सातवें कमरे में तीन फ़ीट ऊँचे पलंग के एक

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कहानी : चूहा और मैं / हरिशंकर परसाईं

24 फरवरी 2016
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चाहतातो लेख का शीर्षक मैं और चूहा रख सकता था। पर मेरा अहंकार इस चूहे ने नीचे करदिया। जो मैं नहीं कर सकता, वह मेरे घर का यह चूहा कर लेता है।जो इस देश का सामान्‍य आदमी नहीं कर पाता, वह इस चूहे ने मेरे साथ करके बता दिया। इस घर में एक मोटाचूहा है। जब छोटे भाई की पत्‍नी थी, तब घर में खाना बनता था। इस बीच

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कहानी : भोलाराम का जीव / हरिशंकर परसाईं

24 फरवरी 2016
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ऐसाकभी नहीं हुआ था। धर्मराज लाखों वर्षों से असंख्य आदमियों को कर्म और सिफ़ारिश केआधार पर स्वर्ग या नरक में निवास-स्थान ‘अलॉट' करते आ रहे थे। पर ऐसा कभी नहीं हुआ था। सामने बैठेचित्रगुप्त बार-बार चश्मा पोंछ, बार-बार थूक से पन्ने पलट, रजिस्टर पर रजिस्टर देख रहे थे। गलती पकड़ में ही नहीं आरही थी। आखिर उ

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