जीवन फिर से लौट आया
खेड़ा गांँव के लोग बहुत आलसी थे । वे अपने दिन इधर - उधर घूमने, झगड़ने, सोने और शिकायत करने में बिताते थे ।
एक बार गाँव में भयंकर सूखा पड़ा । फसलें सूख गयीं । कुएंँ सूख गये । ग्रामीणों के सामने भुखमरी का खतरा पैदा हो गया । मेहनती किसान और मजदूर तुरन्त काम करने में जुट गये। उन्होंने नये कुएँ खोदे । अपने खेतों की सिंचाई की और गांँव के बाहर जाकर खाने - पीने की तलाश की, लेकिन आलसी लोगों ने ऐसा करने से इनकार कर दिया ।
वे छाया में लेटे रहते और खाने के आखिरी भण्डार को खाकर जीवन गुजारते रहे । खाली बैठकर ईश्वर को कोसते रहे कि जीवन कितना कठिन है ! वे अपने साथी ग्रामीणों के प्रयासों की खिल्ली उड़ाते और यही सोचा करते कि उनकी ओर से बिना किसी प्रयास के अन्त में सब कुछ ठीक हो जायेगा ।
दिन बीतते गये । स्थिति और विकट होती गयी । मुट्ठी भर मेहनती ग्रामीणों के इतने प्रयासों के बावजूद चारों ओर खाने के लिए पर्याप्त भोजन और पानी नहीं बचा था । शीघ्र ही आलसी लोगों को उनकी अकर्मण्यता का कुप्रभाव महसूस होने लगा । वे कमजोर और बीमार हो गये । स्वयं के लिए या समाज में योगदान करने में असमर्थ थे । जैसे - जैसे स्थिति बिगड़ती गयी, उन्हें अपनी गलतियों का एहसास हुआ, पर अब बहुत देर हो चुकी थी ।
आखिरकार, कुछ दिनों बाद सूखे का खतरा टल गया और गांँव में जीवन फिर से लौट आया । मेहनती किसान अपने नि:स्वार्थ प्रयासों के लिए नायक के रूप में सम्मानित किये गये । आलसी लोगों की समझ में अब बात चुकी थी कि केवल बातों से नहीं, काम करने व कोशिश करने से परिस्थितियांँ बदली जा सकती हैं ।
संस्कार सन्देश :- आलस बुरी आदत है । कड़ी मेहनत और परिश्रम से स्वयं की व आस - पास के लोगों की भी भलाई होती है ।