डायरी
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इज़हार... हां तो बात आती है इज़हार की, तो हम तुम्हारे साथ चलते कहीं दूर, किसी कलकल बहती नदी के शांत किनारे पर , और थामते तुम्हारी हथेली को अपने हाथो में, देखते तुम्हे शांत नजरो से एकटक, और कहते तुम्हा
रिश्ते..... आजकल रिश्ते वैसे नही रहे , जैसे पहले हुआ करते थे, बस दिखावा, फायदा,और जरूरत, यही स्तंभ है अब रिश्तों के, आदर सम्मान, लगाव , जुड़ाव, और आत्मीयता, ये तो कहीं पीछे ही छूट गए, जैसे कभी दुनिया
एक कवि की कल्पना मैं उसकी बिखरी जुल्फों की स्याह रात में अटक जाता हैं, सुरमई उन आंखों की , मयकदा सी झील में खो जाता हूं, उसके काजल की कालिमा खींच लेती है मुझे अपनी ओर, मैं पतंग की डोर जैसा, उसकी ओर
फितरत.... इंसान की फितरत है कि भूल जाते हैं, फिर भी चीखते चिल्लाते हैं, गम को रखते हैं ज़हन में जिंदा हमेशा, मलहम से ही अक्सर खौफ खाते हैं, अपनी सोच को बांध लेते हैं, अपने मन के उजालों को खुद ही बुझात
अलगाव... गहरे हैं ज़ख्म लेकिन , कोई निशान बाकी अब नही, पहले थी नदी खामोश सी, लेकिन, जरा सा भी सब्र मुझमें बाकी अब नही, झर झर बहे बहुत , नम आंखो से आंसू कभी, खत्म हुई भावनाएं सारी, कोई मोह बाकी अब नही,
मन...कभी कभी समझ ही नही आता किमन क्या चाहता है,कभी भीड़ में खुश है तो कभी तन्हाई पसंद ,कभी किताबों में खोया,तो कभी दर्द भरे गीतों में गुम,कभी करता हैं चीखें जोर जोर से,और कभी मन है कि जरा सी आहट
इंतजार..... बांधकर पैरों में पायल, पहना हाथों में चूड़ा मैने, मैने सजाई मेंहदी हाथों में, बालों में गजरा लगाया मैने, मैने बांधी साड़ी फिर बड़े सलीके से, फिर आंखो में काजल भरा मैंने, संवारे केश अपने,लग
एहसास.... इन बनते बिगड़ते रिश्तों के बीच,किसी का आराम से ये कह देना कि फिक्र न करो हम तुम्हारे साथ है हमेशा, कसम से बड़ा सुकून देता है , जब इन सांसारिक परेशानियों से, दुखने लगता है सिर बहुत ज्यादा तब
( हम फिर मिलेंगे.... ) फिर कभी,कहीं किसी मोड़ पर अचानक ही, शायद तुम्हे इस बात की कोई उम्मीद न हो, मगर मेरे दिल में हमेशा ये आस रहेगी , मैं इसी उम्मीद के साथ जियूंगी अपना हर एक पल...
