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जुबान

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मीठी जुबान बनके कटार हुई मन के पार, जब मुंह ढककर अपने सामने आने लगें। क्या बेटी, क्या बहु, क्या प्रेमिका, क्या मइया, सब मुंह ढककर घर बाहर आने जाने लगें। रिश्तों का भंवर, बीमारी के कहर से शरमाने लगें। छाया ऐसा कोरोना का डर कि अपने भी, गले मिलने से घबराने लगे। दो गज की दूरी, दो गज की कोठरी से है भली।

दबी जुबानपास होगा सबकुछ पास होगा चाहत जो इतनी है।दबीजुबा से कुछ कह न सके अपनो से।लिखने की वर्तनी का कुछ असर नही कलम जो इतना डरती है।राहुल बजाज की अभिब्यक्ति से पता चला, इलेक्ट्रिक कार तो अभी सपना है।सरकार की चाहत को रख पास में अपनी ब्यथा को कहते है।तीन तलाक भी कानून बन गया इज्जत और आबरू का।शिक्षा लट

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