ईश्वर .... पता है किसी किसी परिस्थिति में, कभी कभी मन इतना अस्थिर हो जाता है कि, रूठ जाता है ईश्वर तक से ,मन विरुद्ध हो जाता है, हर तरह के पूजा पाठ से,आस्थाओं से एक दम विपरीत सा, जब कभी होती है कोई अन
गृहणी..... पता हैं महिलाएं कभी कभी घर के काम काज में इतनी थक जाती हैं कि उन्हें लगता है,उनके लिए कोई छुट्टी कोई इतवार तो होना चाहिए....! वो चाहकर भी अपने कामों से हाथ पीछे नहीं ले सकती , वो चाहे बीमार
बिछड़ना... आसान कहां है यूं ही साथ चलते चलते बिछड़ जाना, खो देना किसी अपने को ,किसी जान से भी ज्यादा अज़ीज़ इंसान को अपनी आंखों के आगे जाते हुए देखना और चाहकर भी कुछ न कर पाना भारी मन से भरी आंखों के
स्त्री वेदना ... मैंने बमुश्किल संभाला है कई बार खुद को, बहते आंसुओ को कितनी बार रोका है, कई बार दिल की उदासी को इग्नोर किया है, दिल की कई बातों को नजरअंदाज कर छोड़ा है, दिल में उठने वाले हलके ह
मन .... व्याकुलताओं का अथाह भरा एक कोना, जिसमे भरी हैं न जाने कितनी वेदनाएं, पीड़ाएं,कितने आंसू,कितने ही खुशी के क्षण, उठती गिरती समुंदर की लहरों की भांति, मन के भीतर भी उठता ख़ामोश होता एक सैलाब सा ह
बातें अनकही.... सच ही तो है कुछ रिश्तों को नाम नही मिल पाते मगर वो फिर भी रहते है आजीवन एक मीठा एहसास एक अटूट साथ बनकर वो साथ जो दूर होकर भी आपको एक दूसरे की कमी नहीं खलने देता,वो साथ जो दुनिया भर की
लोग कहते हैं किसी के बाद कुछ बाकी नही रहता, सुनो.. मैं छोड़ जाऊंगी अपने एहसास,अपनी बातें ,अपनी सिसकियां,अपने ख्वाब,अपने अधूरे किस्से,अपनी बातों की मिठास,अपनी चूड़ियों की खनखन,अपनी झांझर की झंकार, अपने
प्रेम.... प्रेम वास्तविकता है कोई मिथ्या नही, प्रेम आराधना हैं कोई वासना नही, प्रेम अनुरक्त है कोई विरक्त नही, प्रेम सौभाग्य है कोई श्राप नही, प्रेम स्वाभाविक है,काल्पनिक नही, प्रेम निरंतर खोज है,समाप
प्रेम शब्द शायद मां के स्नेह को , देखकर ही बनाया गया होगा, क्योंकि .... मेरे ख्याल से दुनिया में मां से ज्यादा प्रेम, आजतक शायद किसी ने किया ही नही...
(आंसू...) कितने मासूम होते हैं ना ये आंसू भी,कभी भी कहीं भी बहने लगते हैं आंखों से , हमे पता भी नही लगता की कब ये आकार इकठ्ठे हो जाते हैं , पलकों की कोरों पर, ना जाने कब किस एहसास का रूप लेकर ये
( तितलियां ये लड़कियां ) बस दहलीज तक सीमित रह गई, वो तितलियां जो उड़ना चाहती थी, जो चाहती थी अपने पंख फैलाकर , उस ऊंचे आकाश को छूना, जो करना चाहती थी पार, उस दायरे को, तय कर दी जाती हैं जहां सीमाएं उन
न लड़ता हूं, न झगड़ता हूं,न चीखता, न शोर करता हूं,न करता हूं तानाकशी कोई,न बीती बातों का ज़िक्र करता हूं,मैं जिस रोज रूठ जाता हूं,बस एक गहरी सी खामोशी इख्तियार करता हूं...-दिनेश कुमार कीर
इक मुलाकात... मिलकर गले तुझसे, तुझको बताएंगे,दिल के हालात आंखो से बयां हो जायेंगे रूठी धड़कने रफ्तार पकड़ लेंगी तब,एहसास सारे आंखो से छलक जायेंगे...तेरे कांधे पर टिकाए रखूंगी सिर अपना कई लम्
सुकून...भागदौड़ भरी इस जिंदगी में,चाहिए कुछ सुकून के पल,कुछ एहसासों की ठंडी छांव,कुछ मधुर शब्दों की फुहारें,कुछ अपनापन,थोड़ी सहजता और सौम्यता,जहां बातों का कोई मोल भाव न हो,जहां वक्त भले ही कम मिले,मग
प्रेम......तुम से मिलकर ही तो जाना,प्रेम का स्वरूप मैने,मैंने समझा उस प्रेम को,जिसे किताबों में पढ़ा मैने,तुम्हारी बोलती आंखो में पढ़े,अनकहे प्रेम के कितने ग्रंथ,प्रेम जब तलक,अपने मन के अंदर प्रवेश न
हम कच्चे घरों में रहने वाले,जानते हैं ये बिन मौसम की बारिश,और ये तेज हवाएं,कितनी खौफनाक लगती हैं,वो टीन की छत से आती,भयावह आवाजें,वो तेज हवा से घर के सामने पेड़ो का झुकना इधर उधर,वो सांय सांय करती अजी
जो सच्चा प्रेम करते हैं,वो उस प्रेम को सदा मर्यादित रखते हैं,उसकी पवित्रता को खंडित नहीं होने देते,वो उस प्रेम का जग में बखान नही करते,उन्हे पता होता है प्रेम का महत्व,वो उस प्रेम को बस अपने हृदय में
वादे...मुझे यकीन नही वादों पर,और न ही मैं कसमों को मानती हूं,सपनो का ऐतबार नही मुझको,और न ही उम्मीदों का दामन थामती हूं,झूठे दिलासे नही भाते मुझको,सच्चे इरादों की कद्र चाहती हूं,मैं खफा नही किसी से,&n
अच्छा लगता है... अच्छा लगता है, जब कोई आपको सम्मान से देखे,अच्छा लगता है,जब आपकी बातों की कोई अहमियत हो,अच्छा लगता है,जब लोग आपसे मिलने को आतुर हों,अच्छा लगता है,जब कोई कहे की आपसे मिलकर अच्
मेरी अभिलाषा थी,कि काश मैं तितली होती,तो उड़ती फिरती,यहां से वहां,इस डाली से उस डाली तक,न छोड़ती कोई पर्वत,न किसी शाखा को,मैं सब को चूमकर ऊंची उड़ान भरती,अपने पंखों को इतना परिपक्व करती,कि तोड़ न पाती
मैं मुस्कुराऊं तो लोग लांछन लगाते हैं,चुप रहूं तो घमंडी हूं ये बताते है,बात कर लूं तो कहते बातूनी हूं बहुत,अपने आप में रहूं तो अजीब हूं मैं,अपनी बात रख दूं तो ज्यादा बोलती है,जवाब न दूं तो कुछ आता जात
सभी का तो नही कहते , परंतु कुछ पुरुष बहुत ही सुंदर होते है , तन की सुंदरता की बात नहीं हो रही यहां, यहां बात हो रही है उन पुरुषों की जिनका मन निश्छल पानी के समान होता हैं, कि उस पानी पर पड़ा कोई एक प्
सर्वप्रथम तो आप सभी को रामलला के विराट रूप में अयोध्या में स्थापित होने की बहुत सारी शुभकामनाएं..! वैसे तो श्री राम कभी अयोध्या से गए ही नहीं,वो जन्मभूमि है उनकी, उनका निवास स्थान है असंभव है उनका वहा
भुलाए नहीं भूलता , ये इश्क यादगार रहता है, कभी चांद में खोया , कभी हवाओं में महकता, कभी बारिशों में बरसता, कभी पतझड़ में गुम सा, कभी धूप में दमकता सा, कभी मंदिर के प्रांगण में बिखरी सुगंध सा, कभी औंस
( प्रेम....... ) मेरा मानना है यदि आपको किसी से प्रेम है तो आपके हृदय में उनके लिए सर्वप्रथम आदर होगा सम्मान होगा,इसका मतलब ये नही वो आपके लिए आदरणीय हो जायेंगे ,अप
परवाह न कर, तमाशे तों होते ही रहेंगे ताउम्रतू बस यें ख्याल रख, कि किरदार बेदाग रहें